दीदी से बनाई दूरी, सहकार के 'शाह' से मुलाकात की क्या है मजबूरी? पवार सत्ता में आते हैं, समझ में नहीं

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अभिनय आकाश । Aug 3 2021 5:42PM

शरद पवार ने अमित शाह से मुलाकात की है जिसे औपचारिक तौर पर महाराष्ट्र के कोरोना और अन्य मुद्दों पर चर्चा बताया गया। मीटिंग के बारे में पवार ने ट्वीट कर जानकारी देते हुए बताया कि चीनी सहकारी क्षेत्र के सामने आने वाले मुद्दों पर चर्चा करने के लिए केंद्रीय सहकारिता मंत्री से मुलाकात की है।

मोदी सरकार के खिलाफ संपूर्ण विपक्ष को एकजुट करने की राहुल गांधी की कोशिशों के बीच एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। महाराष्ट्र से जुड़े मसलों पर दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत बचाव के काम पर भी चर्चा हुई है। लेकिन मुलाकात का मुख्य मुद्दा मोदी सरकार का नवगठित सहकारिता मंत्रालय से जुड़ी ही रहा। पिछले महीने 17 जुलाई को शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी।  शरद पवार के घर पर उनकी नितिन गडकरी के साथ गुप्त मीटिंग हुई। पिछले पांच दशक से सियासत की अबूझ पहेली बने शरद पवार के दांव का अंदाजा लगाना बेहद ही कठिन रहा है। वो किसके साथ हैं किसके साथ नहीं इसका दावा कोई नहीं कर सकता। भारतीय जीवन बीमा निगम की पॉलिसी की पंच लाइन है 'जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी'। लेकिन सियासत के लिहाजे से देखें तो शरद पवार सत्ता के साथ भी और सत्ता के बाद भी वाली नीति पर चलते हैं। यानी खुद को पावर सेंटर में बनाए रखना उन्हें बखूबी आता है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर को अगर कोई सबसे पहले भांप पाया तो वो पवार ही थे। इधर लोग चुनाव परिणाम के लिए टेलीविजन सेट से चिपके थे और उधर बीच दोपहरी में 1 बजे के करीब शरद पवार ने नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन देकर शिवसेना की बारगेनिंग पावर को ही समाप्त कर दिया। जबकि दूसरी बार सत्ता हाथ में आती नजर आई तो न केवल महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार बनाई बल्कि बिना किसी शोर-शराबे के बता दिया कि आप दिल्ली में जो होंगे वो होंगे महाराष्ट्र में तो हम ही हम हैं।

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बीते कुछ दिनों की सियासी कहानियों पर गौर करें तो पाएंगे कि पहले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ममता के बंगाल फतेह के बाद शरद पवार से मिलते हैं। फिर शरद पवार के दिल्ली में विपक्षी दलों की बैठक बुलाए जाने की खबर सामने आती है। लेकिन अचानक मोदी विरोधी किसी बैठक के बुलाए जाने की बात से इनकार करना बल्कि यशवंत सिन्हा के ऊपर ही इस पूरी बैठक का ठीकरा फोड़ देना। लेकिन इस मीटिंग का ही असर था कि कांग्रेस नेतृत्व तक अंदर से हिल गया - और प्रतिनिधि बना कर कमलनाथ को शरद पवार के पास हालचाल लेने के नाम पर भेजा गया। शरद पवार को बयान भी देना पड़ा था कि विपक्षी मोर्चे से कांग्रेस को बाहर रखने जैसा कोई इरादा नहीं है। 

ममता से दूरी बनाने के मायने

ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा इन दिनों काफी चर्चा में रहा। दीदी की तरफ से हर महीने दिल्ली आने की बात भी कही गई। ममता बनर्जी ने दिल्ली में सोनिया गांधी से चाय पर चर्चा के साथ ही दिल्ली के सीएम सहित कई नेताओं से मुलाकात की और अपने दौरे को सफल बताया। लेकिन सबसे अहम बात ये है कि दिल्ली में होने के बावजूद भी शरद पवार की ममत बनर्जी से मुलाकात नहीं हो पाई। इस दौरान शरद पवार खुद चल कर मीसा भारती के घर पहुंचते हैं और लालू यादव से मुलाकात करते हैं। ममता बनर्जी और शरद पवार के बीच सियासी रिश्ते को समझने के लिए इतिहास की कुछ बातें याद दिलाते हैं। पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान प्रचार के लिए शरद पवार को कोलकाता जाना था। लेकिन शरद पवार बंगाल चुनाव में प्रचार करते नजर नहीं आए। काफी दिनों बाद बताया गया कि सर्जरी की वजह से कुछ दिनों तक पवार राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहे। 21 जुलाई को ममता दीदी शहीद दिवस पर रैली करती हैं तो वर्चुअल माध्यम से शरद पवार उसमें उपस्थित होते हैं। लेकिन 26 जुलाई से ममता के शुरू हुए दिल्ली दौरे के वक्त उन्होंने इस पॉलिटिकल मीट से खुद को दूर कर लिया। 

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अमित शाह से मुलाकात 

शरद पवार ने अमित शाह से मुलाकात की है जिसे औपचारिक तौर पर महाराष्ट्र के कोरोना और अन्य मुद्दों पर चर्चा बताया गया। मीटिंग के बारे में पवार ने ट्वीट कर जानकारी देते हुए बताया कि चीनी सहकारी क्षेत्र के सामने आने वाले मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आज नई दिल्ली में केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह के साथ एनएफसीएसएफ (नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड) के अध्यक्ष जयप्रकाश दांडेगांवकर और प्रकाश नाइकनवरे के साथ एक संक्षिप्त बैठक हुई। पवार ने कहा कि सबसे पहले, मैंने अमित शाह को भारत के पहले सहकारिता मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने पर बधाई दी। बैठक के दौरान, हमने देश के वर्तमान चीनी परिदृश्य और अत्यधिक चीनी उत्पादन के कारण होने वाली समस्याओं पर चर्चा की।

नए सहकारिता मंत्रालय के गठन और अमित शाह को इसकी कमान सौंपे जाने के बाद इस नए पहल का स्वागत करने की बजाए इसका विरोध करने वालों की पहली पंक्ति में एनसीपी के शरद पवार ही थे। शरद पवार का कहना था कि राज्य के संविधान के मुताबिक, सहकारिता राज्य सरकार का मामला है, केंद्र सरकार राज्य द्वारा बनाए गए सहकारिता कानून में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट -2002 के तहत 8 मार्च 2021 तक देश में 1466 समितियां थीं। जिसमें से सबसे ज्यादा 567 महाराष्ट्र में हैं। मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी एक से अधिक राज्यों में काम करती हैं। महाराष्ट्र में सहकारी संस्थानों की जड़े काफी गहरी हैं। लेकिन इन पर कुछ ही लोगों का कब्जा है और बताया जाता है कि महाराष्ट्र में सौ से अधिक विधायक किसी न किसी सहकारी संस्थाओं से जुड़े हैं। महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों पर पवार परिवार की पकड़ा है। ऐसे में हजारों करोड़ रुपयों के इस क्षेत्र में सरकार की एंट्री को विपक्ष खासकर पवार परिवार के द्वारा आचोलचना की वजह के तौर पर देखा जा रहा है। 

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