जयंती विशेषः प्रगतिशील त्रयी के महत्त्वपूर्ण स्तंभों में एक थे त्रिलोचन शास्त्री

trilochan shastri
अंकित सिंह । Aug 20 2020 12:07PM

त्रिलोचन शास्त्री ने कविता के अलावा कहानी, गीत, गजल और आलोचना से भी हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया। उनकी पहली कविता संग्रह भर्ती 1945 में प्रकाशित हुई थी। गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूं और ताप के ताए हुए दिन खूब लोकप्रिय हुए थे।

हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों की जब-जब बात होगी तब-तब उसमें त्रिलोचन शास्त्री का नाम भी प्रमुख रूप से उभरेगा। त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील हिंदी कविता के दूसरे दौर के सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील त्रयी के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे। यथार्थवादी कविता को छायावाद के बाद हिंदी में सर्वाधिक महत्वपूर्ण धारा माना गया है। इस धारा में त्रिलोचन शास्त्री का योगदान अपरिमित और ऐतिहासिक है। त्रिलोचन शास्त्री संघर्षशील कवियों में से एक थे।

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त्रिलोचन शास्त्री काशी की साहित्यिक परंपरा के मुरीद थे। उनका जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कटघरा चिरानी पट्टी नामक गांव में हुआ था। उनका मूल नाम वासुदेव सिंह था। त्रिलोचन शास्त्री ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की और लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की डिग्री प्राप्त की थी। विद्यार्थी जीवन के दौरान ही त्रिलोचन शास्त्री ने दर्जनों पुस्तकें लिखी और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। त्रिलोचन शास्त्री को हिंदी के अलावा अरबी और फारसी भाषाओं का भी जानकार माना जाता था। हिंदी साहित्य की सेवा के साथ-साथ उन्होंने जनसेवा का भी बीड़ा उठाया था। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वह अच्छे खासे सक्रिय रहे थे। उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का भी संपादन किया।

त्रिलोचन शास्त्री ने कविता के अलावा कहानी, गीत, गजल और आलोचना से भी हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया। उनकी पहली कविता संग्रह भर्ती 1945 में प्रकाशित हुई थी। गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूं और ताप के ताए हुए दिन खूब लोकप्रिय हुए थे। त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वाराणसी के ज्ञान मंडल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिंदी तथा उर्दू की सेवा करते रहे। त्रिलोचन शास्त्री ने अपनी कविताओं से इस बात को भी प्रमाणित किया कि कोई संकीर्ण और एकपक्षीय कविता नहीं होता बल्कि उसमें जीवन की ही तरह व्यापकता और विविधता रहती है। शास्त्री ने हमेशा नवसृजन को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि भाषा में जितने भी प्रयोग किए जाएंगे वह उसे उतना ही समृद्ध बनाएगा।

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त्रिलोचन शास्त्री अपनी कविताओं से मेहनतकश और दबे कुचले समाज की आवाज उठाते रहे। उनकी कविताओं में भारत के ग्राम और देहात समाज की झलक मिलती थी। त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी में शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। उन्हें हिंदी में उत्कृष्ट योगदान के लिए शास्त्री और साहित्य रत्न जैसे उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है। 1982 में ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इन सबके अलावा उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार, हिंदी संस्थान सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शलाका सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार, सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद सम्मान आदि से भी उन्हें सम्मानित किया गया है।

त्रिलोचन शास्त्री की महत्वपूर्ण रचनाएं हैं:- धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताए हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूं, अरधान, तुम्हें सौपता हूं, मेरा घर, चैती। त्रिलोचन शास्त्री द्वारा लिखी गई कहानी संग्रह देशकाल भी खूब लोकप्रिय हुआ था। त्रिलोचन शास्त्री ने अपने जीवन का आखरी समय अपने परिवार के साथ हरिद्वार में बताएं। अंतिम के वर्षों में भी वह काफी सक्रिय रहें। उनका निधन 9 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में हुआ था।

- अंकित सिंह

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