Kashmir में अब आतंक के पूरे इकोसिस्टम पर कसा शिकंजा, फर्जी सिम कार्ड से लेकर जेल नेटवर्क तक, सुरक्षा एजेंसियां हर जगह कर रहीं प्रहार

Kashmir Police operations
ANI

छापेमारी की कार्रवाइयों के दौरान पुलिस ने सैकड़ों सिम कार्ड और मोबाइल उपकरण जब्त किए, जिनका उपयोग पाकिस्तानी हैंडलरों द्वारा सुरक्षित संचार चैनल बनाए रखने के लिए किया जा रहा था। सीआईके की टीम ने नौ संदिग्धों को हिरासत में लिया है, जिनमें एक महिला भी शामिल है।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ चल रही कार्रवाई अब पारंपरिक मुठभेड़ों और घेराबंदी से आगे बढ़ चुकी है। अब सुरक्षा एजेंसियों का फोकस केवल आतंकियों को मार गिराने पर नहीं, बल्कि उस पूरे “इकोसिस्टम” को खत्म करने पर है जो आतंकवाद को जिंदा रखता है— चाहे वह फर्जी सिम कार्ड नेटवर्क हो, जेलों के भीतर से होने वाला संपर्क या स्थानीय सहयोगी जो आतंकियों को लॉजिस्टिक मदद पहुंचाते हैं। हम आपको बता दें कि पिछले एक सप्ताह में जम्मू-कश्मीर पुलिस और काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर (सीआईके) ने आतंकवादी नेटवर्क से जुड़े व्यक्तियों, पाकिस्तान-आधारित आतंकियों के स्थानीय सहायकों और पूर्व आतंकियों के संपर्कों पर एक समन्वित कार्रवाई की है। श्रीनगर, बारामूला, कुलगाम, पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग और कुपवाड़ा जिलों में दर्जनों ठिकानों पर छापेमारी हुई।

इन कार्रवाइयों के दौरान पुलिस ने सैकड़ों सिम कार्ड और मोबाइल उपकरण जब्त किए, जिनका उपयोग पाकिस्तानी हैंडलरों द्वारा सुरक्षित संचार चैनल बनाए रखने के लिए किया जा रहा था। सीआईके की टीम ने नौ संदिग्धों को हिरासत में लिया है, जिनमें एक महिला भी शामिल है। इसी के समानांतर, जम्मू क्षेत्र के रामबन, डोडा, किश्तवाड़, राजौरी और कठुआ जिलों में भी तलाशी अभियान चलाए गए। सुरक्षा बलों ने उन परिवारों के घरों की जांच की जिनके सदस्य पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में रह रहे हैं या आतंकियों के संपर्क में होने की आशंका है। इसके साथ ही कठुआ जिले में दो विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को आतंकियों से संबंध होने के आरोप में बर्खास्त किया गया है।

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कश्मीर में जेलों के भीतर अब बेहद सख्त निगरानी शुरू की गई है। अनंतनाग, कुपवाड़ा और बारामूला की जेलों में छापेमारियों के दौरान मोबाइल फोन, सिम कार्ड और कागज़ी नोट्स बरामद किए गए हैं। यह संकेत मिले हैं कि कुछ कैदी बाहर के ऑपरेटिव्स से एन्क्रिप्टेड ऐप्स के ज़रिए संपर्क में थे। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि यह कार्रवाई “निवारक प्रकृति” की है ताकि राष्ट्र-विरोधी नेटवर्क दोबारा संगठित न हो सकें। हालाँकि, कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इस तरह की व्यापक छानबीन में कभी-कभी निर्दोष परिवार भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं।

दूसरी ओर, सुरक्षा विशेषज्ञ इस नई रणनीति का समर्थन कर रहे हैं। पूर्व उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) बीएस जसवाल के अनुसार, “कश्मीर में आतंकवाद अब विकेंद्रीकृत और डिजिटल रूप ले चुका है। इसलिए इसे केवल बंदूक से नहीं, बल्कि तकनीक और इंटेलिजेंस से जवाब देने की आवश्यकता है।”

देखा जाये तो कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ जंग अब बंदूक की नोक पर नहीं, बल्कि डेटा, डिवाइस और डिटरेंस (निवारक रणनीति) के सहारे लड़ी जा रही है। वर्षों तक चलने वाली मुठभेड़ों और घेराबंदियों की नीति ने आतंकियों की संख्या तो घटाई, लेकिन उनके नेटवर्क की जड़ें बनी रहीं, सोशल मीडिया प्रचार, फर्जी सिम कार्ड नेटवर्क, स्थानीय “ओवरग्राउंड वर्कर्स” और जेलों से चल रही गुप्त गतिविधियाँ इस आतंक के छिपे स्रोत रहे हैं। पुलिस की यह नई रणनीति यानि “नेटवर्क डिस्मेंटलिंग” इस बात का संकेत है कि अब फोकस “आतंकी” से ज़्यादा “आतंकी तंत्र” पर है। आतंकवाद केवल बंदूक नहीं, बल्कि विचार, सूचना और वित्तीय स्रोतों की एक पूरी श्रृंखला है। इस श्रृंखला को तोड़ना ही आतंकवाद की स्थायी समाप्ति का मार्ग है।

देखा जाये तो डिजिटल दौर में जब कट्टरपंथी तत्व सोशल मीडिया के ज़रिए युवाओं को गुमराह कर रहे हैं, तो सीआईके और जम्मू-कश्मीर पुलिस का यह डेटा-आधारित ऑपरेशन भविष्य की सुरक्षा नीति का मॉडल बन सकता है। कश्मीर में आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई का यह नया अध्याय यह संदेश देता है कि भारत अब केवल हमलों पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि आतंक के स्रोतों को जड़ से काटने की कोशिश कर रहा है। फर्जी सिम कार्ड से लेकर जेल के भीतर के नेटवर्क तक, हर कड़ी पर प्रहार हो रहा है। अगर यह अभियान जनसमर्थन और विधिक पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ता रहा, तो कश्मीर में स्थायी शांति सुनिश्चित की जा सकेगी।

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