फडणवीस की ''महा जनादेश'' यात्रा सत्ता दिलायेगी या आदित्य ठाकरे को मिलेगा ''जन आशीर्वाद''

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पिछला विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ने वालीं भाजपा-शिवसेना ने हालांकि हालिया लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था और अप्रत्याशित जीत हासिल की थी लेकिन मुख्यमंत्री का पद ऐसा मामला है कि दोनों ही पार्टियां इस पर अपना कब्जा चाहती हैं।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अब जबकि तीन से चार महीने का ही समय बचा है तो सत्तारुढ़ भाजपा और शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गयी है। शिवसेना की युवा इकाई के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने गत सप्ताह जलगांव से ‘जन आशीर्वाद’ यात्रा की शुरुआत कर ‘नया महाराष्ट्र’ बनाने का आह्वान किया तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक अगस्त से अमरावती जिले में गुरुकुंज मोजारी से ‘महा जनादेश’ यात्रा शुरू करने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री की यह यात्रा दो चरणों में होगी जोकि पूरे राज्य को कवर करेगी। भाजपा की योजना के मुताबिक इस दौरान मुख्यमंत्री 104 रैलियों, 228 स्वागत सभाओं और 20 संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित करेंगे।

जहाँ तक मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों की बात है तो देवेंद्र फडणवीस ने यह साफ कर दिया है कि वह सिर्फ भाजपा ही नहीं बल्कि राज्य सरकार में सभी सहयोगी पार्टियों के मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने विश्वास जताया है कि दूसरी बार भी वही मुख्यमंत्री बनेंगे। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ने हालांकि मुख्यमंत्री पद पर खुद की उम्मीदवारी पर साफ-साफ तो कुछ नहीं कहा है लेकिन यह जरूर कहा है कि ''यह जनता को तय करना है कि मुझे पद पर बैठने के लिए तैयार होना है या नहीं। मैं इसके बारे में बात नहीं कर सकता क्योंकि यह एकमात्र ऐसी चीज है जो मेरे हाथ में नहीं है। शिवसेना ने जो वादे किए हैं उन्हें पूरा करना केवल मेरे हाथ में है।'' लेकिन आदित्य ठाकरे शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री पद की तैयारी कर रहे हैं इस बात की तसदीक पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कर दी है। राउत ने कहा है कि महाराष्ट्र को नेतृत्व करने के लिए एक चेहरे की जरूरत है और वो नेतृत्व आदित्य ठाकरे के रूप में मौजूद है। संजय राउत ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री का पद शिवसेना को मिलने का मतलब है कि वो आदित्य ठाकरे को मिल रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के आलाकमान की ओर से एकदम चुप्पी है।

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पिछला विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ने वालीं भाजपा-शिवसेना ने हालांकि हालिया लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था और अप्रत्याशित जीत हासिल की थी लेकिन मुख्यमंत्री का पद ऐसा मामला है कि दोनों ही पार्टियां इस पर अपना कब्जा चाहती हैं। शिवसेना चाहती है कि महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बनने पर मनोहर जोशी की सरकार गठन का फॉर्मूला लागू हो जिसमें मुख्यमंत्री पद शिवसेना के पास और उपमुख्यमंत्री पद भाजपा के पास था। लेकिन भाजपा इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उसने तो वर्तमान सरकार में शिवसेना को उपमुख्यमंत्री पद भी नहीं दिया और आगे की भी रणनीति यही है कि शिवसेना की अपेक्षा ज्यादा विधानसभा सीटें जीत कर मुख्यमंत्री पद अपने पास ही रखा जाये। यही नहीं भाजपा ने तो विधानसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ने की तैयारी भी शुरू कर दी है। भाजपा की दो दिवसीय राज्य कार्यकारिणी की जो बैठक संपन्न हुई है उसमें जरा पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं के बयान को देखिये आपको सब कुछ समझ आ जायेगा। बैठक में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 220 से अधिक सीटें जीतेगी। दूसरी ओर भाजपा की महाराष्ट्र इकाई के नवनियुक्त अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कार्यकर्ताओं से राज्य की सभी 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव तैयारियों में जुट जाने का आह्वान किया। चंद्रकांत पाटिल का यह आह्वान बहुत कुछ संकेत देता है।

देवेंद्र फडणवीस के लिए परेशानी सिर्फ शिवसेना की ओर से पैदा की जा रही हो, ऐसा नहीं है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे रविवार को भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र कार्यकारिणी की बैठक से अनुपस्थित रहे। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने बैठक में शिरकत की। पंकजा मुंडे को वित्त मंत्री सुधीर मुंगटीवार के साथ एक राजनीतिक प्रस्ताव पेश करना था जबकि गडकरी का यहां बैठक को संबोधित करने का कार्यक्रम तय था। पंकज मुंडे भी खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखती रही हैं और अपने पिता गोपीनाथ मुंडे की असामयिक मृत्यु के बाद उन्होंने इस पद के लिए दावा भी किया था लेकिन भाजपा ने ऐसा करने से साफ इंकार करते हुए उन्हें राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया था। नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस एक ही शहर नागपुर से आते हैं और दोनों ही मराठी ब्राह्मण हैं। अकसर दोनों के बीच मतभेद की खबरें भी आती रहती हैं। नागपुर जाकर देखेंगे तो यह सही है कि विकास के कई काम हुए हैं लेकिन उन विकास कार्यों के लिए फडणवीस की अपेक्षा गडकरी को ज्यादा श्रेय दिया जाता है। अब यह दोनों नेता बैठक में जानबूझकर नहीं पहुँचे या फिर इन नेताओं की ओर से नहीं आने के जो कारण बताये गये हैं वो सही हैं, लेकिन यह तो है ही कि इससे यही संदेश गया है कि महाराष्ट्र भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है।

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बहरहाल, विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो सभी पार्टियों ने कमर कसनी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने हाल ही में नया प्रदेश अध्यक्ष बनाते हुए कई कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति कर जो प्रयोग किया है वह सफल होता है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। सीटों के बंटवारे को लेकर सिर फुटव्वल सिर्फ भाजपा-शिवसेना में हो, ऐसा नहीं है, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे कांग्रेस-राकांपा के मतभेद भी सामने आएंगे। पिछला विधानसभा चुनाव इन दोनों पार्टियों ने भी अलग-अलग लड़ा था। फिलहाल तैयारी के हिसाब से देखें तो लोकसभा चुनावों में जोरदार प्रदर्शन करने वाला एनडीए आगे नजर आ रहा है लेकिन राजनीति में कुछ स्थायी नहीं होता, यह भी एक कटु सत्य है। जहाँ तक आदित्य ठाकरे की बात है तो यकीनन वह ठाकरे परिवार के पहले ऐसे शख्स हैं जो चुनाव मैदान में उतर रहा है। उनकी इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि वह रिमोट कंट्रोल से पार्टी या मंत्रियों को चलाने की बजाय राजनीति में सीधे उतर कर काम करना पसंद करते हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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