मानवाधिकार कानून में संशोधन प्रस्ताव पर विपक्ष ने पुनर्विचार करने की मांग की

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[email protected] । Jul 22 2019 6:53PM

आचार्य ने उच्चतम न्यायालय द्वारा एनएचआरसी को ‘दंतहीन शेर’ करार दिये जाने का हवाला देते हुये सरकार ने सदस्यों का कार्यकाल कम करने और पुनर्नियुक्ति के प्रावधान पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी जैसी संस्थाओं को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने में ऐसे प्रावधान बाधक साबित होंगे। केशव राव ने कहा कि सरकार संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संबंधी स्थायी समिति की उस रिपोर्ट के दबाव में मानवाधिकार कानून में संशोधन प्रस्ताव लेकर आयी है जिसमें भारत में मानवाधिकार संरक्षण के प्रयासों पर सवाल उठाये गये थे।

नयी दिल्ली। राज्यसभा में विपक्षी दलों ने मानवाधिकार संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधन से मानवाधिकार आयोग की संस्था के कमजोर होने की आशंका व्यक्त करते हुये सोमवार को संबंधित संशोधन विधेयक के प्रावधानों पर सरकार से पुनर्विचार करने की मांग की। उच्च सदन में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा पेश मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019 पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों के सदस्यों ने राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधानों में प्रस्तावित बदलाव से मानवाधिकारों के संरक्षण के लिये स्थापित इस संस्था के कमजोर होने की आशंका जतायी।चर्चा में हिस्सा लेते हुये सपा के रामगोपाल यादव, कांग्रेस के विवेक तन्खा, माकपा के इलामारम करीम, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीएमसी) के के केशव राव और बीजद के प्रसन्ना आचार्य ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन विधेयक में आयोग के सदस्यों का कार्यकाल कम करने और इनकी पुनर्नियुक्ति के प्रावधान से यह संस्था कमजोर होगी।

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उल्लेखनीय है कि संशोधन विधेयक में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएसआरसी) और राज्य आयोग (एसएचआरसी) के सदस्यों का कार्यकाल पांच साल से घटाकर तीन साल करने और सदस्यों की पुनर्नियुक्ति करने के प्रावधान शामिल हैं।  इसके अलावा इसमें एनएचआरसी के अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय और एसएचआरसी के अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के प्रावधान में बदलाव कर राष्ट्रीय आयोग में उच्चतम न्यायालय और राज्य आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव किया गया है। लोकसभा से यह संशोधन विधेयक पहले ही पारित हो चुका है। राज्यसभा में इस विधेयक पर हुयी चर्चा में हिस्सा लेते हुये यादव ने दलील दी कि सदस्यों का कार्यकाल कम करने और पुनर्नियुक्ति के प्रावधान के कारण फिर से नियुक्ति के इच्छुक सदस्य, सरकार को खुश करने वाली रिपोर्ट और सिफारिशें देंगे। उन्होंने कहा कि इन संशोधनों से आयोग कमजोर होगा। इससे पहले तन्खा ने विधेयक में शामिल संशोधन प्रावधानों में विसंगति होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अनुपलब्धता के कारण किसी भी उपलब्ध सेवानिवृत्त न्यायाधीश को आयोग का अध्यक्ष बनाने का प्रावधान करना चाहती है। लेकिन संशोधन विधेयक में यह भ्रम बरकरार है कि सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के उपलब्ध होने पर भी क्या किसी अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बना दिया जायेगा।

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उन्होंने कहा कि इससे सत्तापक्ष की मनमानी बढ़ेगी। तन्खा ने सुझाव दिया कि अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति में मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में अनुभव को भी देखा जाना चाहिये। आचार्य ने उच्चतम न्यायालय द्वारा एनएचआरसी को ‘दंतहीन शेर’ करार दिये जाने का हवाला देते हुये सरकार ने सदस्यों का कार्यकाल कम करने और पुनर्नियुक्ति के प्रावधान पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी जैसी संस्थाओं को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने में ऐसे प्रावधान बाधक साबित होंगे। केशव राव ने कहा कि सरकार संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संबंधी स्थायी समिति की उस रिपोर्ट के दबाव में मानवाधिकार कानून में संशोधन प्रस्ताव लेकर आयी है जिसमें भारत में मानवाधिकार संरक्षण के प्रयासों पर सवाल उठाये गये थे। 

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