सपा के 'तोप' बीजेपी को करने चले स्वाहा, योगी की आंधी ने पलीता ही बुझा दिया

स्वामी प्रसाद मौर्य 26 हजार वोटों से चुनाव हार गए। जबकि बीजेपी के सुरेंद्र कुमरा कुशवाहा ने इस सीट पर जीत दर्ज की। स्वामी प्रसाद मौर्य की परंपरागत सीट पडरौना विधानसभा सीट रही है, मगर आरपीए सिंह की भाजपा में एंट्री ने उन्हें इस तरह परेशान किया कि उन्होंने अपनी परंपरागत सीट की कुर्बानी ही दे दी।
ठीक चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य मायावती का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा जीत मिली और कैबिनेट मंत्री बने। ठीक पांच साल बाद चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपना पुराना दांव आजमाते हुए पाला बदला और सपा की हवा मान अखिलेश के साथ हो लिए व बीजेपी को नेस्तोनाबूद करने की कसमें खाते दिखें। लेकिन खुद ही 26 हजार वोटों से चुनाव हार गए। जबकि बीजेपी के सुरेंद्र कुमरा कुशवाहा ने इस सीट पर जीत दर्ज की।
UP की राजनीति स्वामी प्रसाद मौर्य के चारों तरफ घूमती
उत्तर प्रदेश के गैर यादव पिछले वर्ग के वोटरों में खासा प्रभाव रखतने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। हालांकि चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद वे सपा में शामिल हो गए थे। सपा में शामिल होने के बाद से ही मौर्य बीजेपी के प्रति अत्याधिक हमलावर नजर आ रहे थे। एक जनसभा में उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश की राजनीति स्वामी प्रसाद मौर्य के चारों तरफ घूमती है। जिन नेताओं को घमंड था कि वो बहुत बड़े तोप हैं उस तोप को मैं 2022 के चुनाव में ऐसा दागूंगा, ऐसा दागूंगा कि उस तोप से भारतीय जनता पार्टी के नेता ही स्वाहा हो जाएंगे।
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फाजिलनगर सीट
फाजिलनगर विधानसभा सीट देवरिया के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं रमापति राम त्रिपाठी, जो भारतीय जनता पार्टी से हैं। 1989, 1991 के चुनाव में जनता दल, 1993 और 1996 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रहे विश्वनाथ सिंह लगातार चुनाव जीते। 2002 में भाजपा से जगदीश मिश्रा विधायक बने। 2007 में फिर समाजवादी पार्टी से विश्वनाथ ने जीत दर्ज की। 2012 में गंगा सिंह भाजपा से विधायक बने। वहीं 2017 में फाजिलनगर की जनता ने 102778 वोट देकर गंगा सिंह विधानसभा भेजा।
सीट बदलना भी नहीं आया काम
स्वामी प्रसाद मौर्य की परंपरागत सीट पडरौना विधानसभा सीट रही है, मगर आरपीए सिंह की भाजपा में एंट्री ने उन्हें इस तरह परेशान किया कि उन्होंने अपनी परंपरागत सीट की कुर्बानी ही दे दी। मगर वह आखिरकार चुनाव जीत नहीं पाए। स्वामी प्रसाद मौर्य साल 2009 में आरपीएन सिंह से हार का स्वाद चख चुके थे इसलिए उनके बीजेपी में शामिल होते ही उन्होंने फाजिलनदर की ओर रूख किया।
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