शुकदेव ने राजा परीक्षित को बताया कि सात दिन तो बहुत हैं, सनकादिक ऋषि ने तो 48 घंटे में मोक्ष प्राप्त कर लिया

Madan lal Durvasa

शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को भगवान कपिल की कथा सुनाई। कपिलदेव महाराज अपनी माता को भक्ति की बाते बताते है। रजोगुण, सतोगुण,तमोगुण के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जब शुकदेव जी राजा परीक्षित को भागवत कथा सुना रहे थे तो देवताओं ने शुकदेव जी से कहा कि आप राजा परीक्षित को अमृत पिला दीजिये ,जिससे कि वे दीर्घजीवी हो जायेंगे

ज्वालामुखी ।   सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वालामुखी में श्री सत्य नारायण मंदिर के प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में कथा व्यास श्री मदन लाल दुर्वासा जी ने कथा सुनाते हुए कहा कि शुकदेव ने राजा परीक्षित को बताया कि सात दिन तो बहुत हैं, सनकादिक ऋषि ने तो 48 घंटे में मोक्ष प्राप्त कर लिया।

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शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को भगवान कपिल की कथा सुनाई। कपिलदेव महाराज अपनी माता को भक्ति की बाते बताते है। रजोगुण, सतोगुण,तमोगुण के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जब शुकदेव जी राजा परीक्षित को भागवत कथा सुना रहे थे तो देवताओं ने शुकदेव जी से कहा कि आप राजा परीक्षित को अमृत पिला दीजिये ,जिससे कि वे दीर्घजीवी हो जायेंगे और देवताओ को कथामृत पिला दीजिये जिससे कि वे दिव्यजीवी हो जायेंगे |

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लेकिन श्रीशुकदेव जी ने यह कथामृत राजा परीक्षित को ही पिलाया क्योंकि वे ही इस अमृत के पूर्ण अधिकारी थे| यदि स्वर्ग में कथा मिलती तो देवता धरती पर कथा श्रवण करने नहीं आते| सूत जी कहते हैं कि नारद जी ने सनकादियों से भागवत की सप्ताह-कथा श्रवण किया| नारद जी को उदास देखकर सनकादियों ने पूछा कि मुनिवर! आप उदास क्यों? तब नारद जी अपनी उदासीनता के कारण की कथा सुनाने लगे|एक बार वे वृन्दावन गये | वहां पर उन्होंने देखा कि दो वृद्ध पुरुष बेहोश पड़े हैं और एक तरुण स्त्री रो रही है | नारद जी ने उस स्त्री से रोने का कारण पूछा तो वह स्त्री बोली कि हे भगवन! मेरा नाम भक्ति है| ये दोनों ज्ञान और वैराग्य मेरे पुत्र हैं जो वृन्दावन में बूढ़े और बेहोश हो गये हैं क्योकि वृन्दावन में केवल भक्ति का ही निवास है| नारदजी भक्ति का दुःख सुनकर और ज्ञान और वैराग्य को मूर्छित पड़े देखकर उदास हो गये|

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नारद जी ने सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार से दुःख निवारण का कारण पूछा| सनकादि ने नारद जी से ज्ञान और वैराग्य के निमित्त भागवत कथा सुनाने के लिये कहा| सनकादि ने नारद जी से कहा कि श्रीमद्भागवत की कथा वेद और उपनिषदों का सार है इसलिये वेद और उपनिषदों से अलग उनकी फलरूपा होने के कारण वह अति उत्तम है| बीज से फल और फल से बीज की उत्पति होती है| वेद वृक्ष हैं| भागवत फल है| बिना वृक्ष के फल नहीं, किंतु जो स्वाद फल में है, वह वृक्ष में कहाँ? इस भागवत रूपी फल को तोते रूपी शुकदेव जी ने झूठा कर दिया जिससे कि यह फल मीठा हो गया है | अर्थात् पृथ्वी पर भागवत कथा का प्रारम्भ श्रीशुकदेव जी ने किया है|

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अत: इस भागवत रूपी फल को पिया जाता है , खाया नहीं जाता क्योंकि इसमें छिलका व गुठली नहीं होती | नारद जी जो एक क्षण भी कहीं नहीं ठहरते हैं उन्होंने भी इस कथा को एक सप्ताह तक एक जगह ठहर  कर सुना था| देवर्षि नारद ने सनकादिकों से भक्ति के कष्ट निवारण के लिये बद्रीकाश्रम के पास आनन्द-वन नामक तट पर भागवत की कथा श्रवण की थी| वृन्दावन में अपने पुत्र ज्ञान वैराग्य के मूर्छित होने के कारण दुःख ग्रस्त भक्ति वहीं आनन्दवन में अपने पुत्रों के साथ प्रकट हुई| कथा के द्वारा भक्ति का कष्ट निवारण हुआ और ज्ञान वैराग्य वृद्ध से युवा हो गये।कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। कथा के दौरान धार्मिक गीतों पर नृत्य किया। 

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