विजय दिवस स्पेशल: इस फौजी की कहानी सुन नम हो जाएंगी आंखें, 19 साल की उम्र में 15 गोलियां खाकर भी पाक सैनिकों से अकेले भिड़ गए

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अभिनय आकाश । Jul 24 2021 2:52PM

योगेंद्र सिंह यादव 27 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना की 18 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। शादी के पंद्रह दिनों बाद उन्हें अपनी पोस्टिंग कश्मीर वैली में जाना पड़ा। योगेन्द्र सिंह यादव को टाइगर हिल के तीन सबसे ख़ास बंकरों पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था।

कारगिल युद्ध में जीत के बाद चार योद्धाओं को परमबीर चक्र से सम्मनाति किया गया। कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन मनोज पांडेय को मनरणोपरांत ये सम्मान दिया गया था। लेकिन दो परमबीर ऐसे भी थे जो पहले दुश्मन की मौत बने। फिर अपनी मौत के मुंह से जिंदा लौट आएं। आज आपको 19 साल में परमवीर चक्र पाने वाले फौजी योगेंद्र सिंह यादव की कहानी। 

योगेंद्र सिंह यादव की कहानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश के  बुलंदशहर के गांव औरंगाबाद से जहां 10 मई, 1980 को कर्ण सिंह यादव और संतरा देवी  के परिवार में किलकारियां गूंजी। सैनिक पिता की परवरिश में बेचा शौर्य के किस्से सुनकर बड़ा हुआ। महज 18 बरस की उम्र में ही भारतीय सेना में भर्ती हो गए। 19 साल की उम्र में ही उनकी शादी रीना यादव से हो गई। शादी की छुट्टियों के बाद योगेंद्र जब ड्यूटी पर लौटे तो जिंदगी की सबसे बड़ी चनौती उनका इंतजार कर रही थी। 

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टाइगर हिल के बंकरों पर किया कब्जा

योगेंद्र सिंह यादव 27 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना की 18 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। शादी के पंद्रह दिनों बाद उन्हें अपनी पोस्टिंग कश्मीर वैली में जाना पड़ा। योगेन्द्र सिंह यादव को टाइगर हिल के तीन सबसे ख़ास बंकरों पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था। योगेंद्र यादव सहित 14 सिपाहियों को दो कंपनी में विभाजित करके पहाड़ी पर अगले और पिछले भाग से चढ़ाया गया, जिससे दुश्मनों की ताकत दो हिस्सों में बंट जाए।  4 जुलाई 1999 को योगेन्द्र अपने कमांडो प्लाटून 'घातक' के साथ आगे बढ़े। उन्हें करीब-करीब 90 डिग्री की सीधी चढ़ाई पर चढ़ना था। यह एक जोखिम भरा काम था। मगर सिर्फ़ यही एक रास्ता था, जहां से पाकिस्तानियों को चकमा दिया जा सकता था। विरोधियों के आने की आहट सुन पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी। इसमें कई भारतीय जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। जिससे भारतीय जवानों को पीछे हटना पड़ा। फिर 5 जुलाई को 18 ग्रनेडियर्स के 25 सैनिक फिर आगे बढ़े। असंभव सी लगनी वाली इस चढ़ाई के लिए योगेंद्र ने रस्सी का सहारा लिया। पाकिस्तानियों ने उन पर ज़बरदस्त गोलीबारी की। पाँच घंटे तक लगातार गोलियां चलीं। 18 भारतीय सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब वहाँ सिर्फ़ 7 भारतीय सैनिक बचे थे। 

15 गोलियां लगने के बाद भी दिखाया अद्मय साहस 

बीबीसी से बात करते हुए खुद परमबीर योगेंद्र ने घटना का जिक्र करते हुए बताया था 35 पाकिस्तानियों ने हम पर हमला किया और हमें चारों तरफ़ से घेर लिया. मेरे सभी छह साथी मारे गए।  भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों की लाशों के बीच पड़ा हुआ था। मेरे पैर, बाँह और शरीर के दूसरे हिस्सों में में करीब 15 गोलियाँ लगीं थी।मैंने अपनी सारी ताकत जुटा कर अपना ग्रेनेड निकाला उसकी पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दिया। वो ग्रेनेड एक पाकिस्तानी सैनिक के हेलमेट पर गिरा। उसके चिथड़े उड़ गए। मैंने एक पाकिस्तानी सैनिक की लाश के पास पड़ी हुई पीका रायफ़ल उठा ली थी। मेरी फ़ायरिंग में पाँच पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। वहीं पर एक नाला बह रहा था। वो उसी हालत में उस नाले में कूद गये। पाँच मिनट में वो बहते हुए 400 मीटर नीचे आ गए। वहाँ भारतीय सैनिकों ने उन्हें नाले से बाहर निकाला। यादव को उनकी असाधारण वीरता के लिए भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र दिया गया। 

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