हवा की खराब गुणवत्ता से हर्जाने के लिये क्यों न राज्यों को जिम्मेदार ठहराया जाये: सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही सभी राज्यों को नोटिस जारी कर उनसे वायु की गुणवत्ता इंडेक्स, वायु गुणवत्ता के प्रबंधन और कचरा निस्तारण सहित विभिन्न मुद्दों का विवरण मांगा है।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सभी राज्यों से सवाल किया कि हवा की खराब गुणवत्ता से प्रभावित व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान के लिये क्यों नहीं उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाये। न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को स्वच्छ हवा और पेय जल सहित बुनियादी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराना उनका कर्तव्य है।
Pollution matter in Supreme Court: Justice Arun Mishra says Delhi is worse than hell. Life is not so cheap in India and you will have to pay; says to Delhi govt- You have no right to be in chair. How many lakhs each person should be paid? How much do you value a person's life? https://t.co/n7N7mxDRvb
— ANI (@ANI) November 25, 2019
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही सभी राज्यों को नोटिस जारी कर उनसे वायु की गुणवत्ता इंडेक्स, वायु गुणवत्ता के प्रबंधन और कचरा निस्तारण सहित विभिन्न मुद्दों का विवरण मांगा है। शीर्ष अदालत ने जल प्रदूषण के मामलों को गंभीरता से लेते हुये केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संबंधित राज्यों तथा उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदूषण और गंगा यमुना सहित विभिन्न नदियों में मल शोधन और कचरा निस्तारण आदि की समस्या से निबटने से संबंधित आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने केन्द्र और दिल्ली सरकार से कहा कि वे एकसाथ बैठकर दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्मॉग टावर लगाने के बारे में दस दिन के भीतर ठोस निर्णय लें जो वायु प्रदूषण से निबटने में मददगार होगा। पीठ ने कहा कि हवा की खराब गुणवत्ता और जल प्रदूषण की वजह से ‘मनुष्य के जीने का अधिकार ही खतरे में पड़ रहा है’ और राज्यों को इससे निबटना होगा क्योंकि इसकी वजह से जीने की उम्र कम हो रही है। पीठ ने कहा, ‘‘समय आ गया है कि राज्य सरकारें यह बतायें कि उन्हें हवा की खराब गुणवत्ता से प्रभावित लोगों को मुआवजा क्यों नहीं देना चाहिए? सरकारी तंत्र को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहने के लिये क्यों नहीं उनकी जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए?’’
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न्यायालय ने वायु और जल प्रदूषण जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर राज्यों और केन्द्र के बीच एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने पर नाराजगी व्यक्त की और उनसे कहा कि वे जनता के कल्याण के लिये मिलकर काम करें। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा प्रदूषण के मामले में समय समय पर अनेक आदेश दिये गये लेकिन इसके बावजूद स्थिति बदतर ही होती जा रही है। पीठ ने कहा कि इसके लिये प्राधिकारियों को ही दोषी ठहराया जायेगा क्योंकि उन्होंने ही सही तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है। पीठ ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का जिक्र करते हुये कहा कि शासन का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक और उनके स्वास्थ का ध्यान रखे लेकिन प्राधिकारी उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाली हवा और शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने में विफल रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से उत्पन्न स्थिति को बेहद गंभीर बताते हुये पीठ ने कहा कि इसके जलाने पर प्रतिबंध लगाने के आदेशों के बावजूद यह सिलसिला कम होने की बजाये बढ़ रहा है। पीठ ने कहा, ‘‘इस स्थिति के लिये सिर्फ सरकारी तंत्र ही नहीं बल्कि किसान भी जिम्मेदार हैं।’’ पीठ ने न्यायालय के आदेश के बावजूद पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम में विफल रहने के कारण पंजाब, हरियाणा और उप्र के मुख्य सचिवों को भी आड़े हाथ लिया। पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप लोगों से इस तरह पेश आ सकते हैं और प्रदूषण की वजह से उन्हें मरने के लिये छोड़ सकते है।’’ पीठ ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की वजह से लोगों की आयु कम हो रही है और उनका ‘दम घुट’ रहा है। इस मामले में सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने कहा, ‘‘क्या इसे बर्दाश्त किया जाना चाहिए? क्या यह आंतरिक युद्ध से कहीं ज्यादा बदतर नहीं है? लोग इस गैस चैंबर में क्यों हैं? यदि ऐसा ही है तो बेहतर होगा कि आप इन सभी को विस्फोट से खत्म कर दें। यदि ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो कैंसर जैसी बीमारी से जूझने से बेहतर तो ‘जाना’ ही होगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘आप अपने घर का दरवाजा खोलिये और स्थिति (प्रदूषण) देखिये। कोई भी राज्य ऐसे उपाय नहीं करना चाहता जो अलोकप्रिय हों।’’
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शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में असुरक्षित पेय जल की आपूर्ति को लेकर चल रहे विवाद का स्वत: ही संज्ञान लिया और कहा कि नागरिकों को पीने योग्य जल उपलब्ध कराना राज्य का कर्तव्य है। न्यायालय में उपस्थित दिल्ली के मुख्य सचिव ने राष्ट्रीय राजधानी के शासन और केन्द्र तथा दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे का मुद्दा उठाया। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘शासन की समस्या, यदि कोई है, इन मामलों से निबटने में आड़े नहीं आ सकती।’’ पीठ ने कहा कि संबंधित प्राधिकारियों को एक साथ बैठकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए कि किस तरह से वायु की गुणवत्ता में सुधार किया जाये और लोगों को सुरक्षित पेय जल उपलब्ध कराया जाये। न्यायालय ने जल प्रदूषण के मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिये केन्द्र और दिल्ली दोनों की ही आलोचना की और कहा कि वे आरोप प्रत्यारोप लगाने का खेल नहीं खेल सकते क्योंकि इस स्थिति से जनता ही परेशान होगी। पीठ ने कहा कि देश के छह शहरों, इनमें से तीन उप्र में हैं, दिल्ली से ज्यादा प्रदूषित हैं और वायु की गुणवत्ता, सुरक्षित पेयजल और कचरा निष्पादन जैसे मुद्दे देश के प्रत्येक हिस्से को प्रभावित कर रहे हैं। पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि यह मामला अपनी प्राथमिकता खो चुका है।’’ न्यायालय से दिल्ली सरकार से कहा कि वह बताये कि स्मॉग निरोधक संयंत्र के मामले में क्या कदम उठाये गये हैं। यह संयंत्र फैले प्रदूषण के कणों को नीचे लाने के लिये स्वचालित तरीके से हवा में 50 मीटर तक पानी का छिड़काव करता है। पीठ ने केन्द्र को तीन दिन के भीतर उच्च स्तरीय समिति गठिति करने का निर्देश दिया जो प्रदूषण से निबटने के बारे में अन्य प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के तरीकों पर विचार करेगी। केन्द्र को इस संबंध में तीन सप्ताह में अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी। पीठ ने कहा कि प्रदूषण से निबटने के लिये सिर्फ नीति तैयार करने की आवश्यकता नहीं है बल्किनिचली स्तर पर इस पर अमल करने की आवश्यकता है।
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