अयोध्या में भूमि पूजन के उल्लास में कारसेवकों का बलिदान मत भुला देना

Ram Mandir

राम मंदिर के भूमिपूजन का समाचार सुनकर दुनिया के किसी भी कोने में बैठा ऐसा कौन हिन्दू होगा जिसका हृदय आनन्द उल्लास और उमंग से न भर उठा होगा। क्योंकि हिन्दू समाज के लिए गौरव का यह क्षण कई शताब्दियों के बाद आया है।

आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गयी जिसकी हमें वर्षों से प्रतीक्षा थी, सभी लोग बाट जोह रहे थे उस पल की जब भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर भव्य राम मंदिर का निर्माण हो। लेकिन यह पल ऐसे नहीं आया है। इसके लिए लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिया है। हिन्दू समाज ने इसके लिए मुगलकाल से लेकर अब तक कई लड़ाईयां लड़ी हैं। इसके लिए हजारों माताओं की गोद सूनी हुई है। हजारों हजार स्त्रियों के सिंदूर सूख गये और हजारों हजार बहनों के रक्षासूत्र टूटे हैं। किसी ने भाई, किसी ने बेटा और किसी ने अपना पति खोया है। वहीं अनेकानेक रामभक्तों ने तरह-तरह की यातनाएं सही हैं। राम मंदिर के शिलान्यास का यह क्षण हम सब की आंखों के सामने सहज नहीं आया है। हम सब भाग्यशाली हैं कि इस गौरवपूर्ण क्षण के साक्षी बने। पूज्य संत धर्माचायों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 05 अगस्त 2020 को राम मंदिर के साथ-साथ राष्ट्र मंदिर की आधारशिला रखी। महात्मा गांधी ने भी आजादी के बाद रामराज्य का सपना देखा था। लेकिन उनका सपना पूर्ण नहीं हो सका। जो सपना गांधी ने देखा था उस रामराज्य की नींव 05 अगस्त को पड़ी। भारत की एकता और समृद्धि के रामराज्य का यही राजमार्ग है। 

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राम मंदिर के भूमिपूजन का समाचार सुनकर दुनिया के किसी भी कोने में बैठा ऐसा कौन हिन्दू होगा जिसका हृदय आनन्द उल्लास और उमंग से न भर उठा होगा। क्योंकि हिन्दू समाज के लिए गौरव का यह क्षण कई शताब्दियों के बाद आया है। लेकिन साथ ही हमें 30 अक्टूबर और 02 नवम्बर 1990 को अयोध्या में कारसेवा के दौरान निहत्थे रामभक्तों ने जो बलिदान दिया है उनको भूलना नहीं है। कारसेवकों ने उस दिन अपने पुरखों की बलिदानी परम्परा का निर्वाह करते हुए यह सिद्ध कर दिखाया था कि आज भी धर्म पर मर मिटने वालों की कमी नहीं है। वहीं 2002 में अयोध्या से लौट कर जा रहे गोधरा रेलवे स्टेशन पर जिंदा जलाये गये कारसेवकों को भी नहीं भूलना है। इन बलिदानी कारसेवकों का हिन्दू समाज सदैव ऋणी रहेगा लेकिन उनके सपनों को हम साकार होता देखेंगे यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अपने ही लोगों में से कुछ ऐसे ही लोग हैं जिनकी नींद गायब हो गयी है। उनके दिल पर आज क्या बीत रही होगी जिन्होंने मुस्लिमों वोटों के लालच में आकर कारसेवकों पर गोलियां बरसायी थीं। रामविरोधी आज घबरा उठें हैं उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या करें। सीधे उनसे कुछ बोला भी नहीं जा रहा है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और उनके उत्तराधिकारी अविमुक्तेश्वरानंद जी राम मंदिर के भूमिपूजन के मुहूर्त पर सवाल खड़ा कर रहे थे। ये वही शंकराचार्य हैं जो हिन्दू मानबिन्दुओं पर हो रहे हमले के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाते हैं। पूर्व की कांग्रेस सरकार ने जब कोर्ट में राम के अस्तित्व को नकारने वाला हलफनामा दिया था और रामसेतु को तोड़ने का षड़यंत्र कर रही थी तब इन्होंने कुछ नहीं बोला था। लेकिन हिन्दू समाज इनके बहकावे में आने वाला नहीं है। इन जैसे लोगों ने हिन्दू धर्म को कर्मकांड में भटका रखा है। तुलसीदास द्वारा लिखी गयी राम चरित मानस भारत के जन-जन में रच बस गयी है। रामचरित मानस में अयोध्या काण्ड की शुरूआत में ही दोहा संख्या चार में तुलसीदास ने लिखा है।

बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु। 

सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।। 

अर्थात् श्रीरामचन्द्र जी का अभिषेक जब होगा वही दिन और समय शुभ हो जायेगा। यह कहा था ब्रह्र्षि गुरु वशिष्ठ जी ने। जो महाराज दशरथ के कुलगुरु थे। जिनसे बड़ा ब्रह्मज्ञानी आज तक दुनिया में कोई हुआ नहीं। उसकी कही हुई बातों को शंकराचार्य जी नकार रहे हैं। यह कहां तक उचित है। जब महाराज दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से कहा कि महाराज कोई ऐसा शुभ मुहूर्त विचार कर बताइए जिसमें राम का राज्याभिषेक कराया जा सके। उस समय गुरु वशिष्ठ ने कहा था कि जब राम का राज्याभिषेक होगा वही शुभ घड़ी हो जायेगी। वह शुभ घड़ी अब आ गयी है। जिस राम की सत्ता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में है। शुभ अशुभ योग का निर्धारण करने वाले ग्रह नक्षत्र जिनके इशारे पर चलते हैं उन प्रभु श्रीराम के कार्य में बाधा डालने की भला कौन हिमाकत कर सकता है। 

