तीन तलाक की गैर इस्लामी व्याख्या हो रही हैः नजमा

[email protected] । Oct 13 2016 10:30AM

मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि ‘तीन तलाक’ की परंपरा की गलत ढंग से व्याख्या की जा रही है क्योंकि एक बार में तीन तलाक की कोई अवधारणा नहीं है।

मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि एक साथ ‘तीन तलाक’ की परंपरा की कुछ हलकों द्वारा गैर इस्लामी व्याख्या की जा रही है। उन्होंने इस्लाम के असमानता का धर्म नहीं होने पर जोर देते हुए कहा कि ‘तीन तलाक’ (लगातार तीन बार तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध तोड़ना) की परंपरा की गलत ढंग से व्याख्या की जा रही है क्योंकि एक बार में तीन तलाक की कोई अवधारणा नहीं है।

इस मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय से इस परंपरा को खत्म करने का अनुरोध करने के मामले में कोई टिप्पणी करने से बचते हुए नजमा ने कहा, ‘‘यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जहां मैं सकारात्मक या नकारात्मक जवाब दे सकूं कि मैं केंद्र के रूख से सहमत हूं या नहीं। मैं इस मुद्दे पर सिर्फ अपने विचार और जो मैं महसूस कर रही हूं उसे जाहिर कर सकती हूं।’’ इस पद पर नियुक्त किए जाने से पहले वह अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री थीं। वह मुसलामानों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की परंपरा का उच्चतम न्यायालय में विरोध किए जाने के केंद्र के रूख के बारे में अपने विचारों को लेकर सवालों का जवाब दे रही थीं।

हिंदू धर्म की तर्ज पर इस्लाम में बहुविवाह की परंपरा को खत्म करने के बारे में हेपतुल्ला ने कहा कि लोगों को इस बारे में सोचना चाहिए और इस्लाम के नाम पर किया जाने वाला कोई भी अन्याय सही नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर इस्लामी देशों ने इस्लाम की सही व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि कुरान और पैगंबर मुहम्मद ने कहा है कि जिन्होंने इंसान के साथ अन्याय किया है वे ठीक से धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जो इस्लाम का दुरूपयोग कर रहे हैं और महिलाओं से समान बर्ताव नहीं कर रहे हैं वे गलत हैं। मैं जो कहती हूं उसमें यकीन रखती हूं। यहां तक कि एक महिला भी निर्ममता, अन्याय और अन्य हालात में शादी तोड़ने की मांग कर सकती है लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं करता।

नजमा ने कहा कि एक साथ ‘तीन बार तलाक’ कह कर तलाक नहीं दिया जा सकता। इसके लिए तीन महीनों में तीन मौकों पर ऐसा किया जाता है और मध्यस्थता की प्रक्रिया का पालन करना होता है। उसके बाद ही तलाक होता है। जिस तरह से वे इसकी व्याख्या कर रहे हैं वह इस्लामी नहीं है और सही नहीं है। पाकिस्तान सहित ज्यादातर मुस्लिम देशों ने इसे स्वीकार किया है। इस विवादित मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए हेपतुल्ला ने कहा कि जो लोग ‘तलाक, तलाक, तलाक’ की बात कर रहे हैं वे इस्लाम की गलत व्याख्या कर रहे हैं और उनके पास धर्म को बदनाम करने का कोई अधिकार नहीं है।

गौरतलब है कि इस महीने की शुरूआत में कानून एवं न्याय मंत्री ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर कहा था कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह परंपरा की वैधता के मुद्दे पर लैंगिक न्याय और गैर भेदभाव, गरिमा एवं समानता के सिद्धांतों के आलोक में विचार किए जाने की जरूरत है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़