यह सब लग्जरी मुकदमे हैं, बोतलबंद पानी की क्वालिटी वाली याचिका SC ने की खारिज

अपनी याचिका में सारंग ने दावा किया कि भारत में बोतलबंद पानी के गुणवत्ता मानक पुराने हो चुके हैं और उन्होंने कंपनियों को यूरो-2 मानकों को अपनाने के लिए अनिवार्य करने के निर्देश देने की मांग की। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता से जमीनी हकीकत को समझने का आग्रह किया। न्यायालय ने कहा कि भारत अमेरिका या यूरोप में अपनाए जाने वाले दिशानिर्देशों को आँख बंद करके नहीं अपना सकता या लागू नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारत के बड़े हिस्से में अभी भी बुनियादी पेयजल की कमी है। कोर्ट ने देश में पैकेटबंद पेयजल के मानकों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इसे "लक्जरी मुकदमा" बताते हुए कहा कि यह शहरी भय है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग काफी हद तक भूजल पर निर्भर हैं। देश में लोगों को बुनियादी पेयजल तक नहीं मिल पा रहा है। मुख्य न्यायाधीश कांत ने याचिकाकर्ता सारंग वामन यादवाडकर से कहा गुणवत्ता का मुद्दा तो बाद में आएगा।
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अपनी याचिका में सारंग ने दावा किया कि भारत में बोतलबंद पानी के गुणवत्ता मानक पुराने हो चुके हैं और उन्होंने कंपनियों को यूरो-2 मानकों को अपनाने के लिए अनिवार्य करने के निर्देश देने की मांग की। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता से जमीनी हकीकत को समझने का आग्रह किया। न्यायालय ने कहा कि भारत अमेरिका या यूरोप में अपनाए जाने वाले दिशानिर्देशों को आँख बंद करके नहीं अपना सकता या लागू नहीं कर सकता।
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मुख्य न्यायाधीश ने कहा क्या आपको लगता है कि हमारे देश में पीने के पानी की जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें देखते हुए हम ब्रिटेन, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया द्वारा अपनाए गए मानकों को लागू कर सकते हैं? यह एक शहरी भय है। भारत में पैकेटबंद पानी के मानक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को "शहरी केंद्रित दृष्टिकोण" का प्रतीक बताया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "इस देश को विकास के लिए कुछ समय दीजिए... ग्रामीण क्षेत्रों में लोग भूजल पीते हैं। न्यायालय ने आगे कहा आइए देश की जमीनी हकीकतों का सामना करें। गरीबों के लिए कोई आवाज नहीं उठाता। यह सब शहरीकरण का डर है।
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