रेल सफरनामा: कोरोना को लेकर यात्रियों में जागरूकता पर सतर्कता बरतते में हो रही लापरवाही

मेरे सामने स्टेशन पर वैशाली सुपरफास्ट, मुंबई-अमृतसर गोल्डन टेंपल एक्सप्रेस और दिल्ली-प्रयागराज सुपरफास्ट पहुंची। इन गाड़ियों में लोगों को चढ़ना भी था लेकिन चढ़ने के दौरान जो मैंने देखा वह वाकई हैरान करने वाला था।
कोरोनावायरस के कारण 25 मार्च से पूरे देश में लॉक डाउन लगाया गया था। हालांकि मजदूरों के भारी तादाद में पलायन को देखते हुए सरकार ने 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने का फैसला लिया था। इस फैसले के बाद 12 मई से 15 जोड़ी स्पेशल एसी ट्रेनें चलवाई। इसके बाद 1 जून से 100 जोड़ी ट्रेन चलाने का फैसला लिया गया। सरकार के इस फैसले के कारण प्रवासियों को गृह राज्य लौटने में आसानी होने लगी। इतना ही नहीं ट्रेनों के सामान्य रूप से चलने के कारण अब लोग इधर-उधर आ-जा भी रहे हैं। हालांकि यात्रा के दौरान ट्रेनों में कोरोनावायरस को लेकर कुछ नियम कायदे भी पालन कराए जा रहे है। सरकार की ओर से बकायदा इसके लिए गाइडलाइन भी जारी की गई है। सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि इन ट्रेनों के चलने से आम नागरिक को फायदा हुआ है। इन सबके बीच हमने यह जानने की कोशिश की कि क्या सरकार द्वारा रेल यात्रा के दौरान पालन करने के लिए जो नियम बनाए गए हैं उस पर यात्री अमल कर भी रहे हैं या नहीं? इसी को देखते हुए हमने भी इसकी पड़ताल की।
हमारी पड़ताल में एक चीज तो साफ हुआ कि लोगों के मन में कोरोनावायरस को लकर जागरूकता तो है लेकिन सतर्कता बरतने में लापरवाही हो रही है। खास करके यह परिस्थिति तब ज्यादा देखने को मिल रही है जब बात सोशल डिस्टेंसिंग की हो। मैंने दिनांक 6 जून 2020 को दिल्ली से छपरा तक की यात्रा की। मैंने कुछ जानने की भी कोशिश की कि आखिर रेल यात्रा के दौरान कौन-कौन से नियम पालन करवाए जा रहे है। लोगों के मन में कोरोना को लेकर क्या चल रहा है? मैंने जिस ट्रेन को यात्रा के लिए चुना वह ट्रेन थी गाड़ी संख्या 04650 अमृतसर-जयनगर सरयू यमुना एक्सप्रेस। हालांकि मेरी यात्रा एनसीआर के गाजियाबाद से शुरू हुई। रेलवे द्वारा तय की गई गाइडलाइन के अनुसार मैंने भी ट्रेन के खुलने के समय से डेढ़ घंटे पहले स्टेशन पहुंचने की कोशिश की। इस कोशिश में मैं 2 घंटे पहले ही गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया।
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रेलवे द्वारा तय की गई नियमों के अनुसार सबसे पहले तो मेरी थर्मल स्क्रीनिंग हुई। इसके बाद स्टेशन के अंदर प्रवेश करने से पहले हमसे पूछा गया कि आपको किस गाड़ी से यात्रा करनी है, क्या आपके पास कंफर्म सीट है और अगर है तो कौन से कोच में है? और कितने नंबर सीट है? तमाम चीजें बताने के बाद मुझे स्टेशन के अंदर आने की इजाजत मिली। हालांकि स्टेशन के अंदर घुसने से पहले नाही सैनेटाइजर की व्यवस्था थी और ना ही हमें किसी सैनिटाइजर मशीन से गुजरने को कहा गया। मैं प्लेटफार्म पर पहुंचा। प्लेटफार्म संख्या एक और दो से डाउन जाने वाली गाड़ियां निकल रही थी। प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के बाद दो-तीन स्टॉल को मैंने खुला देखा जहां बिस्किट, नमकीन, पानी और चाय मिल रहे थे। लोग स्टेशन पर बने सीटों पर सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन कर बैठे हुए थे लेकिन कुछ ऐसी भी जगह दिखी जहां भीड़ भाड़ दिख गया। लोग एक ही जगह 10-12 की संख्या में खड़े हुए थे। ट्रेन में 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग और 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी काफी तादाद में दिखाई दिए थे। रेलवे लगातार लोगों से अपील कर रहा है कि ज्यादा उम्र के और कम उम्र के लोग यात्रा से बचे।
