LoC पर तैनाती से पहले जवानों की होगी मानसिक ट्रेनिंग ! कश्मीर घाटी के लिए 28 दिन का कोर्स
बैटल स्कूल का कोर्स काफी अहम है क्योंकि लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) या फिर कश्मीर घाटी में तैनाती से पहले सेना के अफसरों और जवानों को बैटल स्कूल में प्री-इंडक्शन कोर्स करना पड़ता है।
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में तैनाती से पहले अब भारतीय सेना के अफसरों और जवानों की मानसिक ट्रेनिंग कराने पर विचार किया जा रहा है। ट्रेनिंग दो तरह से हो सकती है। लाइन ऑफ कंट्रोल और घाटी में तैनाती के लिए अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग होगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय सेना के 15वीं कोर के बैटल स्कूल में साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग का भी एक हिस्सा कोर्स के साथ जोड़ा गया है।
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रिपोर्ट्स के मुताबिक बैटल स्कूल का कोर्स काफी अहम है क्योंकि लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) या फिर कश्मीर घाटी में तैनाती से पहले सेना के अफसरों और जवानों को बैटल स्कूल में प्री-इंडक्शन कोर्स करना पड़ता है। यहां पर इस तरीके से ट्रेनिंग दी जाती है कि घाटी में सामने आने वाले हर एक शख्स आतंकी नहीं है। जबकि सीमा रेखा पार कर आने वाला शख्स आतंकी हो सकता है।
कोर्स के माध्यम से अफसरों और जवानों को मानसिक तौर पर मजबूत किया जाता है और उनके दिमाग में यह डाला जाता है कि कभी भी मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। घाटी के लोगों की रक्षा करना और उनकी पहचान करना बताया जाता है। इसके साथ ही अफसरों और जवानों को यह बताया जाता है कि एनकाउंटर के समय किसी भी नागरिक को क्षति नहीं पहुंचना चाहिए।
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सेना के सूत्रों के मुताबिक, पुलवामा जिले के अवंतीपोरा इलाके में ख्रू में 15 कोर बैटल स्कूल (CBS) में मॉड्यूल पेश किया गया है। साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग का मुख्य मकसब जवानों को मानसिक तौर से मजबूत करना है। ताकि वह दुर्दम से दुर्दम परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले सकें।
अलग-अलग है कोर्स
एलओसी और घाटी में तैनात अफसर और जवान के लिए अलग-अलग कोर्स है। बैटल स्कूल में एलओसी में तैनात होने वाले जवानों के लिए 14 दिन का कोर्स होता है। जबकि कश्मीर घाटी में तैनाती से पहले जवानों को 28 दिन का कोर्स करना पड़ता है। नई मानसिक ट्रेनिंगको इस नियमित कार्यक्रम के हिस्से के रूप में पेश किया गया है।
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एक अधिकारी ने बताया कि डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च (DIPR) और डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की एक लैब ने इस मॉड्यूल को डिजाइन किया गया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कश्मीर घाटी और एलओसी की परिस्थितियां अलग-अलग हैं। एलओसी पर तो जवानों को यह स्पष्ट रहता सीमापार करने का प्रयास करने वाले शख्स आतंकी हो सकता है।
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