शीला हैं बीमार, चाको ने कम किए अधिकार, कांग्रेस की नियति बनी अंतर्कलह और रार

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अभिनय आकाश । Jul 18 2019 1:27PM

यह सारा फसाद पिछले हफ्ते शीला दीक्षित द्वारा 14 जिला एवं 280 ब्लॉक पर्यवेक्षक घोषित किए जाने का बाद शुरू हुआ। उसके बाद तीनों कार्यकारी अध्यक्ष (हारून यूसुफ, राजेश लिलोठिया और देंवेंद्र यादव) ने शीला को पत्र लिखा था कि इस नियुक्ति के वक्त तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को मीटिंग में नहीं बुलाया गया।

जिन राज्यों में कांग्रेस के बीच अंदरूनी कलह चल रही है उन राज्यों में दिल्ली का नाम भी शुमार हो गया है। दिल्ली दरबार के दंगल में छह महीने से भी कम का वक्त शेष है। जहां एक तरफ भाजपा और आम आदमी पार्टी अपनी तैयारी में जुटी है वहीं कांग्रेस में अभी वर्चस्व की लड़ाई जारी है। कांग्रेस की वैसे ही दिल्ली में कई सालों से हालत खस्ता है, लेकिन आने वाले समय में भी कांग्रेस मैदान मार लेगी इसके आसार भी पार्टी नेताओं के बीच बढ़ते रार से धूमिल होते नजर आ रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस के दो बड़े नेता पीसी चाको और शीला दीक्षित के बीच टकराहट एक बार फिर सामने आ रही है। 

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दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको ने शीला दीक्षित को चिट्ठी लिखी है कि वो उनका फोन नहीं उठा रही हैं और न ही उनके पत्र का जवाब दे रही हैं। पीसी चाको ने पत्र लिखकर शीला दीक्षित की खराब सेहत की बात करते हुए आगे की कार्रवाई करते हुए तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को यह अधिकार दे दिया कि वो शीला के बगैर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की मीटिंग कर सकते हैं और इस मीटिंग की जो रिपोर्टिंग होगी वो प्रदेश अध्यक्ष को की जाएगी। फौरी तौर पर देखा जाए तो पीसी चाको साफ तौर पर यह कह रहे हैं कि शीला दीक्षित नाम की प्रदेश अध्यक्ष रहें और सारे निर्णय तीनों कार्यकारी अध्यक्ष खुद कर लेंगे। जिसके बाद शीला दीक्षित को डमी प्रेजीडेंट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसके बाद खबर यह भी है कि शीला दीक्षित कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल से बात कर रही हैं और सारे मामले से उन्हें अवगत करा कर शिकायत कर रही हैं। 

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गौरतलब है कि यह सारा फसाद पिछले हफ्ते शीला दीक्षित द्वारा 14 जिला एवं 280 ब्लॉक पर्यवेक्षक घोषित किए जाने का बाद शुरू हुआ। उसके बाद तीनों कार्यकारी अध्यक्ष (हारून यूसुफ, राजेश लिलोठिया और देंवेंद्र यादव) ने शीला को पत्र लिखा था कि इस नियुक्ति के वक्त तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को मीटिंग में नहीं बुलाया गया। उन्होंने शीला दीक्षित से यह निवेदन किया था कि उन नियुक्तियों को रद्द कर दोबारा मीटिंग कर नियुक्ति हो। सूत्रों के मुताबिक इन्होंने इन पत्रों की प्रतियां पार्टी आलाकमान को भी भेजी थीं। वैसे तो दिल्ली कांग्रेस में आपसी खींचतान की खबर काफी समय से चलती आ रही है। जो फैसले पीसी चाको करते हैं उसे शीला दीक्षित पसंद नहीं करतीं और जो फैसले शीला दीक्षित लेती हैं उसमें पीसी चाको अड़ंगा लगा देते हैं। यह सिलसिला लोकसभा चुनाव से पहले से ही चला आ रहा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के मुद्दे पर पीसी चाको जहां खुलकर समर्थन कर रहे थे वहीं शीला दीक्षित इसके खिलाफ थीं। लेकिन दोनों के बीच का यह मसला पिछले पंद्रह दिन से कांग्रेस के अंदरूनी विवाद के रूप में चल रहा था जो अब सार्वजनिक रुप से सामने आ गया है। केंद्रीय नेतृत्व में जो भ्रम की स्थिति है उसका असर भी साफ देखने को मिल रहा है। 

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वैसे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस विवाद सुलझाने की कवायद बीते दिनों भी की गई थी जब राहुल गांधी ने दिल्ली कांग्रेस के तमाम नेताओं के साथ समीक्षा बैठक की थी। समीक्षा बैठक में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित और तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के साथ-साथ सभी हारे हुए प्रत्याशी भी शामिल हुए थे। जिसमें गुटबाजी और आपसी कलह जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई। राहुल गांधी के सामने सभी नेताओं ने एकजुट होकर काम करने का वादा किया, लेकिन इसे तोड़ने में पार्टी नेताओं ने एक पल की भी देर न की। लोकसभा चुनाव से पहले भी शीला दीक्षित और पीसी चाको के दो गुटों में बंटी कांग्रेस समन्वय की कमी की वजह से बुरी तरह पस्त नजर आई। इसके अलावा अजय माकन और शीला दीक्षित के बीच के मतभेद कई बार सुर्खियां भी बने। नतीजतन दिल्ली में वापसी के सपने संजोने वाली कांग्रेस को शून्य ही हासिल हुआ। दिल्ली में 56.56 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा ने सूबे की सातों सीटों को फिर से अपने नाम कर लिया। वहीं 22.51 प्रतिशत वोट के साथ कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। ऐसे में दिल्ली के विधानसभा चुनाव में लगभग छह महीने का वक्त शेष रह गया है और भाजपा और आम आदमी पार्टी अपनी तैयारियों में लगी हैं ऐसे में अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस के लिए वापसी कर पाना टेढ़ी खीर होगा। दिल्ली में कांग्रेस की अंदरूनी कलह पर गौर करें तो जहां एक तरफ शीला दीक्षित के पास गांधी परिवार का करीबी होने के चलते वीटो पावर है तो दूसरी तरफ पीसी चाको शीला विरोधी आवाज और नियमों और प्रक्रिया के हवाला देकर उनकी मुश्किलें बढ़ा देते हैं। लेकिन नतीजतन इसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को चुकाना पड़ता है। 

 

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