आर्थिक चुनौतियां झेल रहे देश में कोरोना ने रोजगार पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया

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पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे विश्व को यह आर्थिक तौर पर गहरा आघात लगा। जिसकी वजह से विश्व में व्यापक स्तर पर नौकरियाँ गयीं और पहले से ही सुरसा की तरह मुँह बाये खड़ी बेरोजगारी की समस्या और विकराल हो गयी।

कोरोना की दस्तक चीन में अक्टूबर में ही सुनाई पड़ी थी। इस भयावहता के बारे में जब तक कुछ समझ पाते और विश्व स्वास्थ्य संगठन इसकी पुष्टि करने हेतु जब तक कोई आधिकारिक बयान जारी करता, इस विनाशकारी रोग ने कमोबेश संपूर्ण विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। सर्वथा नये इस प्राणघातक रोग का कोई इलाज या टीका न होने के कारण इसको रोकने का केवल एक तरीका था, वह था आपसी सम्पर्क को  कम से कम करना। 

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इसको शुरुआती दौर में लागू करने हेतु विश्व के लगभग सभी देशों में पूर्ण तालाबंदी (लॉकडाउन) को अपनाया गया। जिससे प्रत्येक देश में इमरजेंसी सेवाओं को छोड़ कर, अन्य सभी सेवाओं तथा संस्थानों, बाजारों तथा कार्यालयों को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप हर प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हो गयीं। पहले से ही आर्थिक मंदी की मार झेल रहे विश्व को यह आर्थिक तौर पर गहरा आघात लगा। जिसकी वजह से विश्व में व्यापक स्तर पर नौकरियाँ गयीं और पहले से ही सुरसा की तरह मुँह बाये खड़ी बेरोजगारी की समस्या और विकराल हो गयी। क्या विकसित, क्या विकासशील या अविकसित देश सभी को इस समस्या से दो चार होना पड़ रहा है।

भारत में तो यह समस्या और भी गम्भीर हो चुकी है

देश में कई आर्थिक एवं सामाजिक कारणों से कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था बदहाल है। जो कि मुख्य कारण है आजीविका तथा बेहतर ज़िंदगी की तलाश में शहरों की ओर पलायन का। यह पलायन भी ज़िला मुख्यालय या पास के नगरों तक ही सीमित नहीं है, अपितु देश के अन्य औद्योगीकृत राज्यों में स्थित बड़े शहरों की ओर विशाल संख्या में लगातार होता रहा है। यद्यपि कुछ भाग्यशाली व पढ़े-लिखे कामगारों या श्रमिकों को छोड़ दें तो बाकियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है पर गाँवों या छोटे शहरों के दयनीय जीवन से तो बेहतर ही है। इसी कारण देश के लगभग हर नगर एवं महानगर की आबादी का बड़ा हिस्सा गाँव-देहात तथा छोटे शहरों तथा कस्बों से आये प्रवासी कामगारों तथा रेहड़ी-पटरी पर छोटे-मोटे व्यवसाय करके आजीविका कमाने वाले असंगठित क्षेत्र के लोगों का है। जिनकी कमाई के साधन ही बंद हो गए और वे एक झटके में ही बेरोजगार हो गये। भविष्य की अनिश्चितता एवं अफवाहों के बाज़ार गर्म होने; जैसे कि स्थानीय सरकार ने वापस भेजने के लिए बसों की व्यवस्था की है, आदि ने आग में घी का काम किया और महापलायन की घटनाओं का जन्म दिया और देश में बेरोजगारों की संख्या को अचानक ही बढ़ा दिया। गौर किया जाये तो इसके पीछे निम्नलिखित कारक समझ में आते हैं:-

- देशव्यापी अप्रत्याशित लॉकडाउन

- रोजगार एवं उद्यमों का ठप हो जाना

- आय के साधनों का बंद हो जाना

- स्थानीय प्रशासन तथा राज्य सरकारों का समय पर सक्रिय न होना

- पड़ोसियों एवं मकान मालिकों द्वारा असहयोग पूर्ण व्यवहार

- नौकरीपेशा श्रमिकों एवं असंगठित क्षेत्र के कामगारों को व्यवसायियों एवं उद्योग मालिकों द्वारा रोकने की कोई समग्र योजना का न होना

- अपने गाँव-घर में सुरक्षा का अहसास

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बड़ी तादाद में गाँव छोड़कर शहर गये श्रमिकों के सपरिवार रिवर्स माइग्रेशन ने स्थिति और जटिल कर दी, क्योंकि दशकों से बाहर रह रहे श्रमिकों की अनुपस्थिति ने पैतृक गाँव-घरों में एक स्थायित्व ला दिया था। परंतु अचानक लाखों की तादाद में इनके वापस आने से न केवल स्थानीय परिवारों पर दबाव महसूस हुआ अपितु राज्य सरकारों के लिये भी नई समस्या उत्पन्न हो गयी, जिसके लिए हर स्तर पर योजना बनाने एवं उसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर प्रयास आरंभ तो किये पर वे पर्याप्त नहीं हैं। इस दिशा में और समग्र एवं समयबद्ध तरीके से काम करने की आवश्यकता है।

यद्यपि पिछले दो महीनों में चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन में ढील देने के कारण आर्थिक गतिविधियाँ आंशिक रूप से आरम्भ हुई हैं परंतु स्थायित्व के अभाव एवं महामारी से उपजी अनिश्चितता के कारण श्रमिक वापस लौटने में हिचक रहे हैं। इस वजह से स्थानीय स्तर पर तो बेरोजगारी है और नगरों में श्रमिकों की कमी होने लगी है। इस स्थिति को वापस पटरी पर आने में समय लगेगा। इस दौरान बेरोजगारी दूर करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों एवं प्रशासन द्वारा मिल कर समग्र प्रयास करने होंगे।

-कर्नल प्रवीण त्रिपाठी (से.नि.)

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