नई दिल्ली सीट से केजरीवाल को मुश्किल में डाल सकते हैं डॉक्टर मुनीश रायजादा

केजरीवाल की अगुआई में बनी आम आदमी पार्टी ने सादगी के साथ राजनीति और शासन का सपना दिखाया था। लेकिन बाद के दिनों में मुनीश ने देखा कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता भी पारंपरिक राजनेताओं की ही तरह आगे बढ़ रहे हैं।
दिल्ली के चुनावी मैदान में एक नाम ऐसा भी है, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। अगर ध्यान है भी तो उसे जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है। सामाजिक जीवन में कई बार प्रतिभाओं और ताकत को जानबूझकर अनदेखा किया जाता है। विशेषकर समाज का ताकतवर तबका उभरती ताकतों को इसलिए अनदेखा करता है कि कहीं उसकी ओर ध्यान देने से वह प्रतिभा अचानक लाइमलाइट में ना आ जाए, वह लोगों का अपनी ओर ध्यान न खींच ले। स्थापित शख्सियत को डर होता है कि कहीं उभरती प्रतिभा की ओर लोग का ध्यान चला गया तो उस हस्ती की ताकत कम हो सकती है। शायद यही वजह है कि दिल्ली के चुनावी मैदान की इस प्रतिभा को नजरंदाज किया जा रहा है। आप भी सोच रहे होंगे कि यह प्रतिभा कौन है, यह ताकत कौन है? इस सवाल का जवाब हैं डॉक्टर मुनीश रायजादा। जो नई दिल्ली सीट पर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं।
मुनीश रायजादा प्रोफेशन से नवजात बच्चों के डॉक्टर हैं। अमेरिका में स्थापित प्रैक्टिस और नौकरी रही है। चौदह साल पहले जब अन्ना हजारे की अगुआई में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चला तो मुनीश को लगा कि अगर यह आंदोलन सफल हुआ तो भारत बदल जाएगा। भारत में रहते वक्त उन्होंने लालफीताशाही और कदम-कदम पर खुद भी भ्रष्टाचार का सामना किया था। इसलिए उन्हें लगता था कि अगर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन सफल हुआ और जनलोकपाल की अवधारणा हकीकत बनी तो भारत बदल जाएगा। इस सपने के साथ वे भी अमेरिका की सुविधा संपन्न जिंदगी और डॉक्टरी छोड़ भारत आ गए और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का सक्रिय सदस्य बन गए। मुनीश की अगुआई में पढ़े-लिखे लोगों को अन्ना आंदोलन की ओर आकर्षित करने और विशेषकर विदेशों स्थित भारतीयों से संपर्क करने का बड़ा श्रेय है। उन्होंने विदेशों से अन्ना आंदोलन के लिए खूब चंदा भी जुटाए। देखते ही देखते वे उस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बड़े सिपाही बन गए। इसके साथ ही उनकी नजदीकियां अरविंद केजरीवाल से बन गई।
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2015 में ऐतिहासिक जीत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई केजरीवाल सरकार ने मुनीश रायजादा को अपना स्वास्थ्य सलाहकार बनाया। मोहल्ला क्लीनिक, जिसकी ढोल केजरीवाल खूब पीटते हैं, एक तरह से मुनीश के दिमाग की उपज है। सरकार में काम करते वक्त दिल्ली को बदलने और उसके जरिए देश को बदलने का सपना देख रहे मुनीश रायजादा को बाद में झटके लगने शुरू हुए। जब उन्होंने अपनी आंखों से केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार की ओर मुड़ते देखा। केजरीवाल की अगुआई में बनी आम आदमी पार्टी ने सादगी के साथ राजनीति और शासन का सपना दिखाया था। लेकिन बाद के दिनों में मुनीश ने देखा कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता भी पारंपरिक राजनेताओं की ही तरह आगे बढ़ रहे हैं। उन्हें किसी भी तरह के भ्रष्टाचार से गुरेज नहीं है। रायजादा को अपना सपना टूटता हुआ दिखा तो उन्होंने केजरीवाल का साथ छोड़कर अपनी अलग राह चुन ली।
