राष्ट्रपति ने सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये टैगोर पुरस्कार प्रदान किया

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[email protected] । Feb 18 2019 2:11PM

कोविंद ने कहा कि गुरुदेव पूरी दुनिया के थे, वे एक राष्ट्रवादी होने के साथ अंतरराष्ट्रवादी भी थे। भारत और बांग्लादेश के संबंधों में गुरुदेव की छाया स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है।

नयी दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को राजकुमार सिंघाजीत सिंह, बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन‘ छायानट’ और रामजी सुतार को क्रमशः 2014, 2015 और 2016 के लिए टैगोर सांस्कृतिक सद्भाव पुरस्कार प्रदान किया। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद थे। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने सम्मान प्राप्त करने वालों को बधाई देते हुए कहा कि भारत में हर क्षेत्र की अलग पहचान है लेकिन यह अलग पहचान हमें विभाजित नहीं करती है बल्कि एकता के सूत्र में बांधने और सौहार्द बढ़ाने का काम करती है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर अद्भुत प्रतिभा के धनी थे जिन्हें 1913 में साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला था। वे संगीतज्ञ, कलाकार एवं आध्यात्मिक शिक्षाविद होने के साथ ही एक ऐसे कवि थे जिन्होंने राष्ट्रगीत की रचना की। 

कोविंद ने कहा कि गुरूदेव पूरी दुनिया के थे, वे एक राष्ट्रवादी होने के साथ अंतरराष्ट्रवादी भी थे। भारत और बांग्लादेश के संबंधों में गुरुदेव की छाया स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘‘गुरुदेव हर सीमा से परे थे। वो प्रकृति और मानवता के प्रति समर्पित थे। वे पूरे विश्व को अपना घर मानते थे इसलिए दुनिया ने भी उन्हें अपनापन दिया।’’ उन्होंने कहा कि रवींद्र संगीत में भारत के विविध रंग परिलक्षित होते हैं और ये भाषा के बंधन से भी परे है। मोदी ने कहा कि संस्कृति किसी भी राष्ट्र की प्राण वायु होती है। इसी से राष्ट्र की पहचान और अस्तित्व को शक्ति मिलती है। किसी भी राष्ट्र का सम्मान और उसकी आयु भी संस्कृति की परिपक्वता और सांस्कृतिक जड़ों की मजबूती से ही तय होती है।

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उन्होंने कहा कि भारत का सांस्कृतिक सामर्थ्य एक रंग-बिरंगी माला जैसा है। जिसको उसके अलग-अलग मनके अलग-अलग रंग और शक्ति देते हैं। उल्लेखनीय है कि सांस्कृतिक सद्भाव के लिए टैगोर पुरस्कार की शुरूआत भारत सरकार ने मानवता के प्रति गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान की पहचान करते हुए 2012 में उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर की थी। इसकी शुरूआत सांस्कृतिक सद्भाव के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए की गई। यह पुरस्कार वर्ष में एक बार दिया जाता है जिसके तहत एक करोड़ रुपये नकद (विदेशी मुद्रा में विनिमय योग्य), एक प्रशस्ति पत्र, धातु की मूर्ति और एक उत्कृष्ट पारम्परिक हस्तशिल्प/हस्तकरघा वस्तु दी जाती है।

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