कानूनी मंजूरी के बिना फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने पर HC ने तेलंगाना पुलिस को भेजा नोटिस

Telangana HC
प्रतिरूप फोटो

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति अभिनंद कुमार शाविली की पीठ ने हैदराबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता एसक्यू मसूद द्वारा दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अधिकारियों से जवाब मांगा। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुलिस ने मई 2015 में उन्हें ट्रैफिक में रोका और उनकी सहमति के बिना उनकी तस्वीरें खींचा।

हैदराबाद। तेलंगाना हाईकोर्ट ने फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को लेकर प्रदेश सरकार और हैदराबाद पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया। दरअसल, जनहित याचिका में कानून की मंजूरी के बिना फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (एफआरटी) के कथित इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किया गया था। 

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मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति अभिनंद कुमार शाविली की पीठ ने हैदराबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता एसक्यू मसूद द्वारा दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अधिकारियों से जवाब मांगा। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुलिस ने मई 2015 में उन्हें ट्रैफिक में रोका और उनकी सहमति के बिना उनकी तस्वीरें खींचा। जबकि उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला नहीं था।

एसक्यू मसूद के वकील मनोज रेड्डी के मुताबिक, हैदाराबाद पुलिस आयुक्त को अपनी व्यक्तिगत और बायोमेट्रिक जानकारी को पुलिस डेटा रिकॉर्ड से हटाने के लिए भेजे गए पत्रों का कोई जवाब नहीं मिला।

अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के मुताबिक, वकील ने कहा कि पुलिस द्वारा फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का निरंतर इस्तेमाल व्यक्तियों की गोपनीयता का उल्लंघन करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आधार निर्णय द्वारा बरकरार रखा गया था। कानून से किसी प्राधिकरण के बिना ऐसी तकनीक का उपयोग असंवैधानिक और अवैध घोषित किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि प्रदेश में एफआरटी लागू करने के लिए प्रदेश 2018 से विभिन्न एजेंसियों को तैनात कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विभिन्न जगहों पर सीसीटीवी लगाने का मकसद ऐसे डेटा को इकट्ठा करना है। 

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याचिकाकर्ता ने कहा कि सूचना के अधिकार के जरिए हैदराबाद पुलिस से जवाब हासिल करने की उनकी कोशिशों का भी अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

न्यायमूर्ति अभिनंद कुमार शाविली ने कहा कि प्रदेश, केंद्रीय गृह मंत्रालय के समन्वय से देशभर में अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्किंग और सिस्टम (सीसीटीएनएस) लागू कर रहे हैं। वे जो डेटा एकत्र करते हैं और जिस तरह से वे इस तरह की जानकारी का इस्तेमाल, स्टोर या बनाए रखते हैं, वह जनता को नहीं पता है। यह विशेष रूप से पुलिस और कानून लागू करने वाले अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी, 2022 को होगी। 

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