क्यों काफ़िर माने जाते हैं अहमदिया मुसलमान और होना पड़ता है जुल्म का शिकार

पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए। जब उन दंगों की जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि वो कट्टरपंथियों के उकसाने पर किए गए थे। 1974 में पाकिस्तानी संविधान में संशोधन किया गया और अहमदी को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया। इस दौरान हजारों अहमदिया परिवारों को घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।
रोहिंग्या मुसलमान ये नाम बीते कुछ बरस से हमेशा चर्चा में रहता है। दावा किया जाता है कि जिन पर म्यांमार में ज़ुल्म हो रहा है और वो देश छोड़कर भाग रहे हैं। म्यांमार सेना कह रही है कि वो उग्रवादियों को मार रही है। एनआरसी और सीएए को लेकर इन दिनों वैसे तो देशभर में घमासान मचा है। वहीं दूसरी तरफ रोहिंग्या शरणार्थियों की जल्द से जल्द सुरक्षित घर वापसी को लेकर भारत और बांग्लादेश मिलकर रास्ता तलाशने में लगी हैं। जिसका जिक्र बीते दिनों लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जानकारी के तहत देते हुए बताया कि मंत्रालय को यह भी रिपोर्ट मिली है कि इनमें से कुछ रोहिंग्या शरणार्थी गैरकानूनी गतिविधियों में लगे हैं। वहीं श्री श्री रविशंकर ने पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों पर अत्याचार का जिक्र करते हुए भारत से उनके बारे में भी सोचे जाने का जिक्र किया है। आखिर कौन हैं ये अहमदिया जिनके नाम के साथ तो मुसलमान लगा है लेकिन 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान में उन्हें खतरा क्यों है? खुद को मुसलमान कहने वाले अहमदिया को आखिर कट्टरपंथी क्यों नहीं मानते हैं मुसलमान? ऐसे तमाम सवाल हैं जिसके बारें में आज आपको बतातें हैं।
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