अलग राह चुनने बाद उनके पास अमेरिका लौटकर अपनी डॉक्टरी प्रैक्टिस करने का विकल्प था। अमेरिका में रह रही उनकी डॉक्टर पत्नी ने इसके लिए उन्हें प्रेरित भी किया। लेकिन उनके मन को लगी गहरी चोट ने उन्हें लौटने नहीं दिया। सपनों का बिखरना उन्हें परेशान करता रहा। लिहाजा कुछ दोस्तों के साथ उन्होंने भारतीय लिबरल पार्टी बना ली। अब रायजादा का एक ही सपना है, केजरीवाल के भ्रष्टाचार को उजागर करना और चुनावी बिसात पर किसी तरह से मात देना। उनका मानना है कि अगर केजरीवाल को चुनावी बिसात पर मात नहीं दिया गया तो भारत में फिर से कोई भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन नहीं उभर पाएगा। भ्रष्टाचार के संपूर्ण खात्मे के लिए अरविंद का मुखौटा उतरना जरूरी है।
मुनीश के पास संसाधनों की कमी है। उन्हें आर्थिक रूप से कुछ दोस्तों की मदद मिल रही है। चूंकि उनकी ओर लोगों का ध्यान नहीं है, इसलिए कोई उदार कारपोरेट भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया है। लेकिन रायजादा ने खुद नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के सामने ताल ठोक दी है। इसके साथ ही दिल्ली की सभी 12 आरक्षित सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं। वैसे उनकी पार्टी दिल्ली की सभी 70 सीटों पर लड़ रही है। लेकिन उनका ज्यादा फोकस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों के साथ ही नई दिल्ली सीट पर है। रायजादा ने अनुसूचित समुदाय में बहुत काम किया है। अब भी वे वहां सक्रिय रहते हैं। इसलिए उन्होंने खुद को इन्हीं सीटों पर फोकस किया है। झुग्गी बस्तियों और अनुसूचित जाति वाले समुदायों में उनकी बड़ी पकड़ है। दिलचस्प यह है कि वे इसके बावजूद विकास की राजनीति की बात कर रहे हैं। चुनावी रेवड़ियों की राजनीति पर लगाम की भी बात करते हैं। उनका मानना है कि केजरीवाल ने मुफ्त रेवड़ी की राजनीति करके विकास और श्रम को किनारे किया है। इसका असर है कि दिल्ली में श्रम का महत्व कम हुआ है। दूसरी बात यह है कि भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली की रिश्वतखोरी को खत्म नहीं कर पाई। रायजादा कहते हैं कि वह खत्म कैसे करेगी, क्योंकि खुद ही वह रिश्वतखोरी में डूब चुकी है। रायजादा को केजरीवाल की विलासिता भी चुभती है। इसलिए अपनी नुक्कड़ सभाओं और अपने वोटरों के बीच वे इसे खूब मुद्दा बना रहे हैं।
रायजादा की राह की बड़ी बाधा धन है। उनके पास नहीं है, इसलिए उनके चुनाव प्रचार में चमक-दमक नहीं है। बड़े होर्डिंग और अखबारी विज्ञापन नहीं हैं। विदेशों से केजरीवाल के लिए पैसे जुटाने वाले शख्स के पास बड़े दानदाता नहीं है तो इसकी वजह केजरीवाल और उनकी राजनीति ही है। रायजादा कहते हैं कि किस मुंह से वे लोगों से दोबारा दान मांगे। फिर भी लोग, आम जनता और उनके दोस्त उनके चुनावी यज्ञ की समिधा बनकर उनके साथ चल रहे हैं।
रायजादा की राजनीति की जानकारी केजरीवाल खेमे को है। प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी और हर बड़े राजनेता के हर सवाल का तपाक से जवाब देने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी रायजादा के सवालों और आरोपों का जवाब नहीं दे रही। मुनीश मानते हैं कि केजरीवाल को डर है कि अगर उन्होंने रायजादा को तवज्जो देना शुरू किया तो मुनीश के आरोपों पर दुनिया ध्यान ही नहीं देगी, चूंकि एक दौर में मुनीश उनके सहयोगी रहे हैं, इसलिए उन पर गौर भी करने लगेगी। इससे केजरीवाल का शीराजा बिखरने लगेगा।
फिर भी केजरीवाल का शीराजा बिखरेगा। मुनीश इसके लिए प्राणपण से लगे हैं। बेशक मुनीश दिल्ली में सत्ता बनाने तक नहीं पहुंच पाएं, हो सकता है कि उन्हें चुनावी सफलता नहीं मिले। लेकिन इतना तय है कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के वोट बैंक के एक बड़े हिस्से, झुग्गी-बस्ती तक उनकी पहुंच बढ़ी है और उसमें वे सेंध जरूर लगाएंगे। अगर यह सेंध मजबूत रही तो तय है कि आम आदमी के लिए दिल्ली की लड़ाई कठिन होगी। आम आदमी पार्टी की चौथी बार सत्ता की राह में मुनीश रायजादा और उनकी भारतीय लिबरल पार्टी बड़ी बाधा बन जाए तो हैरत नहीं होनी चाहिए।
-उमेश चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं
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