यूरोपीय संसद में मणिपुर हिंसा को लेकर पारित प्रस्ताव गलत संदर्भ पर आधारित

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राज्य की कुल आबादी में मेइती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है जो अधिकतर इंफाल घाटी में निवास करती है जबकि नगा और कुकी सहित अन्य आदिवासी जातियों की कुल आबादी में हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत है जो अधिकतर पहाड़ी जिलों में निवास करती है।

द कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रेटी (सीओसीओएमआई) ने कहा कि यूरोपीय संसद में 13 जुलाई को मणिपुर हिंसा को लेकर पारित प्रस्ताव गलत और भ्रामक संदर्भ पर आधारित है। इंफाल घाटी आधारित नागरिक संगठन ने रेखांकित किया कि मणिपुर में हिंसा धार्मिक आधार पर नहीं भड़की है। यूरोपीय संसद की अध्यक्ष रॉबर्टा मेटसोला को लिखी चिट्ठी में सीओसीओएमआई ने कहा, ‘‘ आपका प्रस्ताव गलत और भ्रामक संदर्भ द्वारा निर्देशित है जिसकी वजह से मणिपुर मुद्दे को लेकर आपकी गलत समझ बनी कि यह संघर्ष ईसाई अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक मेइती हिंदुओं के बीच हुआ।’’

नागरिक संगठन ने यूरोपीय संसद से कहा कि वह ‘आव्रजक चिन-कुकी नार्को-आतंकवाद’ और मेइती लोगों के बीच हुई हिंसा को सांप्रदायिक संघर्ष के रूप में पेश कर मणिपुर को ‘नया स्वर्णिम त्रिकोण’(मादक पदार्थ के केंद्र के तौर पर उल्लेख किया जाता है) न बनने दे।सीओसीओएमआई ने यूरोपीय संघ के सदस्यों की इस मुद्दे पर पेश की गई राय को खारिज करते हुए कहा कि उक्त राय इंटरनेट पर निहित स्वार्थ प्रेरित समूहों द्वारा फैलाए गए झूठ पर आधारित है। सीओसीओएमआई का यूरोपीय संघ को यह पत्र असम राइफल्स द्वारा संगठन के प्रमुख के खिलाफ देशद्रोह और मानहानि का मुकदमा दर्ज करने के कई दिन बाद सामने आया है। सीओसीओएमआई प्रमुख ने लोगों से ‘हथियार जमा नहीं करने’ की अपील की थी जिसके असम राइफल्स ने उक्त प्राथमिकी दर्ज की थी।

पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘‘हमने सीओसीओएमआई और उसके संयोजक जितेंद्र निंगोम्बा के खिलाफ चुराचांदपुर पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (राजद्रोह), धारा-153ए (विभिन्न समूहों के बीच धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास और आदि के आधार पर वैमनस्य उत्पन्न करना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। ’’राज्य में मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग के खिलाफ पहाड़ी जिलों में तीन मई को आयोजित ‘आदिवासी एकता मार्च’ के बाद जातीय हिंसा भड़क गई थी जिसमें अबतक 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और कई अन्य घायल हुए हैं। राज्य की कुल आबादी में मेइती की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत है जो अधिकतर इंफाल घाटी में निवास करती है जबकि नगा और कुकी सहित अन्य आदिवासी जातियों की कुल आबादी में हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत है जो अधिकतर पहाड़ी जिलों में निवास करती है।

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