जिनके सद्प्रयत्नों से यह सब संभव हो सका है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति एवं संपूर्ण संत समाज बधाई का पात्र है। जिन्होंने हिन्दू समाज में चेतना जाग्रत कर न्यायोचित मार्ग से हिन्दू समाज पर वर्षों से होते आ रहे अन्याय का परिमार्जन करने में सफलता प्राप्त की। कारसेवा के दौरान बलिदान हुए रामभक्त हुतात्मों की प्रेरणादायी स्मृतियां राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। उनके ही कारण आज राम जन्मस्थान पर शताब्दियों पुरानी भव्य राम मंदिर निर्माण की चिर अभिलाषा पूर्ण हुई है। राम मंदिर आन्दोलन में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर कामरूप तक देशभर के लाखों नर नारी, साधु संत, शिक्षित अशिक्षित, सरकारी अफसर, किसान, मजदूर, वनवासी, गिरिवासी युवा प्रौढ़ और वृद्धों ने भाग लिया। इसके लिए हजारों हजार संत महंतों ने अपने मठों से बाहर निकल कर समाज का जागरण किया। हिन्दू समाज की एकता का ही यह प्रतिफल है। राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में गत 30 दशकों से अनावश्यक रूप से खड़ी की गयी बाधाओं को दूर किया गया। राष्ट्रीय आकांक्षा के इस महत्वपूर्ण कार्य से उन असंख्य वीरों और हुतात्मों के स्वप्न साकार होंगे जिन्होंने इस महान उद्देश्य के लिए त्याग किया था। 1990 के उस कालखण्ड को आप याद करें जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने दंभभरी घोषणा की थी कि 06 दिसम्बर को अयोध्या में कारसेवक तो क्या परिंदा पर भी नहीं मार सकता। 18 दिन की इस अवधि में अयोध्या का शेष भारत से एक प्रकार से संबंध बिल्कुल काट दिया गया था। अयोध्या की ओर जाने वाली रेल गाड़ी, बस आदि सब बंद। अयोध्या की सारी सीमाएं सील कर दी गयी थीं। संघ व विहिप के कार्यकर्ताओं को घर से ही उठाकर जेल में डाल दिया गया था। फिर भी सारी चुनौतियों को पार करते हुए लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचने में सफल ही नहीं रहे बल्कि कारसेवा करने में भी सफल रहे।

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इस्लामी शासन से लेकर ब्रिटिश काल रहा हो या आजादी के बाद भारत की चुनी हुई सरकारें सबने तुष्टीकरण की नीति अपनायी। सबको मुसलमानों की भावनाओं की चिंता थी। सबने हिन्दुओं की सहनशीलता को कमजोरी माना। भारत में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर हिन्दू भावनाओं को सभी सरकारों ने सदा आहत करने का ही काम किया है। आजादी के बाद नरेन्द्र मोदी के रूप में देश को ऐसा पहला हिन्दू हितचिंतक प्रधानमंत्री मिला है जिसे हिन्दू मानबिन्दुओं की और हिन्दू मान्यताओं की परवाह है। आजादी के बाद विदेशी आक्रान्ताओं के चिन्हों को हटाये जाने का सिलसिला प्रारम्भ तो हुआ लेकिन रोक दिया गया। 

राम इस देश के पूर्वज हैं। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखना प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है। लेकिन कट्टरपंथी मुस्लिम नेतृत्व जिस तरह मुस्लिम समाज को उत्तेजित करने का प्रयास कर रहा है वह चिंताजनक है। आम मुसलमानों को चाहिए कि वह तथाकथित नेताओं की योजनाओं से अपने को अलग रखें। कट्टरपंथियों को भी चाहिए कि वह अपनी हरकतों से बाज आएं अन्यथा अब देश उनकी राष्ट्रघातक चालों को सहन करने वाला नहीं है। हिन्दू समाज अब जाग चुका है। अब हिन्दू अपने मानबिन्दुओं के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा। आज रज्जू भैया, पूज्य सुदर्शन जी, दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो रही है। अब भारत का डंका पूरे विश्व में बजेगा इसका घर्घर नाद हमें सुनाई पड़ने लगा है। राम मंदिर आन्दोलन के योजनाकर संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले, राम मंदिर आन्दोलन के नायक श्रद्धेय अशोक सिंहल, पूज्य महंत अवैद्यनाथ, राम मंदिर के श्लाका पुरूष भयंकर प्रतिवादी जिनके आह्वान मात्र से हिन्दू समाज मर मिटने के लिए तैयार हो जाता था ऐसे महंत रामचन्द्र दास जैसी अनेकानेक विभूतियां जो राममंदिर का सपना लेकर इस संसार से विदा हो गयीं। उनकी पावन स्मृतियां ही रामभक्तों को प्रेरणा देती रहेंगी। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट को चाहिए कि वह अयोध्या में बलिदानी कारसेवकों की स्मृति में एक विजय स्तम्भ का निर्माण कराये।

-बृजनन्दन राजू, अयोध्या

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