Morarji Desai Death Anniversary: 81 साल की उम्र में बने थे प्रधानमंत्री, मोरारजी ऐसे एकलौते राजनेता थे जिन्हें दो देशों ने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा था

Morarji Desai
Prabhasakshi

मोरारजी देसाई ने साल 1929 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और भारत की आजादी की लड़ाई में हिस्सा ले लिया। इस दौरान उन्होंने सविनय-अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान साल 1930 में वह 3 बार जेल गए। 1930 में ही देसाई कांग्रेस पार्टी से भी जुड़ गए थे।

भारतीय राजनीति में उम्मीदवार और दावेदार शब्द के अर्थ बहुत अलग होते हैं। जैसे अगर हम पीएम पद के उम्मीदवार और दावेदारों की बात करें तो इसके लिए कई नाम आगे आएंगे। लेकिन भारतीय राजनीति में एक नाम ऐसा था जो सबसे ज्यादा लंबे समय तक पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बल्कि दावेदार रहा। आज भी उनका रिकॉर्ड नहीं टूटा है और शायद ही कभी टूट सके। हम उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर भी जानते हैं। आपको बता दें कि यहां पर बात हो रही है। भारत के पूर्व पीएम मोरारजी देसाई की। आज ही के दिन यानी की 10 अप्रैल को उनका निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

बॉम्बे प्रांत (आज के गुजरात) भलसार जिले के भदेली गांव में 29 फ़रवरी 1896 को मोरारजी रणछोड़जी देसाई का जन्म हुआ था। यह अत्याधिक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। देसाई के पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर में एक स्कूल टीचर थे और उनकी मां वीजाबाई थीं। देसाई ने अपनी शुरूआती शिक्षा संत भुसार सिंह हाई स्कूल से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए देसाई जी ने मुंबई के विल्सन कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन आर्थिक परेशानियों के कारण इनके पिता ने सुसाइड कर लिया। जिसके बाद देसाई के घर के हालात और अधिक बिगड़ गए। लेकिन उन्होंने कभी भी मुश्किल समय में हार नहीं मानी।

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ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद मोरारजी ने सिविल की परीक्षा पास की और साल 1981 में सिविल सर्विस शुरू कर दी। वह 12 सालों तक डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत रहे। डिप्टी कलेक्टर के पद में कार्य के दौरान गुजरात में देसाई जी महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आये। देसाई तिलक और गांधी जी से काफी प्रभावित हुए। बता दें कि घर की विषम परिस्थितियों ने मोरारजी को काफी कठोर बना दिया था। जिस कारण उन्हें कांग्रेस का अड़ियल नेता भी कहा जाता था।

स्वतंत्रता सेनानी

मोरारजी ने साल 1929 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और भारत की आजादी की लड़ाई में हिस्सा ले लिया। इस दौरान उन्होंने सविनय-अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान साल 1930 में वह 3 बार जेल गए। 1930 में ही देसाई कांग्रेस पार्टी से भी जुड़ गए थे। कार्य के प्रति लग्न को देख कर साल 1937 में देसाई जी को गुजरात प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद गांधी जी द्वारा सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण मोरारजी को जेल भेज दिया गया था। जहां से यह साल 1941 में मुक्त हुए और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के लिए फिर से जेल गए। इस दौरान वह साल 1945 में बाहर आए।

राजनैतिक सफर

साल 1946 में देसाई जी को करमंत्री एवं गृहमंत्री बनाया गया और साल 1952 में बम्बई का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस दौरान महाराष्ट्र और गुजरात को राज्य बनाने की मांग को लेकर हुए आंदोलनों का उन्होंने विरोध किया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली की राजनीति में प्रवेश किया। यहां वह नेहरू के कैबिनेट में वित्त मंत्री के तौर पर शामिल हुए। हालांकि पार्टी के विचारों और मोरारजी के विचारों में कई बार मतभेद और टकराव होते रहे।

साल 1964 में जवाहरलाल नेहरु के निधन के बाद मोरारजी देसाई अगले पीएम बनना चाहते थे। सिर्फ मोरारजी ही नहीं बल्कि अन्य नेता भी उन्हें प्रधानमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार मान रहे थे। लेकिन इस दौरान सत्ता संभाली इंदिरा गांधी ने और मोरारजी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि मोरारजी इससे खुश नहीं थे। क्योंकि उन्हें लगता था कि वह इंदिरा गांधी से ज्यादा योग्य हैं। इसीलिए उनके और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बीच संबंध अच्छे नहीं थे। मोरारजी पार्टी के लिए नई मुश्किलें पैदा करने लगे थे। वहीं इंदिरा गांधी और मोरारजी के बीच काफी विवाद भी हुआ था। साल 1969 में वैचारिक मतभेद अधिक बढ़ने के कारण कांग्रेस पार्टी के दो टुकड़े हो गये।

जिसके बाद मोरारजी ने डिप्टी सीएम के पद को त्याग दिया। साथ ही इंदिरा गांधी और उनके बीच रिश्ते अधिक खराब होने लगे। मोरारजी ने विरोधी पार्टी की कमान संभालते हुए साल 1971 में फिर से चुनाव लड़ा। वहीं इंदिरा के खिलाफ उन्होंने याचिका दायर कर दी। जिसके कारण इंदिरा गांधी को चुनाव से दूर रहने के लिए कहा गया। इस दौरान गुजरात के सूरत से लोकसभा चुनाव की सीट से मोरारजी ने विजय हासिल की। जिसके बाद संसद में उनको जनता पार्टी का लीडर बनाया गया। वहीं साल 1977 में भी जनता पार्टी को जनता का भरपूर सहयोग मिला और देश में पहली बार गैर कांग्रेस पार्टी ने सत्ता की कमान संभाली।

मोरारजी देसाई को साल 1977 में प्रधानमंत्री बना दिया गया। इस दौरान उनकी आयु 81 वर्ष की थी, जो आज भी एक रिकॉर्ड है। प्रधानमंत्री बनने के बाद देसाई जी ने अपनी समझदारी से भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने का काम किया। वहीं साल 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई के बाद उससे भी राजनीतिक संबंध को सुधारने का प्रयास किया। आपातकाल के दौरान बनाए गए कई नियम-कानूनों को बदलने के साथ ही ऐसे नियम भी बनाए, जिससे कि कभी भविष्य में सरकार के सामने आपातकालीन स्थिति न आए। हालांकि मोरारजी ज्यादा समय तक पीएम पद पर नहीं बने रह सके। साल 1971 में जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया। अपने पद से हटने के साथ मोरारजी ने राजनीति से भी संन्यास ले लिया।

मौत

मोरारजी देसाई लंबे समय तक जीवित रहना चाहते थे। राजनीति छोड़ने के बाद वह मुंबई में रहने लगे थे। 10 अप्रैल 1995 को मोरारजी देसाई का 99 साल की उम्र में निधन हो गया था।

मोरारजी देसाई अवार्ड

1990 में पाकिस्तान सरकार द्वारा निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा गया।

1991 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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