कहानी चोल साम्राज्य की जहां हिन्दुत्व को मिला बल, खुद शिव भक्त थे पोन्नियिन सेल्वन, नौसेना का था बोलबाला

वर्तमान समय में देखें तो नौसेना की ताकत का बखान होता है। चोल साम्राज्य इंडोनेशिया और मलेशिया तक फैला हुआ था। वहां पहुंचने के लिए समुद्री रास्ता तय करना पड़ता था। यही कारण था कि चोल साम्राज्य की नेवी को बहुत ही ताकतवर मानी जाती थी।
हाल में ही आई मणिरत्नम की फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन-1’ ने दुनिया में बॉक्स ऑफिस पर 300 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर ली है। 30 सितंबर को यह फिल्म दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में मुख्य भूमिका चियान विक्रम, जयम रवि, कार्थी, तृषा कृष्णन, ऐश्वर्या राय बच्चन की है। बताया जा रहा है कि यह फिल्म का प्रथम भाग है। दूसरा भाग अगले साल तक आ सकता है। यह तमिल उपन्यास पर आधारित है, जिसे कल्कि कृष्णमूर्ति ने 1955 में लिखा था। इस फिल्म में चोल साम्राज्य के शासक राजराजा चोल प्रथम के शुरूआती दिनों की कहानी बयां की गई है।
इसे भी पढ़ें: पराक्रमी व प्रसन्नचित व्यक्तित्व के धनी थे गुरु गोविन्द सिंह
क्यों है इस फिल्म की चर्चा
दरअसल, यह फिल्म राजराजा प्रथम या पोन्नियन सेल्वन पर आधारित है। हालांकि, यह भी कहा जा रहा कि भले ही ऐतिहासिक में ऐतेहासिक पात्रों को लिया गया है लेकिन यह फिक्शनल ड्रामा है। पोन्नियन सेल्वन के अर्थ को समझने की कोशिश करें तो इसका साफ मतलब है कावेरी नदी का पुत्र। जब राजराजा प्रथम 5 साल के थे तो वे कावेरी में गिर गए थे और उन्हें बचा लिया गया था। इसी के बाद उनका नाम पोन्नियन सेल्वन नाम पड़ा। इस फिल्म की शुरुआत सम्राट सुंदर चोल के साथ होती है जिन्हें बीमारी से ग्रस्त दिखाया गया है। उस वक्त उनके दोनों बेटे आदित्य करिकलन और पोन्नियन सेल्वन दूर होते हैं। सुंदर चोल के खिलाफ उनके ही परिवार में षड्यंत्र रचा जाता है। उन पर हमले की कोशिश भी होती है। लेकिन उन्हें एक रहस्यमयी महिला बचाती है। इसी महिला को पोन्नियिन सेल्वन बाद में ओमाई रानी कहते हैं। भले ही फिल्म कल्कि के किताब पर आधारित है। लेकिन दावा किया जाता है कि पोन्नियिन सेल्वन का किरदार पूरी तरह से ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है। हालांकि इस किताब को चोल साम्राज्य के आसपास रखा गया है और उस समय की संस्कृति और विरासत की तारीफ की गई है।
चोल राजवंश का इतिहास
चोल राजवंश का इतिहास काफी पुराना है। 9वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक के बीच एक हिंदू साम्राज्य की स्थापना की गई थी। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह चोल वंश का दूसरा युग था। इससे पहले प्राचीन चोल वंश 300 ईसा पूर्व से सातवीं सदी तक राज किया। हालांकि उस वक्त का बहुत ज्यादा प्रमाण नहीं मिलता है। इस दौरान जिस राजा का सबसे ज्यादा जिक्र होता है वह थे करिकला। सम्राट अशोक के शिलालेखों पर भी करिकला का जिक्र मिल जाता है।
इसे भी पढ़ें: Tejas और Rafale के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने Prachand लड़ाकू हेलीकॉप्टर में उड़ान भर रचा इतिहास
चोल साम्राज्य के सम्राट थे राजराजा प्रथम
इतिहास में चोल साम्राज्य की शुरुआत आठवीं सदी में बताया गया है। इसी दौरान राजराजा प्रथम यानी कि पोन्नियन सेल्वन का जिक्र है जिन्होंने 985 ईस्वी से 1014 ईस्वी तक शासन किया है। बताया जाता है कि इस दौरान चोल साम्राज्य ने अपना वर्चस्व स्थापित किया था। राज प्रथम के बेटे राजेंद्र प्रथम के दौरान भी चोल साम्राज्य की तूती बोलती थी। इतिहासकारों का मानना है कि यह साम्राज्य मालदीव और मलेशिया से लेकर श्रीलंका तथा उत्तर में आंध्र गोदावरी तक फैला हुआ था। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है चोल साम्राज्य राजराजा प्रथम कितने ताकतवर सम्राट थे।
चोल साम्राज्य की ताकत
वर्तमान समय में देखें तो नौसेना की ताकत का बखान होता है। चोल साम्राज्य इंडोनेशिया और मलेशिया तक फैला हुआ था। वहां पहुंचने के लिए समुद्री रास्ता तय करना पड़ता था। यही कारण था कि चोल साम्राज्य की नेवी को बहुत ही ताकतवर मानी जाती थी। चोल साम्राज्य का कब्जा समुद्री इलाके पर भी था। उसे भारत का पहला और एकमात्र सामुद्रिक साम्राज्य भी कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो चोल राजाओं के पास जो नौसेना की ताकत थी, उसके आगे ब्रिटेन, फ्रांस और पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देशों की नौसेना की ताकत फीकी पड़ जाती थी।
हिंदू देवी देवताओं में थी आस्था
दावा किया जाता है कि चोल राजाओं की आस्था हिंदू-देवी देवताओं में थी। इसकी शुरुआत राजराज प्रथम से ही ही हुई थी। इतिहासकारों का मानना है कि राजराजा प्रथम में कई मंदिरों का निर्माण कराया था। वह बहुत बड़े शिव भक्त थे। लेकिन कुछ इतिहासकार उन्हें सेक्यूलर भी दिखाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा दावा किया जाता है कि राजराजा प्रथम ने विष्णु के मंदिरों के निर्माण में योगदान किया। चोल राजाओं के शासन के दौरान कई बड़े भव्य हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया गया। इसी में कावेरी नदी के किनारे बसा एक मंदिर बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण भी कराया गया था। बृहदेश्वर मंदिर आज भी अपनी कला को लेकर चर्चित है। यही कारण है कि यूनेस्को ने उसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया है। ऐरावतेश्वर मंदिर और चोलपुरम मंदिर भी वर्ल्ड हेरिटेज साइट शामिल हैं जिन्हें चोल साम्राज्य ने बनवाया था।
अन्य न्यूज़












