फेक डील, फर्जी वसीयत और सलमान रुश्दी का एक सदी पुराना बंगला, दिल्ली HC के सबसे पुराने सिविल सूट की ये कहानी बेहद ही दिलचस्प है

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अभिनय आकाश । Jun 1 2023 4:10PM

दिल्ली के सिविल लाइंस में 4, फ्लैगस्टाफ रोड के काले रंग के गेट आसानी से नज़र से बच सकते हैं। हालांकि, इन साधारण फाटकों के पीछे एक ऐतिहासिक संपत्ति और कानूनी विवादों की भूलभुलैया शामिल है।

सिविल लाइंस मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूरी पर एक तरफ जीवंत बोगेनविलिया की बेल और दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के भारी सुरक्षा वाले आधिकारिक आवास के पास फ्लैग रोड के बंगले कई-कई एकड़ में फैले हैं। दिल्ली के सिविल लाइंस में 4, फ्लैगस्टाफ रोड के काले रंग के गेट आसानी से नज़र से बच सकते हैं। हालांकि, इन साधारण फाटकों के पीछे एक ऐतिहासिक संपत्ति और कानूनी विवादों की भूलभुलैया शामिल है। जिसकी जड़े पांच दशकों से जुड़ी हैं। 1900 के दशक की शुरुआत में निर्मित, विशाल एक मंजिला बंगला प्रशंसित बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद रुश्दी का था। 

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बंगले ने कई राजनेताओं की मेजबानी की 

रुश्दी परिवार ने अपना अधिकांश समय बंबई (अब मुंबई) में बिताया और अपनी ये आकर्षक संपत्ति किराए पर दी। दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार  1970 में दो किराएदार अधिवक्ता नानक चंद और कांग्रेसी भीकू राम जैन ने क्रमशः 259 रुपये और 300 रुपये का मासिक किराया दिया था। इसी दौरान जैन ने संपत्ति खरीदने का फैसला किया और रुश्दी शुरुआत में बेचने के लिए तैयार प्रतीत होते हैं। 4, फ्लैगस्टाफ रोड के पास ही दिप्रिंट से बात करते हुए भीकू जैन के बेटे नरेन जैन ने उस क्षण को याद करते हुए कहा कि मैं 16 साल का था जब मैंने अपने पिता और अनीस रुश्दी के बीच सौदे को होते देखा था। मैंने इन बगीचों में खेला है, इस घर ने कई राजनेताओं की मेजबानी की है, जिसमें मंत्री, सांसद, मुख्यमंत्री, यहां तक ​​कि पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं।

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दिल्ली में सलमान रुश्दी के पिता

जब अनीस रुश्दी दिसंबर 1970 में 3.75 लाख रुपये की राशि में भीखू जैन को घर बेचने के लिए सहमत हुए। उन्होंने 50 हजार रुपए बयाना भी अनीस अहमद को दे दिया। शेष बची राशी 15 महीनों में दी जानी थी। अनीस अहमद बयाना लेकर लंदन जाने के बाद फिर कभी नहीं लौटे। वहीं उनकी मृत्य़ु हो गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भीखूराम जैन ने अनीस अहमद को बार-बार भारत बुलाया ताकी डील को अंतिम रूप दिया जा सके, पर वे नहीं आए। बाद में इस मामले ने कानूनी विवाद का रूप ले लिया। यह मामला, वास्तव में दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित सबसे पुराना दीवानी मुकदमा है। पिछली आधी सदी में 5,373 वर्ग गज (1.12 एकड़) संपत्ति पर कम से कम सात कानूनी दावे किए गए हैं। यह लड़ाई भी उतनी ही टेढ़ी-मेढ़ी रही है जितनी लंबी थी। वर्तमान में 130 करोड़ रुपये की संपत्ति का मूल्यांकन करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष लंबित है।

7 साल, 100 सुनवाई, 130 करोड़ रुपये

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में दिल्ली हाउस पर अपना फैसला सुनाया - जिस साल रुश्दी ने अपना संस्मरण जोसेफ एंटन प्रकाशित किया, जिसमें फतवे के बाद एक दशक से अधिक समय तक छिपे रहने के उनके जीवन का वर्णन किया गया था। उस वर्ष 3 दिसंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जैन वास्तव में समझौते के अपने पक्ष को पूरा करने के लिए "तैयार और इच्छुक" थे। इसने यह भी कहा कि रुश्दी का इस बात पर जोर देना उचित नहीं था कि जैन को आगे का भुगतान सीधे उन्हें करना चाहिए न कि आयकर अधिकारियों को। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि बिक्री संपत्ति के बाजार मूल्य पर की जानी चाहिए। इसके वर्तमान मूल्य का सही आकलन करने के लिए पर्याप्त जानकारी के अभाव में, शीर्ष अदालत ने यह कार्य दिल्ली उच्च न्यायालय को सौंपा। नतीजतन, मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में वापस आ गया, जिसने संपत्ति के बाजार मूल्य को निर्धारित करने के लिए सात और साल लग गए। इन सात वर्षों में मामला सौ से अधिक बार उच्च न्यायालय के समक्ष आया। अंत में, दिसंबर 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने घोषणा की कि संपत्ति का बाजार मूल्य 3 दिसंबर, 2012 तक 130 करोड़ रुपये होना चाहिए।

भीखू जैन के परिवार के सदस्य ने भी किया दावा

मालिकाना हक को लेकर होड़ जारी रहने के बावजूद भीखू जैन के परिवार के सदस्य भी फ्लैगस्टाफ रोड हाउस में किरायेदारों के रूप में अपनी स्थिति का दावा करने की मांग कर रहे हैं। सितंबर 2016 में, उन्होंने दिल्ली तीस हजारी अदालत में दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम 1958 की धारा 27 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि उन्हें सही किराएदार के रूप में किराया जमा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनके आवेदन में दावा किया गया है कि रुश्दी केवल उन्हें परेशान करने के लिए" और परिसर से बेदखली के लिए झूठा आधार बनाने के लिए किराया स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसलिए, उन्होंने किराया नियंत्रक के पास किराया जमा करने की मांग की। अक्टूबर 2019 में उनके आवेदन की अनुमति दी गई थी। इस याचिका में आगे दावा किया गया कि अनीस रुश्दी की वसीयत एक जाली और मनगढ़ंत दस्तावेज थी।

ताजा सूरते हाल ये है कि उस बंगले के स्वामित्व को लेकर विवाद जारी है। हालांकि भीखूराम जैन, अनीस अहमद और लज्जाराम कपूर तीनों को गुजरे जमाना हो गया। लेकिन 4 फ्लैग स्टाफ रोड बंगले के मालिकाना हक के लिए केस चल ही रहा है। अब ऐसे में इस पर पता नहीं कब अंतिम फैसला आता है। 

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