ज्योति बसु ने बंगाल में दशकों तक संभाले रखा वामपंथ का किला, पीएम बनते-बनते रह गए

jyoti basu
Prabhasakshi
अंकित सिंह । Jul 8 2022 10:50AM

ज्योति बसु 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा के विपक्ष के नेता चुने गए। 1967 में जब वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो ज्योति बसु को पश्चिम बंगाल का गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन यह वही दौर था जब नक्सलवादी आंदोलन अपने चरम पर था।

देश में जब भी कद्दावर और वरिष्ठ नेताओं के बात होगी, उसमें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का नाम जरूर आएगा। सामान्य जीवन जीने वाले ज्योति बसु पश्चिम बंगाल 1977 से लेकर 2000 तक के पश्चिम बंगाल के छठे और सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। ज्योति बसु का जन्म कोलकाता में 8 जुलाई 1914 को हुआ था। उनके पिता का नाम निशिकांत बसु था जो कि ढाका के वार्दी गांव में एक मशहूर डॉक्टर हुआ करते थे जबकि मां हेमलता गृहिणी थीं। ज्योति बसु का पहले नाम ज्योति किरण बसु हुआ करता था। लेकिन बाद में उनके नाम को छोटा करके ज्योति बसु कर दिया गया। ज्योति बसु ने अपनी शुरुआती शिक्षा-दिक्षा कोलकाता से ही हासिल की। बाद में उन्होंने वर्ष 1925 में सेंट जेवियर स्कूल में पढ़ाई की। इससे पहले उन्होंने अपना स्नातक हिंदू कॉलेज में अंग्रेजी ऑनर्स से पूरी की थी। 

धीरे-धीरे उनका झुकाव राजनीति की तरफ होने लगा और 1930 में वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सदस्य बन गए। 1935 में कानून की पढ़ाई करने के लिए ज्योति बसु इंग्लैंड गए। इंग्लैंड में भी वह कई कम्युनिस्ट नेताओं के संपर्क आए। वामपंथी दार्शनिक और लेखक रजनी पाम दत्त से प्रेरित होकर ज्योति बसु सक्रिय राजनीति में आए। इसी दौरान उन्होंने 1940 में अपनी शिक्षा पूर्ण की और बैरिस्टर के रूप में मिडिल टेंपल से पात्रता हासिल की थी। 1944 में पहली बार सीबीआई ने उन्हें रेलवे कर्मचारियों के बीच काम करने के लिए कहा था। जब बी एन रेलवे कर्मचारी संघ और बीडी रेल रोड कर्मचारी संघ का विलय हुआ तो ज्योति बसु इसके महासचिव बने। ज्योति बसु के अंदर राजनीतिक सूझबूझ बेहद अच्छी थी। यही कारण रहा कि वह धीरे-धीरे राजनीति की सीढ़ियों को चढ़ते गए। पार्टी में भी उनका कद बढ़ता गया और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि ज्योति बसु बढ़-चढ़कर हर आंदोलन में भाग लेते थे और लोगों की आवाज उठाते थे।

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ज्योति बसु 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा के विपक्ष के नेता चुने गए। 1967 में जब वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो ज्योति बसु को पश्चिम बंगाल का गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन यह वही दौर था जब नक्सलवादी आंदोलन अपने चरम पर था। यही कारण रहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार गिर गई और वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1977 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए जनता पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच बातचीत सफल नहीं हो पाई थी। यही कारण रहा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। वाम मोर्चे ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 290 में से 230 सीटों पर जीत हासिल की। सीपीआईएम ने अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने। उसके बाद से ज्योति बसु लगातार 23 वर्षों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने।

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सन 2000 में उन्होंने खुद सक्रिय राजनीति से दूर होने का फैसला लिया। 1977 से लेकर 2001 तक सतगछिया निर्वाचन क्षेत्र का वह लगातार प्रतिनिधित्व करते रहे। पश्चिम बंगाल में ज्योतिष बसु को बेहतर कामों के लिए याद किया जाता है। नक्सलवादी आंदोलन से बंगाल में उत्पन्न हुई अस्थिरता को उन्होंने राजनीतिक स्थिरता में बदली। भूमि सुधार को लेकर भी उन्होंने कई बड़े काम किए। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी को दूर करने में भी ज्योति बसु ने अहम भूमिका निभाई। ज्योति बसु हमेशा देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। उनके जीवन में लगभग यह मौका तीन बार आया। दो बार उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया था। पर तीसरी बार उन्हें जब 1996 में प्रधानमंत्री बनने का ऑफर मिला तो वह तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा था कि अगर पार्टी अनुमति देगी तो वह प्रधानमंत्री बनेंगे। ज्योति बसु को तब बड़ा धक्का लगा जब पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने की इजाजत नहीं दी। ज्योति बसु इससे काफी निराश हुए थे। लंबे समय तक देश और पश्चिम बंगाल की सेवा करने वाले ज्योति बसु का निधन 17 जनवरी 2010 को कोलकाता के एक अस्पताल में हो गया।

- अंकित सिंह

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