Prabhasakshi NewsRoom: Trump का Tariff तूफान भारतीय अर्थव्यवस्था को सिर्फ छूकर निकल जायेगा, यकीन ना हो तो यह रिपोर्ट देखिये

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि अमेरिकी शुल्क से जुड़ी चुनौतियां ज्यादा टिकने वाली नहीं है और एक या दो तिमाहियों में समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि देश अन्य दीर्घकालिक चुनौतियों से जूझ रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगाने की घोषणा कर वैश्विक व्यापार गलियारों में हलचल मचा दी है। देखा जाये तो यह कदम भारत के लिए एक बड़ा झटका प्रतीत होता है, लेकिन अगर हम हालात का गहराई से विश्लेषण करें, तो यह तूफ़ान भारत की अर्थव्यवस्था को केवल सतही लहरों की तरह छूकर निकल जाएगा। यह दावा हम यूँ ही नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसा विशेषज्ञ और वैश्विक आर्थिक एजेंसियां कह रही हैं।
इसके अलावा इस पूरे प्रकरण में एक बात काबिलेगौर है कि चाहे यूरोपीय संघ हो, पश्चिमी देश हों या एशियाई या अन्य दक्षिण एशियाई देश, ज्यादातर ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकते हुए समझौते कर लिये हैं। यहां तक कि चीन की भी अमेरिका से व्यापार वार्ता चल रही है और ट्रंप ने उसके खिलाफ टैरिफ को स्थगित किया हुआ है लेकिन एकमात्र भारत ही है जो अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है और सीना तान कर खड़ा है। यह परिस्थिति भारत की आर्थिक और कूटनीतिक दृढ़ता का एक अहम उदाहरण है। वैश्विक संदर्भ में देखें तो भारत का इस दबाव के आगे न झुकना उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और आत्मविश्वास का संकेत है और दुनिया को यह संदेश है कि भारत अपने दम पर खड़ा रह सकता है।
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जहां तक विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया की बात है तो आपको बता दें कि मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन का आकलन है कि अमेरिकी शुल्क का असर एक या दो तिमाहियों से अधिक नहीं टिकेगा। उनका कहना है कि रत्न-आभूषण, झींगा और वस्त्र जैसे कुछ क्षेत्रों में अल्पकालिक दबाव जरूर आएगा, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना और विविधता इसे लंबे समय तक झुकने नहीं देगी। उनका संदेश स्पष्ट है कि अल्पकालिक व्यापार तनाव से घबराने की बजाय, हमें एआई, महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति और रोजगार सृजन जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित रखना होगा।
वहीं पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप का कहना है कि भारत और अमेरिका के संबंध रणनीतिक हैं, लेन-देन आधारित नहीं। उनका कहना है कि यह एक गुज़रता हुआ तूफ़ान है, दरार नहीं। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर अडिग रहना चाहिए।
इसके अलावा, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के निदेशक यीफार्न फुआ ने एक ठोस तर्क रखते हुए कहा है कि भारत कोई “ट्रेड-ओरिएंटेड” अर्थव्यवस्था नहीं है। देखा जाये तो अमेरिका को हमारे निर्यात का हिस्सा जीडीपी के मुकाबले सिर्फ 2% है। यानी भले ही यह शुल्क लागू रहे लेकिन भारत की समग्र वृद्धि दर पर इसका असर नगण्य होगा। एसएंडपी का अनुमान है कि भारत अगले वित्त वर्ष में भी 6.5% की वृद्धि बनाए रखेगा, ठीक पिछले साल की तरह। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के निदेशक यीफार्न फुआ ने कहा कि अमेरिकी शुल्क से भारत की वृद्धि प्रभावित नहीं होगी और इसकी ‘सॉवरेन रेटिंग’ का परिदृश्य सकारात्मक ही बना रहेगा। हम आपको याद दिला दें कि रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने मजबूत आर्थिक वृद्धि का हवाला देते हुए पिछले वर्ष मई में भारत की सॉवरेन रेटिंग ‘बीबीबी-’ को बढ़ाकर सकारात्मक कर दिया था।
दूसरी ओर, अमेरिकी शुल्कों से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में खुद मोदी सरकार का आकलन है कि हम स्थिति से निबटने के लिए हर प्रयास कर रहे हैं। सरकार ने संसद में यह भी जानकारी दी है कि फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स, जो हमारे निर्यात के उच्च-मूल्य और उच्च-प्रभाव वाले सेक्टर हैं, उन पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगा है। देखा जाये तो टैरिफ मुख्यतः कुछ श्रेणियों पर है, जो कुल निर्यात का लगभग 55% हिस्सा बनाती हैं, लेकिन इनसे भी आधे से अधिक माल पर तत्काल अतिरिक्त भार नहीं है। इसके अलावा, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर लगातार वार्ताएं चल रही हैं और अगले दौर की चर्चा 24 अगस्त को होगी। यह संकेत देता है कि दरवाजे बंद नहीं हुए हैं बल्कि टेबल पर बातचीत जारी है।
इस बीच, भारत के विदेश और वाणिज्य सचिवों ने एक संसदीय समिति की बैठक के समक्ष स्पष्ट किया है कि कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में समझौता नहीं होगा, चाहे अमेरिका कितना भी दबाव डाले। भारत ने अमेरिकी रुख को देखते हुए नए बाजार तलाशने भी शुरू कर दिये हैं। इन सभी तथ्यों को जोड़ें तो तस्वीर साफ होती है कि अमेरिका हमारे कुल जीडीपी में बहुत छोटा व्यापारिक हिस्सा रखता है। साथ ही आईटी सेवाओं से लेकर फार्मा, ऑटो पार्ट्स और एग्रीटेक तक कई ऐसे सेक्टर हैं जो टैरिफ से अप्रभावित हैं। इसके अलावा, भारत एक साथ अमेरिका से वार्ता और अन्य देशों से व्यापार विस्तार दोनों चला रहा है। साथ ही मोदी सरकार और नीति निर्माता अल्पकालिक दबाव से ज़्यादा भविष्य की रणनीतिक चुनौतियों पर ध्यान दे रहे हैं।
बहरहाल, ट्रंप का टैरिफ भारत के लिए एक अस्थायी व्यवधान है, स्थायी खतरा नहीं। भारत की आर्थिक संरचना, निर्यात का बहुविकल्पीय नेटवर्क और कूटनीतिक रणनीति इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखेंगे। असली चुनौती व्यापार शुल्क नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, संसाधन सुरक्षा और रोजगार सृजन है और इन्हीं मोर्चों पर भारत अपनी असली लड़ाई जीतने में जुटा है।
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