लड़की हूं, लड़ सकती हूं! इस नारे से कांग्रेस की 148 महिला प्रत्याशियों में से सिर्फ एक को मिली जीत

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उप्र में कांग्रेस की 148 महिला प्रत्याशियों में से सिर्फ एक को जीत मिली है।कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने आधी आबादी को प्रतिनिधित्व देने के लिए चुनाव में चालीस प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की बात कही थी और उन्होंने अपने वादे को पूरा भी किया।

लखनऊ। लड़की हूं, लड़ सकती हूं के नारे के साथ चुनाव मैदान में संघर्ष का प्रतीक बनकर उतरने वाली कांग्रेस की स्टार महिला प्रत्याशी अपनी जमानत बचाने में नाकामयाब रहीं और इनमें से प्रत्येक तीन हजार से भी कम वोट हासिल कर पाईं। कांग्रेस ने इस विधानसभा चुनाव में 148 महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था, जिसमें से केवल एक कांग्रेस विधानमंडल की नेता अराधना मिश्रा मोना ही जीत हासिल कर पायीं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने आधी आबादी को प्रतिनिधित्व देने के लिए चुनाव में चालीस प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की बात कही थी और उन्होंने अपने वादे को पूरा भी किया।

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प्रियंका ने अपने वादे के अनुसार समाज में संघर्ष करने वाली महिलाओं को उप्र विधानसभा चुनाव में टिकट देने के साथ-साथ उनके लिए प्रचार किया और अपने कार्यकर्ताओं की टीम को भी उनकी मदद के लिए मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस की ये स्टार महिला प्रत्याशी पार्टी के लिए कुछ खास नहीं कर सकीं और अपनी जमानत तक नहीं बचा सकीं और दो से तीन हजार मतों के बीच ही सिमट गयीं। उन्नाव की सदर सीट से कांग्रेस ने उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़िता की मां आशा देवी को टिकट दिया। उनके चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने अपने राजस्थान और मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं की टीम को भी लगाया, लेकिन आशा देवी केवल 1555 वोट पा सकीं। इतने कम वोट पाने के बारे में जब आशा देवी की बेटी से बात की गयी तो उन्होंने पीटीआई- से कहा, मेरी मां चुनाव जरूर हार गयी हैं, लेकिन हम महिलाओं और पीड़ितों के संघर्ष में उनका साथ देने और उनकी आवाज बनने से पीछे नहीं हटेंगे। हमारा संघर्ष लगातार जारी रहेगा और हम अपने क्षेत्र में जनता के लिए काम करते रहेंगे। बलात्कार पीड़िता ने कहा, ‘‘ इस विधानसभा चुनाव में प्रियंका दीदी (प्रियंका गांधी) मुझे चुनाव लड़ाना चाहती थीं, लेकिन मेरी उम्र कम होने के कारण मेरी मां को मैदान में उतारा। 2027 के चुनाव के मैदान में मैं ही मैदान में उतरूंगी, इसके लिए मैंने अभी से तैयारियां भी शुरू कर दी है।’’

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लखनऊ मध्य विधानसभा सीट से कांग्रेस ने सीएए एनआरसी आंदोलन के दौरान जेल गयीं सदफ जाफर को मैदान में उतारा था, लेकिन वह केवल 2927 वोट ही पा सकीं। इस बारे में जब सदफ से बात की गयी तो उन्होंने कहा, मीडिया ने चुनाव का ध्रुवीकरण कर दिया और इसे केवल भाजपा बनाम सपा बना दिया, इसलिए जनता ने दूसरे प्रत्याशियों को वोट नहीं दिया, लेकिन मैं अभी से अगले चुनाव के लिए तैयारी कर रही हूं, चाहे चुनाव हारूं या जीतूं, मैं अपने क्षेत्र के लोगों के लिए अपना संघर्ष जारी रखूंगी। टीवी पत्रकारिता से राजनीति में आयीं संभल की निदा अहमद ने भी लड़की हूं, लड़ सकती हूं के नारे के साथ कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जबरदस्त चुनाव प्रचार किया। चूंकि निदा संभल के एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती थीं, इस नाते जनता के बीच इनकी काफी लोकप्रियता भी दिखी, लेकिन जब चुनाव परिणाम आये तो उन्हें केवल 2256 वोट मिले। इस बारे में जब निदा से बात की गयी तो उन्होंने कहा, चुनाव में मेरे साथ बेईमानी की गयी। मेरे परिवार के ही दो मतदान केंद्रों पर करीब 150 वोट थे, लेकिन जब ईवीएम खुली तो एक बूथ पर एक वोट और दूसरे बूथ पर चार वोट मिले। उन्होंने कहा, ‘‘क्या मेरे पति और मेरे मां-बाप, भाई-बहन ने भी वोट नहीं दिया ? जनता का वोट तो गायब होता ही था, अब परिवार का भी वोट गायब हो गया।’’

उन्होंने कहा, मैं चुनाव जरूर हारी हूं,लेकिन हिम्मत नहीं हारी है। मैं एक बार फिर चुनाव मैदान में आऊंगी और जीत कर दिखाऊंगी।’’ हस्तिनापुर सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी अर्चना गौतम,‘मिस कॉस्मो वर्ल्ड 2018’, ‘मिस यूपी 2014’ रही हैं। मास कम्युनिकेशन से उन्होंने स्नातक किया है। वह कांग्रेस का दलित चेहरा थीं, लेकिन जब चुनाव परिणाम आये, तो उन्हें सिर्फ 1519 वोट मिले। अर्चना ने पीटीआई- से बातचीत में कहा, मुझे चुनाव प्रचार के लिए बहुत कम समय मिला। मैं पन्द्रह दिन पहले चुनाव मैदान में उतरी और इतने कम समय में भी मैंने करीब 100 गांवों में जाकर प्रचार किया। उन्होंने कहा, ‘‘ इस हार से मैं निराश नहीं हूं। मैं अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी कर रही हूं और प्रियंका दीदी ने अगर लोकसभा चुनाव में मौका दिया तो मैं चुनाव जीत कर दिखाऊंगी। इसी तरह, रितु सिंह लखीमपुर खीरी की मोहम्मदी विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी थीं। पंचायत चुनाव में इनके साथ अभद्रता हुई थी। वह हमेशा से महिलाओं के लिए आवाज उठाती रही हैं।

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पंचायत चुनाव की घटना के बाद प्रियंका गांधी उनसे मिलीं और फिर उन्हें विधानसभा चुनाव के लिये मैदान में उतार दिया, लेकिन जब परिणाम आया तो उन्हें केवल 2419 वोट मिले। इसी तरह, कानपुर के चर्चित बिकरू कांड की सह अभियुक्त खुशी दुबे की बड़ी बहन नेहा तिवारी को कांग्रेस ने कानपुर के कल्याणपुर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा। इनके पक्ष में कांग्रेस के कई बडे नेताओं ने जमकर प्रचार किया, लेकिन जब मतगणना हुई तो नेहा को केवल 2302 वोट ही मिले। कांग्रेस की इन स्टार प्रत्याशियों को चुनाव में इतने कम वोट मिलने की बाबत जब पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अशोक सिंह से बात की गयी तो उन्होंने बताया, ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ इन संघर्षशील महिलाओं को मैदान में उतारा गया था, लेकिन चुनाव में सफलता नहीं मिली, जिसकी समीक्षा की जाएगी। सिंह ने कहा कि महिला प्रत्याशियों की हार से पार्टी में निराशा नहीं है, पार्टी अभी भी आधी आबादी के लिए काम करती रहेगी और इनके मुददों पर लगातार संघर्ष करती रहेगी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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