साक्षात्कारः कृषि मंत्री तोमर ने कहा- अन्नदाताओं की आड़ लेकर गंदी राजनीति न करे विपक्ष

narendra singh tomar

कृषि मंत्री ने कहा है कि कानूनों से खेती बाड़ी को तो नुकसान नहीं होगा फायदा ही होगा, पर किसान नेताओं का नुकसान जरूर हो जाएगा, उनकी नेतागिरी खत्म हो जाएगी। किसान नेता लुप्त हो जाएंगे। किसानों की आड़ में मौज मारने वालों की मौजमस्ती का दी एंड होने वाला है।

राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन को 40 दिन होने को है। किसान-सरकार के बीच कई दौर की वार्ताएं हुईं, जो सभी बे-नजीता रहीं। सरकार की मानें तो एकाध मसलों पर सहमति बनने को है। लेकिन आंदोनकारी दिल्ली तभी छोड़ेंगे जब केंद्र सरकार तीनों क़ानूनों को वापस नहीं ले लेती। सरकार और किसान दोनों ने ठाना हुआ है, कोई पीछे हटने को राजी नहीं। तीन दर्जन से ज्यादा किसानों की मौतें भी हो चुकीं हैं बावजूद इसके किसानों के आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं है। आंदोलन से अर्थव्यवस्था भी हिचकोले मारने लगी है। राजधानी की आबोहवा भी दिनों दिन खराब होती जा रही है। कैसे छटेंगे ये बादल, इन्हीं सभी सवालों को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से की गुफ्तगू। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-

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प्रश्न- सरकार कहती है कि नए कृषि कानून फ़ायदेमंद हैं, लेकिन किसान इसे नुक़सानदेह मानते हैं, ऐसे में कैसे निकलेगा समाधान?

उत्तर- मुझे लगता नहीं कि कोई भी किसान ऐसा सोचता हो कि नए कानून से उनको नुकसान होगा। ये सिर्फ विपक्षी दलों का प्रोपेगेंडा मात्र हैं। वह पहले दिन से ही किसानों को गुमराह करने में लगे हैं। मैं इतना जरूर कहूंगा कि इन कानूनों से खेती बाड़ी को तो नुकसान नहीं होगा फायदा ही होगा, पर हां किसान नेताओं का नुकसान जरूर हो जाएगा, उनकी नेता गिरी खत्म हो जाएगी। किसान नेता लुप्त हो जाएंगे। किसानों की आड़ में मौज मारने वाले नेताओं की मौजमस्ती का दी एंड होने वाला है। उन्हें अन्नदाताओं की चिंता नहीं, बल्कि खत्म होने जा रही उनकी नेता गिरी की चिंता है। किसान-सरकार के बीच होने वाली आगामी वार्ता में कुछ समाधान निकलेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है।

प्रश्न- आपके मुताबिक व्यापारियों और किसानों के दरमियान खुदी गहरी खाई पट सकेगी?

उत्तर- निश्चित रूप से। कृषि क़ानूनों के लागू हो जाने के बाद किसानों की उपज की खरीद के लिए व्यापारी खुद उनके घर तक आएंगे। उनका अनाज एमएसपी के निर्धारित रेट पर खरीदेंगे। किसानों को मंडियों तक भी नहीं जाना पड़ेगा। किसान सब कुछ समझते हैं और जानते हैं कि उसकी उपज कौन खरीदेगा। जैसे कि व्यापारियों को उपज खरीदना है और जब उपज मंडियों तक नहीं आएगी तो व्यापारियों को किसानों के गांव का दौरा करने और किसानों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने और किसानों की उपज उनके घर जाकर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। ऐसी ही व्यवस्था क़ानूनों के जरिए हमने की है। फिर बताइए इसमें बुरा क्या हैं। विपक्ष के लोग बिना वजह किसानों को गुमराह कर रहे हैं।

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प्रश्न- ये बात सरकार किसानों को समझाने में विफल क्यों है?

उत्तर- हम समझा तो रहे हैं, कोई समझें तब न? किसानों को बहकाया जा रहा है। फ़ायदों की जगह उन्हें नुकसान बताया जा रहा है। किसानों का उत्पादन और व्यापार और वाणिज्य विधेयक-2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक-2020 और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते-2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 ये तीनों कानून खेती बाड़ी की दशा सुधार देंगे। हम सभी कहीं न कहीं खेती किसानी से जुड़े हैं। हमारे पूर्वजों का वजूद खेती से रहा है। इसलिए अपनी जमीन को सहेजने की हम सबको एक जैसी चिंता है। सरकार किसानों की हितैषी है। प्रधानमंत्री पर देशवासी विश्वास करते हैं। इसलिए उनका अहित नहीं करेंगे।

प्रश्न- किसान एमएसपी पर गारंटी की भी मांग कर रहे हैं?

उत्तर- किसानों की सभी मांगों पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। मुझे लगता है किसानों की मांगों को लेकर विपक्ष के लोग भ्रमित कर रहे हैं। पहले दौर की जब मेरे साथ वार्ता हुई थी तो उसमें मांगे कुछ और थीं और जब दूसरे दौर की वार्ता हुई तो उसमें कुछ और मांगें रखी गईं। नए कानून किसानों को आजादी देंगे और उनके पैसे बचाएंगे। छोटे किसान मंडी में अपनी उपज लाने में विफल रहते हैं, इस डर से कि लॉजिस्टिक लागत से लाभ मिलने की संभावना कम हो जाएगी। कभी-कभी जब वे अपनी उपज को मंडियों में लाते हैं तो वे सरकार द्वारा दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ भी नहीं ले पाते हैं। हम अब उन्हें अपने घरों, खेतों और गोदाम से अपनी उपज बेचने की आजादी दे रहे हैं। अब व्यापारी किसानों के पास जाएंगे। पहले किसान व्यापारियों से मिलने जाते थे और व्यापारियों द्वारा जो भी पैसा दिया जाता था, उसे लेते थे। संशय किसी बात का नहीं है, सिर्फ उलझाया जा रहा है।

प्रश्न- आपको क्या लगता है आंदोलन में किसान नहीं, कोई और हैं?

उत्तर- निश्चित रूप से आंदोलन के पीछे विपक्षी पार्टियों का हाथ है, विशेष कर कांग्रेस के लोग शामिल हैं। देखिए, कांग्रेस का नेतृत्व सालों से निष्प्रभावी है। खुद में तो लड़ने की हिम्मत है नहीं इसलिए किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता कृषि को तो समझते नहीं है और पार्टी अपने निहित स्वार्थों के लिए किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। विपक्षी पार्टी अच्छे लोगों की बात नहीं सुनती है और इसका नेतृत्व उन लोगों के हाथों में है, जिन्हें लोगों द्वारा नहीं सुना जाता है।

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प्रश्न- कई किसान संगठनों ने आपसे मिलकर नए क़ानूनों का समर्थन भी किया है? 

उत्तर- अब भी लगातार कई किसान संगठन कृषि क़ानूनों के फ़ायदों को देखते हुए सरकार का समर्थन कर रहे हैं। उनका लगता है सरकार उनका भला चाहती है। हिंदी पट्टी के अलावा देश के बाकी हिस्सों के किसान सरकार के साथ हैं।

-बातचीत में जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा।

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