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मेरे सामने स्टेशन पर वैशाली सुपरफास्ट, मुंबई-अमृतसर गोल्डन टेंपल एक्सप्रेस और दिल्ली-प्रयागराज सुपरफास्ट पहुंची। इन गाड़ियों में लोगों को चढ़ना भी था लेकिन चढ़ने के दौरान जो मैंने देखा वह वाकई हैरान करने वाला था। लोग चढ़ने के दौरान किसी भी प्रकार का सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे थे। प्लेटफार्म पर बैठे सभी लोगों ने मास्क तो लगाए थे। चाहे वह बच्चे हो या बुजुर्ग लेकिन मास्क को निकालने का और इस्तेमाल का तरीका जो होना चाहिए उसका कम ही लोग पालन करते हुए दिखे। इतना ही नहीं, रेलवे प्लेटफार्म पर जो मैंने देखा उसमें अगर सामने वाले को दिक्कत नहीं है तो लोग एक दूसरे के करीब जाकर भी बात करते हुए दिखाई दिए। मेरी ट्रेन समय अनुसार स्टेशन पर पहुंची। प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी हुई। जो बाकी ट्रेनों में प्रवेश के समय मैंने देखा वही इस ट्रेन में भी प्रवेश के समय हुआ। लोग बिना सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करते हुए ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। बोगियां आगे पीछे होने के कारण लोग प्लेटफार्म पर इधर-उधर भागने की कोशिश भी कर रहे थे। गाजियाबाद रेलवे प्रशासन की ओर से एक चीज अच्छी थी कि रेल यात्री के अलावा किसी अन्य को प्लेटफार्म पर आने की इजाजत बिल्कुल भी नहीं दी जा रही थी।
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ट्रेन में चढ़ने के बाद मैंने देखा कि लोग सैनिटाइज करने के बाद ही अपनी सीट पर बैठ रहे थे। वैसा ही मैंने भी किया। जब मैं अपने बर्थ को सैनिटाइज कर रहा था तो उस पर बहुत ही ज्यादा गंदगी थी। रेलवे लगातार यह दावा कर रहा है कि जो भी ट्रेनें चलाई जा रही है उसको नियमित तौर पर सैनिटाइज किया जा रहा है। अगर ट्रेनों को सैनिटाइज की जा रही है तो फिर मेरी सीट पर गंदगी कहां से थी? मैंने देखा कि लोग समय-समय पर अपने हाथ को सैनिटाइजर से साफ भी कर रहे थे। लेकिन सुबह 5:00 बजे के बाद जो ट्रेन के डिब्बों में नजारा देखने को मिला वह वाकई हैरान करने वाला था। सुबह होते ही लोगों का पैसेज में टहलना जारी हो गया। लोग इधर-उधर जाने के लिए और टहलने के लिए व्याकुल दिखने लगे। इतना ही नहीं, शौचालय के दरवाजे पर भी 5-7 लोग इकट्ठा दिखे। लोग सोशल डिस्टेंसिंग की बाद तो लगातार कर रहे थे, साफ-सफाई की भी बात कर रहे थे परंतु सुबह में यह चीजें कम ही देखने को मिली।
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किसी स्टेशन पर ट्रेन के रुकने की स्थिति में लोग बाहर निकलने लगते थे जैसा कि वह पहले किया करते थे। इतना ही नहीं, अगर आपका सीट मिडिल बर्थ है और लोअर बर्थ वाला यह कहना शुरू कर दिया कि आप सीट गिरा लो और नीचे आकर बैठ लो। ऐसी स्थिती में सोशल डिस्टेंस मेंटेन करना मुश्किल होता है। लोग सोशल डिस्टेंसिंग को कम और अपनी सुविधा को ज्यादा महत्व दे रहे थे। ट्रेन में एक चीज जो मैंने देखी वह यह थी कि आम दिनों की तुलना में बोगियों में भीड़ कम थी। बोगियों में सिर्फ वही लोग थे जिनके पास कंफर्म सीट थी। लेकिन एक चीज हैरान करने वाली यह थी कि पूरे यात्रा के दौरान एक बार भी सुरक्षाकर्मी दिखाई नहीं दिया। इतना ही नहीं कोई टिकट चेकर भी टिकट देखने नहीं आया। खैर कम ट्रेन चलने के कारण रेल ट्रैफिक सही रही जिससे मेरी भी ट्रेन समय पर छपरा पहुंच गई। यहां उतरने के दौरान भी मैंने यही देखा कि लोगों में धैर्य की कमी है। लोग बिना सोशल डिस्टेंस मेंटेन के हुए उतरने के लिए आपा खो रहे हैं। छपरा स्टेशन पर निकलने के बाद ना ही मेरे सामानों को सैनिटाइज किया गया और ना ही किसी भी प्रकार की थर्मल स्क्रीनिंग की गई। यह जरूर दिखाई दिया कि लोग बैठे हुए हैं और उनके सामने थर्मल स्क्रीनिंग मशीन रखी हुई है। परंतु उसका इस्तेमाल होता हुआ दिखाई नहीं दिया। रेलवे की भाषा में हम भी कह सकते हैं कि आपकी यात्रा सुखद और मंगलमय तभी हो सकती है जब आप जागरूक रहेंगे।
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