Modi Cabinet ने Bihar के लिए जो प्रोजेक्ट मंजूर किये, वह पूरे चुनाव की दशा-दिशा ही बदलकर रख सकते हैं

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देखा जाये तो रेल दोहरीकरण परियोजना आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोयला, सीमेंट, खाद और निर्माण सामग्री जैसे उत्पादों की ढुलाई में यह नया ट्रैक सहायक होगा। साथ ही देवघर और तारापीठ जैसे धार्मिक स्थलों को बेहतर कनेक्टिविटी मिलने से पर्यटन को गति मिलेगी।

केंद्र सरकार ने आज बिहार को दो बड़े तोहफ़े दिए— भागलपुर–दुमका–रामपुरहाट रेल लाइन (177 किमी) के दोहरीकरण की परियोजना और मोकामा–मुंगेर ग्रीनफ़ील्ड हाई-स्पीड कॉरिडोर (82.4 किमी) का निर्माण। कुल मिलाकर लगभग ₹7,600 करोड़ से अधिक का निवेश बिहार और उसके पड़ोसी इलाकों में होने जा रहा है। पहली नज़र में यह पहल विकास का स्वागतयोग्य कदम है। मगर सवाल यह है कि क्या यह महज़ अधोसंरचना सुधार है या फिर चुनावी रणनीति का हिस्सा?

देखा जाये तो रेल दोहरीकरण परियोजना आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोयला, सीमेंट, खाद और निर्माण सामग्री जैसे उत्पादों की ढुलाई में यह नया ट्रैक सहायक होगा। साथ ही देवघर और तारापीठ जैसे धार्मिक स्थलों को बेहतर कनेक्टिविटी मिलने से पर्यटन को गति मिलेगी। इसके अलावा, लगभग 29 लाख की आबादी और 441 गाँवों तक रेल की सुविधा पहुँचने का दावा भी सरकार के “समावेशी विकास” नैरेटिव को बल देता है।

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इसी तरह मोकामा–मुंगेर हाईवे को भी बिहार के औद्योगिक नक्शे का नया पड़ाव माना जा सकता है। मुंगेर-जमालपुर-भागलपुर इलाक़ा पहले से आयुध कारख़ाने, लोकोमोटिव वर्कशॉप और सिल्क उद्योग के कारण पहचान बना चुका है। हाईवे से रोज़गार और औद्योगिक गतिविधियों के बढ़ने की संभावना है। तेज़ रफ़्तार से चलने वाले वाहनों के लिए यह 100 किमी/घंटा डिज़ाइन स्पीड वाला कॉरिडोर बिहार की सड़कों पर नया अनुभव होगा।

परंतु इस सबके बीच राजनीतिक समय-निर्धारण पर नज़र डालना अनिवार्य है। बिहार विधानसभा चुनाव बस कुछ ही महीनों की दूरी पर हैं और अचानक से दो हज़ारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा संयोग नहीं कही जा सकती। केंद्र की यह रणनीति साफ़ झलकती है कि चुनावी मैदान में उतरने से पहले विकास का कार्ड सबसे आगे रखा जाए।

हम आपको बता दें कि बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। भाजपा लंबे समय से इस समीकरण को “विकास बनाम जाति” की बहस में बदलने का प्रयास करती रही है। इन परियोजनाओं से पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि “हम रोज़गार और अधोसंरचना पर काम कर रहे हैं, जबकि विपक्ष केवल जातीय राजनीति करता है।” धार्मिक महत्व वाले स्थलों को रेल नेटवर्क से जोड़कर भाजपा ने अपने पारंपरिक “धर्म और विकास” के मेल को भी साधने की कोशिश की है। कैबिनेट ब्रीफिंग में आज जब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से जब सरकार के इस फैसले के राजनीतिक महत्व से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने एक सूची दिखाते हुए कहा कि केंद्र सरकार लगातार सभी राज्यों को विकास की परियोजनाएं देती रहती है और इनका चुनावों से कोई जुड़ाव नहीं होता।

बहरहाल, निश्चित ही इन योजनाओं से बिहार की जनता को दीर्घकालिक लाभ होगा। लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि विकास का यह बिगुल चुनावी रणभेरी की तरह बजाया गया है। अब देखना यह है कि विपक्ष चाहे राजद हो, कांग्रेस—इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है। क्या वह इसे जनता की ज़रूरत बताते हुए श्रेय लेने की होड़ में उतरेंगे या इसे चुनावी स्टंट कहकर ख़ारिज करेंगे? फिलहाल, बिहार की धरती पर रेल और सड़क दोनों ही बिछ रही हैं। सवाल यह है कि क्या यह पटरियाँ और राजमार्ग विकास की ओर ले जाएँगे या फिर राजनीति के अगले स्टेशन तक ही सीमित रह जाएँगे?

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