Modi सरकार चाहती तो हमें घुटनों पर ला सकती थी, मगर उन्होंने ऐसा करने की बजाय हमें भरपूर मदद दीः Omar Abdullah

Omar Abdullah
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मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहलगाम, दिल्ली और अन्य स्थानों पर हुए हालिया आतंकी हमलों का उल्लेख करते हुए कहा कि जमीनी सच्चाई अब भी शत्रुतापूर्ण बनी हुई है। ऐसे हालात में भारत से यह अपेक्षा करना कि वह उकसावों को अनदेखा करे, व्यावहारिक नहीं है।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मौजूदा हालात में पाकिस्तान के साथ संबंधों का सामान्य होना फिलहाल “असंभव” दिखाई देता है। उन्होंने आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी और इस्लामाबाद की ओर से राजनीतिक स्तर पर गंभीरता के अभाव को इसकी सबसे बड़ी वजह बताया। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित ‘एक्सप्रेस अड्डा’ में बोलते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि संवाद ही किसी भी विवाद का अंतिम समाधान होता है, लेकिन बातचीत के लिए जिस अनुकूल माहौल की जरूरत होती है, वह इस समय पूरी तरह नदारद है। उन्होंने दो टूक कहा कि ऐसा माहौल बनाने की प्राथमिक जिम्मेदारी पाकिस्तान की है।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहलगाम, दिल्ली और अन्य स्थानों पर हुए हालिया आतंकी हमलों का उल्लेख करते हुए कहा कि जमीनी सच्चाई अब भी शत्रुतापूर्ण बनी हुई है। ऐसे हालात में भारत से यह अपेक्षा करना कि वह उकसावों को अनदेखा करे, व्यावहारिक नहीं है। उमर अब्दुल्ला ने कहा, “जब दिल्ली विस्फोट जैसी घटनाएं होती रहेंगी, तब संबंधों के सामान्य होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।” उन्होंने साफ किया कि किसी भी तरह की प्रगति से पहले पाकिस्तान को सुरक्षा, आतंकवाद और विश्वास बहाली के मोर्चे पर ठोस और दिखाई देने वाली कार्रवाई करनी होगी।

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एक्सप्रेस अड्डा के मंच से उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था पर भी तीखा सवाल उठाया। उन्होंने मुख्यमंत्री पद को “शक्तिविहीन” बताते हुए कहा कि एक ऐसे व्यक्ति के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जिसने कभी देश के सबसे सशक्त राज्यों में से एक का नेतृत्व किया हो और आज वह एक ऐसे केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री है, जिसके पास देश के किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री की तुलना में बेहद सीमित अधिकार हैं। उन्होंने उपराज्यपाल के निरंतर हस्तक्षेप की आलोचना करते हुए केंद्र सरकार से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक स्पष्ट और समयबद्ध लक्ष्य तय करने की मांग की।

उमर अब्दुल्ला ने स्वीकार किया कि पद संभालने के बाद शासन की जटिलताएं उन्हें पहले से कहीं अधिक गहराई से समझ में आई हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार जरूर है, लेकिन कानून-व्यवस्था, पुलिस और नौकरशाही से जुड़े अहम फैसले अब भी उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में सरकार की जवाबदेही और निर्णय लेने की क्षमता के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती बन गया है।

अपने राजनीतिक जीवन पर नजर डालते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि बहुत कम उम्र में संसद में पहुंचने से लेकर केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री बनने तक, हर भूमिका ने उन्हें यह सिखाया है कि जम्मू-कश्मीर में शासन करना देश के अन्य हिस्सों की तुलना में कहीं अधिक संवेदनशील और जटिल कार्य है। उन्होंने माना कि जनता की अपेक्षाएं स्वाभाविक रूप से बहुत ऊंची होती हैं, खासकर तब जब एक निर्वाचित सरकार सत्ता में आती है, लेकिन मौजूदा संवैधानिक ढांचे में सरकार की सीमाओं को समझना भी उतना ही जरूरी है।

इस दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या मोदी सरकार विपक्ष-शासित राज्यों के प्रति बदले की भावना से काम करती है, तो उमर अब्दुल्ला ने आम विपक्षी सोच से हटकर चौंकाने वाला और संतुलित जवाब दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उन्हें इस मामले में कोई शिकायत नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा, “अगर मोदी सरकार चाहती तो हमें घुटनों पर ला सकती थी, लेकिन इसके उलट हमें तय बजट से भी ज्यादा धनराशि दी गई है।” उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास प्रशासनिक और आर्थिक दबाव बनाने के कई तरीके हो सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उनके अनुसार, कम से कम वित्तीय सहयोग के स्तर पर बदले की राजनीति नहीं हुई है। हम आपको बता दें कि राजनीतिक हलकों में उमर अब्दुल्ला का यह बयान केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के रिश्तों पर चल रही बहस में एक व्यावहारिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है।

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