साक्षात्कारः वैदिक मंत्र गुरु आचार्य शैलेश तिवारी ने बताया कब और कैसे खत्म होगा कोरोना

Acharya Shailesh Tiwari
डॉ. रमेश ठाकुर । Dec 31 2020 11:12AM

विज्ञान की चकाचौंध में मानव दैवीय ताक़तों को कमतर आंकने लगा है। वेदों में वर्णित है कि प्रकृति पर जब बोझ बढ़ता है तो उसे संतुलित करने के लिए ऐसे संकटों का प्रवाह दैव लोक से होता है। हम मानें या न मानें, पर कोरोना भी उसी कड़ी का हिस्सा मात्र है।

एक जमााने में हारी-बीमारियों का निवारण वैदिक मंत्रोच्चारण या औषधियों से ही संभव था। पर, जैसे विज्ञान ने तरक्की की, मॉर्डनयुग उसी का हो गया। भूल गया सबकुछ, उन बातों का इंसान अनुकरण नहीं, बल्कि उपहास उड़ाता है। प्रकृतिक आपदाओं से अनभिज्ञ है। कोरोना महामारी से इस वक्त पूरी दुनिया जूझ रही है। ज्ञान, विज्ञान, मानवीय आविष्कारों को लोग समझना नहीं चाह रहे। ऐसी विपदाओं से निपटने में आध्यात्मिक क्षेत्र किस तरह की भूमिका निभा सकता है इसे समझने के लिए डॉ रमेश ठाकुर ने वैदिक मंत्र गुरु आचार्य शैलेश तिवारी से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं उनके साथ वार्ता के मुख्य अंश-

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सवालः कोविड-19 को आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- कोरोना महामारी को मैं पूर्ण रूपी दैवीय प्रकोप कहूंगा। समय-समय पर ऐसे संकटों का धरती ने सामना किया है। ये सिलसिला अनादि काल से चलता आया है। इंसानों ने देवी-देवताओं और वेदों आदि से किनारा कर लिया है। विज्ञान की चकाचौंध में मानव इतना खो गया है कि वह दैवीय ताक़तों को कमतर आंकने लगा है। वेदों में वर्णित है कि प्रकृति पर जब बोझ बढ़ता है तो उसे संतुलित करने के लिए ऐसे संकटों का प्रवाह दैव लोक से होता है। हम मानें या न मानें, पर कोरोना भी उसी कड़ी का हिस्सा मात्र है। प्राचीन काल में ऐसे संकटों पर बड़े-बड़े यज्ञ-अनुष्ठान किए जाते थे। पर, आज उस तरफ किसी का ध्यान तक नहीं जाता।

सवालः तो क्या ये बीमारी कुदरती है?

उत्तर- कोरोना के रूप में कुदरत के संकेत मानव जाति के लिए सुखद नहीं कहे जाएंगे। कोरोना कुदरती बीमारी है इसे मान लेना चाहिए। देखिए, चाहे बड़े युद्ध से हुई हानि हो, या फिर रोग से मरे लोग। हजारों वर्षों बाद धरा अपने भार को संतुलित करती है। कोरोना को मैं साक्षात् महाशक्ति का रूप मानता हूं। कोरोना पर काबू करने में इंसान का जोर नहीं चल रहा, समूची मानव शक्ति इस महामारी के सामने पंगु है। इतिहास को उठाकर देखें पूर्व में प्लेग, चेचक, हैजा जैसी महामारियों का उदय हुआ जिसमें अनगिनत लोग मरे। कोविड भी उन्हीं बीमारियों का हिस्सा है। जब चेचक की उत्पत्ति हुई तो उसे दुर्गा मंत्र से जाना गया, वह दुर्गा मां का गुस्सा था। उनके गुस्से को दुर्गासप्तशती के पाठ से शांत किया गया था। वैक्सीन से कहीं ज्यादा इंसानों को मां दुर्गा की आराधना करनी चाहिए।

सवालः राजनीतिक-सामाजिक घटनाओं की भांति कोरोना पर आपकी भविष्यवाणी क्या कहती है? 

