राष्ट्रगीत को राष्ट्रगान का दर्जा देने संबंधी याचिका पर नोटिस

दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें राष्ट्रगीत वंदे मातरम को राष्ट्रगान जन गण मन के बराबर मानने के लिए उचित निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें राष्ट्रगीत वंदे मातरम को राष्ट्रगान जन गण मन के बराबर मानने के लिए उचित निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने गुरुवार को गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालयों को नोटिस जारी किये। न्यायालय ने दोनों मंत्रालयों को इस याचिका पर आठ फरवरी 2017 से पहले जरूरी जवाब देने का निर्देश दिया है।

याचिका में राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971 में संशोधन की भी मांग की गई है। यह याचिका प्रसिद्ध उद्योगपति और द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज के चेयरमैन गौतम आर मोरारका ने दायर की है। उन्होंने याचिका में अनुरोध किया है कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम को राष्ट्रगान जन गण मन के बराबर मानने के लिए केन्द्र को निर्देश दिये जाएं ताकि जब वंदे मातरम गाया जाए या चलाया जाए तो उचित गरिमा और सम्मान रखा जाए। याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादियों (गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय) को परमादेश या कोई अन्य निर्देश दिये जाएं कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम के संबंध में उचित आदेश, निर्देश जारी हों ताकि यह सुनिश्चित हो कि राष्ट्रगान जन गण मन की तरह राष्ट्रगीत गाते या चलाए जाते समय शिष्टाचार बरता जाए।

श्री मोरारका ने मांग की है कि यदि भारत सरकार की नजर में दोनों गीतों का दर्जा वास्तव में समान है तो राष्ट्र गीत ‘वन्दे मातरम्’ को गाए जाने के बारे में भी स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए जाने चाहिए अन्यथा समानता का प्रावधान महज औपचारिक बनकर रह जाएगा। 

याद रहे, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने श्री गौतम मोरारका की आरटीआई अर्जी के जवाब में स्वीकार किया था कि राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के समान दर्जा होने के बावजूद राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ के लिए उस तरह के प्रोटोकॉल और नियम नहीं बनाए गए हैं जैसे कि ‘जन गण मन’ के लिए मौजूद हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचनाओं पर गृह मंत्रालय के निदेशक एवं केंद्रीय सूचना अधिकारी ने यह स्वीकारोक्ति की थी। श्री मोरारका के अनुसार इससे सिद्ध होता है कि ‘जन गण मन’ और ‘वन्दे मातरम्’ को समान दर्जा दिए जाने संबंधी बात केवल कागजों तक सीमित है जबकि व्यावहारिकता में स्थिति कुछ और है। 

श्री मोरारका की एक अन्य आरटीआई अर्जी में गृह मंत्रालय से पूछा गया था कि भारत के राष्ट्रगान के रूप में ‘जन गण मन’ को ‘वन्दे मातरम्’ पर वरीयता दिए जाने का क्या आधार है। केंद्रीय सूचना अधिकारी ने इसके जवाब में सूचित किया कि सन 1950 में संविधान सभा ने दोनों को समान दर्जा देने का फैसला किया था। इस जवाब से असंतुष्ट श्री मोरारका ने एक अन्य आरटीआई अर्जी के माध्यम से दलील दी कि यदि दोनों गीतों का संवैधानिक दर्जा समान है तो फिर ‘वन्दे मातरम्’ को सार्वजनिक समारोहों, टेलीविजन कार्यक्रमों आदि में बजाए जाने के बारे में उस तरह के सुस्पष्ट नियम और निर्देश मौजूद क्यों नहीं हैं जैसे ‘जन गण मन’ के बारे में मौजूद हैं। मंत्रालय ने अपने जवाब में स्वीकार किया कि भारत सरकार ने ‘वन्दे मातरम’ के गायन या वादन की परिस्थितियों के बारे में किसी तरह के निर्देश जारी नहीं किए हैं।

हिंदी समाचार पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम ने इस मुद्दे पर एक ऑनलाइन याचिका भी शुरू की थी जिसमें अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों की तरह ‘वन्दे मातरम्’ के संबंध में भी सुस्पष्ट नियम बनाने की मांग की गई थी। इसमें अनेक बुद्धिजीवियों ने इस मांग का समर्थन किया था।

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