राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का नाम रोशन कर चुके हैं महाभारत के भीम प्रवीण सोबती

praveen kumar sobti

खेलों के अपने सफर के बाद प्रवीण कुमार सोबती मनोरंजन जगत में दूसरी पारी की शुरूआत की। उन्होंने 2013 में आम आदमी पार्टी की सदस्यता भी ली लेकिन अगले साल भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।

महाभारत में ‘भीम’ का किरदार निभाकर उन्हें काफी लोकप्रियता मिली लेकिन उससे पहले प्रवीण कुमार सोबती एक शानदार खिलाड़ी थे और राष्ट्रमंडल खेलों की तारगोला फेंक (हैमर थ्रो) स्पर्धा में भारत के पहले और इकलौते पदक विजेता थे। 74 वर्ष के सोबती का सोमवार की शाम दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इसके बाद से मनोरंजन से लेकर खेल जगत तक हर वर्ग से उनके लिये श्रृद्धांजलि दी जा रही है। पंजाब के सरहाली कलां गांव के रहने वाले सोबती बीएसएफ के पूर्व जवान थे। उन्होंने भारत के लिये एशियाई खेलों में दो स्वर्ण समेत चार पदक जीते थे।

इसे भी पढ़ें: 74 साल की उम्र में प्रवीण कुमार ने ली आखरी सांस, महाभारत का 'भीम' बन मिली थी प्रसिद्धि

साठ और 70 के दशक में चक्काफेंक और तारगोला फेंक में उन्होंने कई पदक जीते जिसमें एशियाई खेलों के तीन और राष्ट्रमंडल खेल का एक पदक शामिल है। उन्होंने 1968 मैक्सिको और 1972 म्युनिख ओलंपिक में भी भाग लिया जिसमें इस्राइली खिलाड़ियों की फलस्तीन के एक आतंकी समूह ने हत्या की थी। सोबती ने चक्का फेंक में 1966 और 1970 एशियाई खेलों में पदक जीता और 1966 में तारगोला फेंक में कांस्य और उसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता था। उन्होंने 1974 एशियाई खेलों में चक्का फेंक में भी रजत पदक जीता था। राष्ट्रमंडल खेलों की तारगोला फेंक स्पर्धा में उनका रजत किसी भारतीय का इकलौता पदक है। 

खेलों के अपने सफर के बाद उन्होंने मनोरंजन जगत में दूसरी पारी की शुरूआत की। उन्होंने 2013 में आम आदमी पार्टी की सदस्यता भी ली लेकिन अगले साल भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उनके साथी रहे बहादुर सिंह ने कहा, ‘‘वह काफी जिंदादिल और सकारात्मक इंसान थे। प्रतियोगिताओं में, अभ्यास के दौरान या आम बातचीत में वह काफी खुशदिल रहते थे। वह हमेशा लतीफे सुनाते रहते थे। वह जहां भी होते, हर कोई हंसता रहता था।’’ सोबती ने 1988 में बी आर चोपड़ा के धारावाहिक महाभारत में भीम की भूमिका निभाई। इसके अलावा ‘युद्ध’, ‘अधिकार’, ‘हुकूमत’, ‘शहंशाह’, ‘घायल’ और ‘आज का अर्जुन’ जैसी फिल्मों में भी काम किया। 800 मीटर के महान धावक श्रीराम सिंह ने कहा कि सोबती जूनियर खिलाड़ियों से भी काफी सम्मान और प्यार से मिलते थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैं 1972 ओलंपिक में उनके साथ था लेकिन काफी जूनियर था। उन्होंने हालांकि ऐसा कभी महसूस नहीं होने दिया। वह उस समय जाने माने खिलाड़ी थे लेकिन हमसे काफी हिल मिल गए थे। वह महान खिलाड़ी और बेहतरीन इंसान थे।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़