चुनाव में 50 फीसद से ज्यादा वोट हासिल करने पर ही असरदार बन सकता है NOTA : Former Chief Election Commissioner

 Former Chief Election Commissioner
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इंदौर लोकसभा सीट पर 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा मतदाताओं से ‘‘नोटा’’ को वोट देने की अपील के बाद मतदान के इस विकल्प को लेकर फिर बहस शुरू हो गई है। कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने पार्टी को तगड़ा झटका देते हुए नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 29 अप्रैल को अपना पर्चा वापस ले लिया और वह इसके तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे।

इंदौर। मौजूदा हालात में ‘‘नोटा’’ को प्रतीकात्मक करार देते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि किसी सीट पर ‘‘नोटा’’ को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलने के बाद ही मतदान के इस विकल्प को चुनाव परिणाम पर कानूनी रूप से असरदार बनाने के बारे में सोचा जा सकता है। इंदौर लोकसभा सीट पर 13 मई (सोमवार) को होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा मतदाताओं से ‘‘नोटा’’ (उपरोक्त में से कोई नहीं) को वोट देने की अपील के बाद मतदान के इस विकल्प को लेकर फिर बहस शुरू हो गई है। 

कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने पार्टी को तगड़ा झटका देते हुए नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 29 अप्रैल को अपना पर्चा वापस ले लिया और वह इसके तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे। नतीजतन इस सीट के 72 साल के इतिहास में कांग्रेस पहली बार चुनावी दौड़ में नहीं है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रावत ने रविवार को  कहा,‘‘वर्तमान स्थिति में नोटा एक प्रतीक की तरह है और यह किसी सीट के चुनाव परिणाम पर कोई भी असर नहीं डाल सकता।’’ 

उन्होंने इसे विस्तार से समझाते हुए कहा,‘‘ अभी अगर किसी चुनाव में 100 में 99 वोट नोटा को मिल जाएं और किसी अन्य उम्मीदवार को महज एक वोट मिल जाए, तब भी नोटा नहीं, बल्कि यह उम्मीदवार ही विजेता घोषित किया जाएगा।’’ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा,‘‘एक बार मतदाताओं को किसी सीट पर नोटा को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट देकर राजनीतिक जमात को दिखाना पड़ेगा कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों या अन्य अप्रिय प्रत्याशियों को अपने मत के लायक नहीं समझते हैं। इसके बाद ही संसद व चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें सोचना पड़ेगा कि नोटा को चुनाव परिणाम पर प्रभावकारी बनाने के लिए कानूनों में बदलाव किया जाए।’’ 

उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद नोटा के बटन को सितंबर 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में शामिल किया गया था। इसे दलों की ओर से दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से हतोत्साहित करने के लिए मतदान के विकल्पों में जोड़ा गया था। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के प्रमुख अनिल वर्मा ने बताया कि 2014 और 2019 के पिछले दो लोकसभा चुनावों में ‘‘नोटा’’ को औसतन दो प्रतिशत से कम वोट ही मिले हैं। 

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उन्होंने कहा,‘‘नोटा के विकल्प को अगले स्तर पर पहुंचाने के लिए इसे कानूनी तौर पर ताकतवर बनाया जाना चाहिए। हमारा मानना है कि किसी सीट पर नोटा को सभी उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिलते हैं, तो चुनाव रद्द हो जाना चाहिए और नये उम्मीदवारों के साथ नये सिरे से चुनाव कराया जाना चाहिए।’’ वर्ष 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में नोटा को बिहार की गोपालगंज सीट पर सर्वाधिक वोट मिले थे। तब इस क्षेत्र के 51,660 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था और नोटा को कुल मतों में से करीब पांच प्रतिशत वोट मिले थे।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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