Ahilyabai Holkar Birth Anniversary: अहिल्याबाई होलकर को दी गई थी 'द फिलॉसफर क्वीन' की उपाधि, जानिए दिलचस्प बातें

होलकर वंश का महारानी अहिल्याबाई का जन्म 31 मई को हुआ था। लोग उनको लोकमाता भी कहते थे। अहिल्याबाई होलकर का जीवन संस्कृति, धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पित था। जिसके कारण उनको 'द फिलॉसफर क्वीन' की उपाधि दी गई थी।
आज ही के दिन यानी की 31 मई को होलकर वंश का महारानी अहिल्याबाई का जन्म हुआ था। जब देश में सती होने की प्रथा का चलना था, उस दौरान अहिल्याबाई होलकर ने होलकर वंश को संभाला था। अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा को अपने पुत्र से भी अधिक प्रेम किया था। लोग उनको लोकमाता भी कहते थे। अहिल्याबाई होलकर का जीवन संस्कृति, धर्म और राष्ट्र के लिए समर्पित था। जिसके कारण उनको 'द फिलॉसफर क्वीन' की उपाधि दी गई। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर अहिल्याबाई होलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड कस्बे के ग्राम चांडी में 31 मई 1725 को अहिल्याबाई का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मनकोजी राव शिंदे था, जोकि मराठा सेना में सैनिक थे और बाद में नायक बने। वहीं उनकी मां का नाम सुशीला बाई थी। बता दें कि मराठा सैनिकों के परिवार की महिलाओं को कुछ सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था और आत्मरक्षा का अभ्यास कराया जाता है। इसके पीछे वजह यह थी कि जब गांव के युवा सैन्य अभियानों पर होते थे तो अराजक तत्व गांव हमला बोल देते थे। ऐसे में गांवों को लूटने के साथ ही महिलाओं को भी निशाना बनाया जाता था। इसलिए सैन्य परिवार की महिलाओं और बेटियों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था। इस दौरान अहिल्याबाई भी भाला और तीर कमान चलाना सीख गई थीं।
इसे भी पढ़ें: Ahilyabai Holkar Birth Anniversary: दूरदर्शी एवं साहसी महिला शासक थी अहिल्यादेवी होलकर
पति का निधन
वहीं 1733 में अहिल्याबाई का विवाह इंदौर के महाराज मल्हार राव होलकर के पुत्र खांडेराव होलकर से हुआ। उस दौरान उनकी उम्र 8 साल थी और खंडेराव अहिल्याबाई से दो साल बड़े थे। बाल विवाह के कारण अहिल्याबाई 4 साल तक अपने मायके में रहीं। वहीं 1737 में उनका गौना हुआ और वह सामान्य सैनिक की बेटी से राजवधू बन गई थीं। लेकिन मजह 29 साल की उम्र में अहिल्यबाई होलकर के पति का निधन हो गया था। ऐसे में जब खांडेराव होलकर का निधन हुआ, तो मल्हारराव जी ने अपनी बहू को सती होने से रोका था और उनको राजकाज से जोड़ा। फिर उनके ससुर मल्हारराव का भी निधन हो गया।
पुत्र को सुनाई मौत की सजा
ससुर मल्हारराव होलकर की मृत्यु के बाद उनका पौत्र मालेराव होलकर मालवा का सूबेदार बना। लेकिन पुत्र के गलत आचरण के कारण अहिल्याबाई दुखी रहती थीं। जहां अहिल्याबाई धार्मिक कार्यों और समाज सेवा में रुचि लेती थीं, तो वहीं मालेराव को यह सब पसंद नहीं था। वह लोगों के साथ निर्दयतापूर्वक और कठोर व्यवहार करता था। ऐसे में अहिल्याबाई ने मालेराव को हाथी से कुचलवा दिए जाने का आदेश दे दिया। इस घटना से अहिल्याबाई को मानसिक आघात पहुंचा और उन्होंने एकांतवास का विचार किया। लेकिन उनको जल्द ही अपने कर्तव्य को बोध हुआ और राजकाज में जुट गईं।
महिलाओं के अधिकार
अहिल्याबाई महिलाओं के सम्मान और अधिकार के प्रति संवेदनशील थीं। उस दौरान एक नियम था कि यदि किसी पुरुष का निधन हो जाता है और उसकी कोई संतान न हो तो उस व्यक्ति की सारी संपत्ति राजकोष में चली जाती थी। पुरुष उत्तराधिकारी के न होने पर संपत्ति में महिला का अधिकार नहीं होता था। लेकिन अहिल्याबाई ने इस नियम को बदला और पति या पुत्र के निधन पर मां और पत्नी का अधिकार सुनिश्चित किया।
मृत्यु
वहीं 13 अगस्त 1795 को अहिल्याबाई होलकर का निधन हो गया था।
अन्य न्यूज़












