Jan Gan Man: Great Nicobar Project को लेकर क्यों बरपा हुआ है हंगामा? विरोध की मशाल खुद सोनिया गांधी ने क्यों थाम ली है?

Great Nicobar Project
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परियोजना की रूपरेखा और महत्व की बात करें तो आपको बता दें कि लगभग 81,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की जा रही इस योजना में अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, नवीन टाउनशिप और ऊर्जा संयंत्र शामिल हैं।

भारत आज जिस दौर से गुजर रहा है, वह केवल आर्थिक प्रगति का ही नहीं, बल्कि सामरिक सुदृढ़ीकरण का भी सही समय है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे और वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों ने भारत को मजबूर किया है कि वह अपनी सामरिक स्थिति को और अधिक सुदृढ़ बनाए। इसी दृष्टि से ग्रेट निकोबार परियोजना को देखा जा सकता है। यह परियोजना भारत की सुरक्षा, व्यापार और रणनीतिक हितों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है। परंतु इसके साथ-साथ यह प्रश्न भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि क्या विकास की यह राह हमारे पर्यावरणीय संतुलन और जनजातीय समुदायों के अस्तित्व की कीमत पर तय की जानी चाहिए?

परियोजना की रूपरेखा और महत्व की बात करें तो आपको बता दें कि लगभग 81,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की जा रही इस योजना में अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, नवीन टाउनशिप और ऊर्जा संयंत्र शामिल हैं। नीति आयोग और अंडमान-निकोबार आइलैंड्स इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (ANIIDCO) के तहत इसे लागू किया जा रहा है। इस परियोजना का सबसे बड़ा आकर्षण है गालाथेया खाड़ी में बनने वाला गहरे समुद्र का बंदरगाह, जो मलक्का जलडमरूमध्य के निकट स्थित होगा। हम आपको बता दें कि यह क्षेत्र दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है, जहां से लगभग 30-40 प्रतिशत वैश्विक व्यापार और चीन की अधिकांश ऊर्जा आपूर्ति गुजरती है। इस दृष्टि से ग्रेट निकोबार परियोजना भारत को सामरिक बढ़त दिलाने की क्षमता रखती है।

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इसके सामरिक निहितार्थों की चर्चा करें तो आपको बता दें कि इससे चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के मुकाबले भारत को एक मजबूत विकल्प मिलेगा। साथ ही प्रस्तावित हवाई अड्डा नागरिक और रक्षा, दोनों प्रयोजनों की पूर्ति करेगा, जिससे अंडमान-निकोबार कमांड की कार्यक्षमता बढ़ेगी। इसके अलावा, 2004 की सुनामी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इस क्षेत्र में त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता कितनी जरूरी है। नया बंदरगाह और हवाई अड्डा इस कमी को दूर करेंगे। वहीं अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की साझेदारी और भी मजबूत होगी, जिससे हिंद-प्रशांत में स्वतंत्र नौवहन सुनिश्चित होगा।

विपक्ष और पर्यावरणविदों की आशंकाओं की चर्चा करें तो यह ध्यान रखना होगा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसलिए इस परियोजना को लेकर गंभीर आपत्तियां भी सामने आ रही हैं। स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार, इस परियोजना में 8.5 लाख से 58 लाख तक पेड़ों की कटाई हो सकती है। इससे निकोबार मेगापोड और लेदरबैक कछुए जैसे दुर्लभ जीव प्रजातियां संकट में पड़ सकती हैं। इसके अलावा, शॉम्पेन और निकाबारी जनजातियां, जो ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’ (PVTG) में आती हैं, उन्हें डर है कि कहीं वह अपनी भूमि और संस्कृति को ना खो दें। विपक्ष का आरोप है कि परियोजना को मंजूरी देते समय वन अधिकार अधिनियम (FRA) जैसे संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना की गई। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी ने तो मोदी सरकार की इस परियोजना के विरोध में एक अंग्रेजी समाचार-पत्र में लंबा-चौड़ा लेख भी लिखा था। सोनिया गांधी और कांग्रेस के तमाम नेता बार-बार चेता रहे हैं कि यह परियोजना “सुनियोजित दुर्घटना” साबित हो सकती है। वहीं मोदी सरकार इस परियोजना को देशहित और समाज हित में बता रही है।

वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्रेट निकोबार परियोजना भारत की सामरिक महत्वाकांक्षाओं को नई ऊँचाई दे सकती है। यह न केवल चीन की बढ़ती गतिविधियों का संतुलन साधेगी बल्कि भारत को हिंद-प्रशांत में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित करेगी। परंतु यदि यह परियोजना जनजातीय अस्तित्व और पर्यावरणीय स्थिरता को मिटाकर आगे बढ़ती है, तो इसका लाभ अल्पकालिक और क्षति दीर्घकालिक होगी। इसलिए आवश्यक है कि सरकार विकास और संरक्षण के बीच संतुलन साधे। पारदर्शी ढंग से परियोजना की स्वतंत्र समीक्षा कराई जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों की पूर्ति स्थानीय समुदायों और प्राकृतिक धरोहरों के नुकसान पर न हो।

बहरहाल, जहां तक इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की बात है तो आपको बता दें कि एक ओर भाजपा इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत करने वाला रणनीतिक निवेश मानती है तो दूसरी ओर कांग्रेस इसे जनजातीय अस्तित्व और पर्यावरणीय संतुलन के लिए खतरा बताकर तीखी आलोचना कर रही है। सोनिया गांधी ने इसे “सुनियोजित दुर्घटना” कहकर भविष्य की पीढ़ियों के साथ अन्याय बताया है। इसके उलट भाजपा प्रवक्ता अनिल के. एंटनी का तर्क है कि निकोबार द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के पश्चिमी प्रवेश द्वार के निकट स्थित है, जहां से दुनिया का बड़ा हिस्सा व्यापार और ऊर्जा आयात का प्रवाह होता है। ऐसे में यहां एक अत्याधुनिक बंदरगाह और हवाई अड्डा भारत की नौसैनिक शक्ति और हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए अपरिहार्य है। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस का यह रुख राष्ट्रीय हित के खिलाफ है और यहां तक कि यह “विदेशी इशारों पर विरोध” जैसा प्रतीत होता है। भाजपा का तर्क है कि ग्रेट निकोबार परियोजना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत करेगी और चीन के बढ़ते प्रभाव का जवाब बनेगी। इसलिए इसे रोकने या कमजोर करने का अर्थ है भारत की सुरक्षा क्षमताओं को सीमित करना।

-नीरज कुमार दुबे

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