अटकाती नहीं, विधेयकों को और सशक्त बनाती है राज्यसभा

इसमें कोई दो राय नहीं कि संविधान के निर्माताओं ने दो सदनों वाली विधायिका का फैसला ‘‘उद्देश्यपूर्वक और सोच-समझकर’’ लिया था और इसका मकसद ‘‘पुनर्विचार की जगह’’ मुहैया कराना था।
उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि राज्यसभा का उद्देश्य विधेयकों में देरी करना या रोड़े अटकाना नहीं, बल्कि अहम विधेयकों पर एक बार फिर गौर करना है। अंसारी का यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अहम विधेयकों के पारित होने में देरी के लिए अक्सर राज्यसभा को जिम्मेदार ठहराती रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उच्च सदन की आलोचना करते हुए हाल ही में कहा था, ‘‘प्रत्यक्ष तौर पर निर्वाचित सदन (लोकसभा) की समझदारी पर परोक्ष तौर पर निर्वाचित सदन (राज्यसभा) की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं।’’ यही नहीं इस सप्ताह मंगलवार को जब लोकसभा में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पहली फरवरी को पेश वित्त विधेयक 2017 में 40 संशोधन के प्रस्ताव किये तो इसे एक ‘अभूतपूर्व’ बात बताया गया और संशोधन प्रस्तावों की इतनी अधिक संख्या का विपक्षी आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस और बीजद की अगुवाई में विपक्षी दलों ने पुरजोर विरोध किया। विपक्षी सदस्यों ने इसे गैर कर विधेयकों को ‘पिछले दरवाजे से’ धन विधेयक के रूप में पारित करने की सरकार की चाल बताया। उनका कहना था कि इस तरह सरकार गैर कर विधेयकों पर राज्य सभा की स्वीकृति लेने की जरूरत खत्म करना चाहती है जहां सत्तारूढ़ गठबंधन को बहुमत नहीं है।
राज्यसभा को लेकर इससे पहले भी कई ऐसे बयान आते रहे हैं जोकि संसद के ऊपरी सदन के औचित्य पर ही सवाल खड़े करते रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.टी. थॉमस ने 2015 में कहा था कि यदि राज्यसभा का इस्तेमाल इसी तरह विकास रोकने और कानून बनाने में अवरोध डालने के लिए किया जाता रहा तो इसके औचित्य पर विचार करना चाहिए। उनका कहना था कि भारत ने दो सदनों की व्यवस्था इंग्लैंड से प्रेरित होकर अपनाई थी अगर यह प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पा रही तो इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। यही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी एक बार कह चुके हैं कि राज्यसभा को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि इसके सदस्य बनने के लिए लोग मोटी रकम खर्च करते हैं जिससे संसद का यह ऊपरी सदन एक बाजार की तरह हो गया है। चौहान ने किंगफिशर कंपनी के मालिक विजय माल्या का परोक्ष रूप से उल्लेख करते हुए कहा था कि व्यवसाय से लोग राज्यसभा में आ रहे हैं। दिल्ली भाजपा के विधायक विजेंद्र गुप्ता भी राज्यसभा को ख़त्म किए जाने की कथित तौर पर पैरवी करके परेशानी में फंस चुके हैं क्योंकि सभापति हामिद अंसारी की ओर से उनके खिलाफ जरूरी कार्रवाई की अनुशंसा किए जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष उनसे मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांग चुके हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि संविधान के निर्माताओं ने दो सदनों वाली विधायिका का फैसला ‘‘उद्देश्यपूर्वक और सोच-समझकर’’ लिया था और इसका मकसद ‘‘पुनर्विचार की जगह’’ मुहैया कराना था। अंसारी ने सही कहा है कि ‘‘दूसरी बार गौर करना’’ हमेशा फायदेमंद होता है और राज्यसभा ने विधेयकों में कुछ ‘‘घटाया नहीं’’ बल्कि कुछ लाभदायक चीजें जोड़ी ही हैं। राज्यसभा के विरोध में बयान देने वालों को सभापति की इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है- ''कई कानून अदालत में ले जाए जा रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि मसौदा तैयार करने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा। विधेयक का मसौदा तैयार करने वाले बहुत सक्षम लोग हैं, लेकिन आप इस पर एक ही पहलू से देखते हैं, न्यायाधीश किसी और पहलू से देखते हैं। जहां न्यायिक परख की बात होती है तो वहां एक छोटा सा कोमा या सेमीकोलन भी बड़ा फर्क पैदा कर देता है।’'
बहरहाल, राज्यसभा जिसे प्रबुद्ध लोगों का सदन भी माना जाता है, उसका बने रहना देश के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह परिवार में घर के बुजुर्ग अपने लंबे अनुभव के आधार पर परिजनों का मार्गदर्शन करते हैं और कभी-कभी गलत राह पर जाने से उन्हें रोकते भी हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब राज्यसभा ने लोकसभा से आए विधेयकों को चर्चा के दौरान और जनहितकारी बनाने में योगदान दिया।
- नीरज कुमार दुबे
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