Al Falah Medical College के छात्र पूछ रहे सवाल- इतनी बदनामी के बाद अब हमें नौकरी कौन देगा?

Al Falah Medical College
Source X: @Alfalah_Uni

कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र इस पूरे घटनाक्रम से परेशान हैं। एक छात्र ने कहा, “हमने यहां पढ़ाई के लिए एक करोड़ रुपये खर्च किए, हॉस्टल का किराया तीन लाख रुपए सालाना है। अब अगर कॉलेज की छवि खराब हो गई, तो नौकरी कौन देगा?”

फरीदाबाद के धौज स्थित अल-फलाह मेडिकल कॉलेज एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन वजह कोई अकादमिक उपलब्धि नहीं, बल्कि आतंकवाद से जुड़ी गिरफ्तारियां हैं। दरअसल इस कॉलेज के इमरजेंसी विंग में कार्यरत जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. मुजम्मिल गनई को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने “अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकी मॉड्यूल” से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया है। वहीं दो अन्य डॉक्टर, डॉ. शाहीन अंसारी और डॉ. उमर नबी को भी इस केस से जोड़ा गया है। हम आपको बता दें कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी को 2014 से अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट संचालित कर रहा है। यहां की कुलपति और मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. भूपिंदर कौर आनंद हैं।

उधर, कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र इस पूरे घटनाक्रम से परेशान हैं। एक छात्र ने कहा, “हमने यहां पढ़ाई के लिए एक करोड़ रुपये खर्च किए, हॉस्टल का किराया तीन लाख रुपए सालाना है। अब अगर कॉलेज की छवि खराब हो गई, तो नौकरी कौन देगा?” कॉलेज के छात्रों के अनुसार, मुज़म्मिल से उनका कोई विशेष संपर्क नहीं था। तीसरे वर्ष के एक एमबीबीएस छात्र ने बताया, “वो इमरजेंसी में काम करते थे, इसलिए हमें कभी पढ़ाया नहीं। उनकी गिरफ्तारी की खबर से ही उनके बारे में पता चला।” उसी छात्र ने आगे कहा, “उनके साथ जिन डॉक्टरों के नाम आए हैं— डॉ. शाहीन अंसारी और डॉ. उमर नबी, उन्हें भी कॉलेज में बहुत कम लोग जानते थे। अब हमें अपनी नौकरी को लेकर चिंता है। कौन हमें भर्ती करेगा जब हमारे कॉलेज का नाम आतंक के साथ जोड़ा जा रहा है?”

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एक अन्य छात्र ने बताया कि उसने डॉ. उमर को करीब दस दिन पहले पढ़ाते देखा था। उसने कहा कि वे शांत स्वभाव के थे, क्लास ठीक लेते थे। डॉ. मुज़म्मिल क्लास बहुत कम लेते थे, लेकिन डॉ. शाहीन हमारी फार्माकोलॉजी की एमडी थीं। मैंने दोनों की क्लास अटेंड की थीं, पर तीनों को कभी साथ नहीं देखा। छात्र ने बताया कि उमर उसी हॉस्टल में रहते थे जिसमें करीब 500 कमरे हैं, जिनमें 150 अध्यापक और बाकी छात्र रहते हैं। उसने बताया कि पुलिस ने हर कमरे की तलाशी ली, उमर के कमरे की भी तलाशी ली। उसी छात्र ने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा, “हमारे कॉलेज से अभी तक कोई प्रसिद्ध डॉक्टर नहीं निकला। अब इन गिरफ्तारियों के बाद कौन हमें नौकरी देगा?''

उधर, कॉलेज प्रशासन से संपर्क करने की कोशिशों के बावजूद, न तो विश्वविद्यालय और न ही मेडिकल कॉलेज की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया मिली है। कॉलेज के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया, “अस्पताल में कश्मीर के कई डॉक्टर काम करते हैं। जो इंटर्न्स डॉ. उमर के साथ रहे, उनका कहना है कि वे बेहद बुद्धिमान और प्रोफेशनल थे, पर ज्यादा मेलजोल नहीं रखते थे। उन्हें उच्च अध्ययन के लिए भी चुना गया था।” एक छात्र ने कहा, “कॉलेज में क्लास और एग्ज़ाम जारी हैं। यहां कुछ भी रुकता नहीं।” हालांकि कॉलेज ने आरोपों से इंकार वाला बयान जरूर जारी कर दिया है।

देखा जाये तो फरीदाबाद का अल-फलाह मेडिकल कॉलेज, जो मानवता की सेवा सिखाने का दावा करता है, अब उस ख़बर का केंद्र है जहाँ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि ‘डॉक्टर के वेश में छिपा आतंकी’ गिरफ्तार हुआ है। एक एमबीबीएस संस्थान से आतंक कनेक्शन निकलना केवल कानून व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गिरावट का जीवंत उदाहरण है। जब एक डॉक्टर, जिसे मरीज बचाने के लिए प्रशिक्षित किया गया हो, बारूद और गोला-बारूद के साथ पकड़ा जाए, तो यह केवल एक व्यक्ति की गलती नहीं, यह प्रणाली की खामी का भी प्रमाण है। प्रश्न यह है कि इतने सख्त वेरिफिकेशन और लंबी मेडिकल प्रवेश प्रक्रियाओं के बावजूद, आतंकी मॉड्यूल के सदस्य कैसे कॉलेज और हॉस्टल तक पहुँच गए? क्या कॉलेज प्रशासन सोया हुआ था? क्या यह लापरवाही थी या जानबूझकर नजरअंदाज करना?

अल-फलाह ट्रस्ट और विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी गुनाह के बराबर है। किसी भी जिम्मेदार संस्था को इस तरह की गिरफ्तारी के बाद तुरंत खुली जांच, वेरिफिकेशन और पारदर्शी बयान देना चाहिए था। लेकिन यहां सन्नाटा है और वही सन्नाटा सबसे खतरनाक है। जो छात्र आज चिंता में हैं कि “कौन हमें नौकरी देगा”, उनका डर वाजिब है। एक या दो लोगों की करतूत से पूरे संस्थान की साख मिट्टी में मिल सकती है। जब डॉक्टर का नाम आतंक के साथ जुड़ता है, तो उसका असर केवल अस्पताल तक नहीं, बल्कि रोगी के विश्वास तक जाता है। अगर देश की मेडिकल यूनिवर्सिटियों में भी ऐसे “नेटवर्क” पनप रहे हैं, तो यह केवल पुलिस केस नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकट है। अब वक्त है कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल संस्थानों की सुरक्षा और पहचान की पुनः जांच कराए। हर हॉस्टल, हर भर्ती, हर प्रोफेसर की पृष्ठभूमि की जाँच होनी चाहिए क्योंकि आतंक अब सिर्फ सीमा पार नहीं, कैंपस के भीतर भी प्रवेश कर चुका है। और जो लोग अब भी “सिर्फ एक व्यक्ति की गलती” कहकर मामला टालना चाहते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह सिर्फ गलती नहीं, घुसपैठ है। और इस बार यह घुसपैठ गोली से नहीं, सर्जिकल गाउन पहनकर हुई है।

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