अदालती आदेश का 10 साल तक पालन नहीं करने वाले अधिकारी के निलंबन का आदेश

Contempt of Court

सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि दस साल पहले इस मामले में प्रार्थी को दूसरा प्लाट आवंटित करने का उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था। न्यायालय ने वर्ष 2011 में ही बोर्ड को याचिकाकर्ता को दूसरा प्लाट आवंटित करने का आदेश दिया। लेकिन दस साल बीतने के बाद भी न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ है।

रांची|  झारखंड उच्च न्यायालय ने एक दशक से भी अधिक समय तक अपने आदेश का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किए जाने को लेकर बुधवार को राज्य आवास बोर्ड के विधि अधिकारी को निलंबित करने और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई प्रारंभ करने का आदेश दिया।

झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के. पी. देव की पीठ ने आवास बोर्ड की ओर से रांची में एक ही प्लाट दो लोगों को आवंटित किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद आज यह आदेश दिया।

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सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि दस साल पहले इस मामले में प्रार्थी को दूसरा प्लाट आवंटित करने का उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था। लेकिन अभी तक उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है।

यह तथ्य सामने आने पर अदालत ने राज्य आवास बोर्ड के कामकाज पर तल्ख टिप्पणी की और आवास बोर्ड के विधि अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने और तत्काल प्रभाव से उसे निलंबित करने का आदेश राज्य सरकार को दिया।

इस मामले में पीड़ित धनंजय कुमार सिंह ने अदालत में याचिका दायर की थी। 15 अप्रैल 2004 में सिंह को आवास बोर्ड की ओर से प्लाट आवंटित किया गया लेकिन बाद में उसे रद्द कर दिया गया।

जब उन्होंने इसकी वजह जानने से लिए आवास बोर्ड से संपर्क किया तो पता चला कि यह प्लाट 2003 में ही किसी दूसरे को आवंटित किया जा चुका था और वह उन्हीं के कब्जे में है।

प्रार्थी की ओर से कहा गया कि अगर आवास बोर्ड की ओर से उन्हें दूसरा प्लाट आवंटित कर दिया जाता है तो वह अपनी याचिका को वापस ले लेगा।

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इसके बाद न्यायालय ने वर्ष 2011 में ही बोर्ड को याचिकाकर्ता को दूसरा प्लाट आवंटित करने का आदेश दिया। लेकिन दस साल बीतने के बाद भी न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं हुआ है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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