उत्तर- देखिए, कोरोना इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाला। शनि की ढैय्या 2 साल 6 माह के लिए होती है। ये बीमारी अपने पूरे समय तक जोर दिखाती रहेगी। कोरोना का प्रभाव कम-ज्यादा होता रहेगा। कोरोना की सच्चाई शाश्वत है। बड़ी हानि करके ही शांत होगी। संसार भर में करीब बीस लाख के आसपास लोग भेंट चढ़ चुके हैं। सिलसिला अगले डेढ़ वर्ष तक और जारी रहने का अनुमान है। 

सवालः वैदिक मंत्रों से क्या कोरोना को हराना संभव है?

उत्तर- बिल्कुल संभव है। दुर्गा सप्तशती के 11वें और 12वें अध्याय में माता दुर्गा ने महामारी के दैवी प्रकोपों का वर्णन किया है और उनके शमन हेतु 11वें और 12वें अध्याय में कुछ विशेष तथ्यों का भी वर्णन है जिसके अनुसार अगर लक्ष्य चंडी का पाठ इन्हीं मंत्रों से किया जाए तो महामारी रोकने में दैवीय शक्तियां अपनी कृपा देंगी। श्री मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गासप्तशती स्तुति तथा मंत्र अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं। शनि और बृहस्पति की युति से गर्मियों में कुछ हालात सुधरेंगे। इसके अतिरिक्त राहु वर्ष भर वृष राशि में रहेंगे तथा शनि मकर राशि में गोचर करेंगे। वृष के राहु तकनीकी क्षेत्र (इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी) तथा मकर के शनि कृषि क्षेत्र में नई ऊर्जा लाएंगे।

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सवालः विकट परिस्थितियों में संकटमोचक बनने वाली दैवीय शक्तियां अब असर क्यों नहीं दिखाती?

उत्तर- दैवीय शक्ति कमजोर नहीं पड़ी हैं। लुप्त हुईं हैं और लुप्त होने के कोई एक कारण नहीं, बल्कि तमाम कारण हैं। अव्वल, प्रकृति के साथ मानव द्वारा छेड़छाड़ प्रमुख है। प्रकृति जीवों को कभी भी अपने साथ हिमाकत करने की इजाज़त नहीं देती। इंसान धरती को उजाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वैसे, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो 2021 अप्रैल के दूसरे सप्ताह में गुरु अपनी नीच राशि मकर को छोड़कर कुंभ राशि में चले जाएंगे जिसे ज्योतिषशास्त्र में ‘अमृत कलश’ की राशि कहा जाता है। कुंभ राशि में आते ही गुरु पूरी दुनिया को कोरोना वायरस महामारी से बड़ी राहत देंगे। पर, कोरोना से पूरी तरह राहत साल 2021 और 2022 में ही मिलने की संभावना है। कोरोना से राहत और मास्क से मुक्ति साल 2023 के मार्च के बाद हो पाएगी। 

सवालः क्या आपको लगता है कि कोरोना से लड़ने में चिकित्सा पद्धति ने नकारात्मक भूमिका निभाई है?

उत्तर- मैं ऐसा नहीं मानता। चिकित्सा विज्ञान अपना काम कर रहा है। किसी मर्ज की दवाई कोई एक दिन में नहीं बन जाती। सालों लगते हैं। आयुर्वेद विकल्प हो सकता है जिसमें हरसिंगार का पत्ता जिसे रातरानी जश्मिन कहते हैं, उस पौधे के पत्ते में महाशक्ति है। आयुर्वेद में बुखार-खांसी और कोरोना जैसे महामारी को समाप्त करने की शक्ति है। अपराजिता के पत्ते को पानी में उबाल कर काढ़े के रूप में प्रयोग करने से कोरोना नेगेटिव आ जाता है। आयुर्वेद को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।

-जैसा मंत्रवैदिक आचार्य शैलेश तिवारी ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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