साक्षात्कारः हरसिमरत कौर बादल ने कहा- इस सरकार में एक दो लोग ही सारे फैसले करते हैं

harsimrat kaur badal

विधेयकों से अन्नदाताओं का भला नहीं होगा, सिर्फ नुकसान ही होगा। हमारी पार्टी ने अपना विरोध सरकार के समक्ष रखा था। हमारी बातें नहीं मानी गईं, मैंने इस्तीफ़ा दे दिया। किसानों के लिए कुर्सी क्या, खुद को भी क़ुर्बान कर दूंगी।

कृषि विधेयकों के खिलाफ देशभर के किसान संगठन आंदोलित हैं। सरकार कहती है तीनों विधेयक किसानी के लिए आमूल-चूल परिवर्तन लाएंगे, लेकिन किसान ऐसा नहीं मानते। विधेयकों के खिलाफ पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल ने त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद किसानों का संदेह विधेयकों को लेकर और गहरा गया। कृषि विधेयकों में ऐसा क्या है, क्यों बरप रहा है चारों ओर हंगामा और क्यों दिया हरसिमरत कौर ने इस्तीफ़ा, इसको लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने पूर्व केंद्रीय मंत्री से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

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प्रश्न- आपके इस्तीफ़ा देने के पीछे की वजह कृषि विधेयक या फिर कुछ और है?

उत्तर- मायने कुछ भी निकाले जाएं, लेकिन सच्चाई मात्र यही है किमैंने किसानों के हितों को ध्यान में रखकर ये फैसला किया। देखिए, पंजाब-हरियाणा सदियों से पूर्ण रूप से कृषि आधारित राज्य रहे हैं। हम कितने भी हैसियतदार क्यूँ ना बन जाएं, हमारा वजूद आज भी खेती-किसानी से ही है। इस लिहाज से, अगर किसानों के साथ अन्याय होता है तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। संसद में तीन कृषि विधेयक रखे गए हैं, हम उनका विरोध करते हैं। वह इसलिए कि विधेयकों से अन्नदाताओं का भला नहीं होगा, सिर्फ नुकसान ही होगा। हमारी पार्टी ने अपना विरोध सरकार के समक्ष रखा था। हमारी बातें नहीं मानी गईं, मैंने इस्तीफ़ा दे दिया। किसानों के लिए कुर्सी क्या, खुद को भी क़ुर्बान कर दूंगी।

प्रश्न- कृषि विधेयकों में ऐसा क्या है जिसका आपकी पार्टी ने विरोध किया?

उत्तर- मौजूदा कृषि विधेयक पूर्णता किसान विरोधी हैं इसलिए मैंने केंद्र सरकार से अलग होने का फैसला किया है। देखिए, मैं पंजाब के किसानों की बहन हूं, बेटी हूं। विधेयकों को लेकर किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं, वह भयभीत हैं। किसानों को संदेह है कि नए कानून से उनका भविष्य खत्म हो जाएगा। विधेयक अगर ठीक हैं तो केंद्र सरकार को किसानों की आशंकाओं को दूर करना चाहिए था। क्यों नहीं किया गया? कई ऐसी बातें हैं जो सरकार की नीयत पर संदेह करने को मजबूर करती हैं।

प्रश्न- सरकार में रहते हुए आपने समस्या का निवारण खोजने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर- आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैंने प्रयास नहीं किया होगा। आपको बता दूं, जून में जब विधेयक की चर्चाएं हुईं, तब भी मैंने विरोध किया। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भी अवगत कराया। लेकिन आपको शायद पता ही होगा कि हर मुद्दे-विधेयकों को बनाने वाले सरकार में मात्र एकाध लोग ही हैं। वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होता है उनके आगे किसी की नहीं चलती। मंत्रालय में क्या कुछ हो रहा है, खुद विभाग के मंत्री को भी पता नहीं चल पाता। विधेयकों को लेकर केंद्र सरकार से मैंने कहा भी कि इसे वापस लिया जाए। सरकार को किसानों को भरोसे में लेना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसलिए मैंने इसका विरोध किया और अपना इस्तीफ़ा दे दिया।

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प्रश्न- फसल बिक्री पर नए एमएसपी का मतलब समझ में नहीं आता?

उत्तर- फसल बिक्री को लेकर सरकार को गंभीर होना होगा। सरकार विभिन्न फसलों पर जो एमएसपी निर्धारित करती है उसकी सच्चाई ये है कि उसका सीधा लाभ किसानों को नहीं मिल पाता। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसद भवन में दिए बयान में किसानों को कोई नुकसान नहीं होने की बात की गई है। लेकिन किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वर्तमान मंडी तंत्र और एमएसपी पर फसलों की सरकारी क्रय की व्यवस्था इन सुधारों के कारण कमजोर ना हो। ऐसा न हो, फिलहाल सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं।

प्रश्न- किसान संगठन लंबे समय से फसल मूल्यों पर गारंटी योजना की मांग कर रहे हैं?

उत्तर- एकदम वाजिब मांग है। दिक्कत क्या है इसमें, सरकार को ये नियम तत्काल प्रभाव के साथ लागू करने चाहिए। इसके लिए एक ऐसा कठोरतम नियम बनाना चाहिए जिसमें किसानों से एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और इसके उल्लंघन पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए। दोनों व्यवस्थाओं में टैक्स के प्रावधानों में भी एकरूपता होनी चाहिए।

प्रश्न- तमाम सख्तियों के बावजूद भी किसान मंडियों में ठगे जाते हैं?

उत्तर- बिल्कुल सही कहा आपने। फसलों पर किसानों को निर्धारित मूल्य मिल ही नहीं पता। किसानों की कमाई का मोटी कीमत मंडी समिति के दलाल ही खा जाते हैं। देखिए, मंडियों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखनी चाहिए। मंडियां पूरी तरह से सरकारों के अधीनस्थ हों। साथ ही इनकी संख्या को भी सुधारों के साथ-साथ और बढ़ाया जाना चाहिए। दोनों व्यवस्थाओं का स्वरूप एक जैसा और समानांतर हो। लेकिन मौजूदा समय में किसान मंडियों में खुले आम ठगे जाते हैं।

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प्रश्न- लॉकडाउन में गिरी जीडीपी की लाज कृषि सेक्टर ने ही बचाई, फिर भी सौतेला व्यवहार किया जा रहा है?

उत्तर- हिंदुस्तान कृषि प्रधान देश हैं। कोरोनाकाल जैसे संकटों से निपटने का माद्दा रखता है। मौजूदा हालात जिस तरह से बिगड़े हुए हैं, उसमें कृषि आज भी खूंटा गाड़कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है। सरकार को किसी भी प्रकार के आपसी विवाद को सुलझाने की कानूनी व्यवस्था बनानी चाहिए। किसानों से संबंधित समस्याओं को समयबद्ध निस्तारण करना चाहिए, जिसके लिए जिला, राज्य व केंद्र स्तर पर एक अलग न्यायाधिकरण व्यवस्था की स्थापना करनी चाहिए।

प्रश्न- ऐसी व्यवस्था बनाने की दरकार है जिसमें केंद्र व राज्य सरकारों में किसानों का दखल हो?

उत्तर- किसानों का उचित प्रतिनिधित्व हो, इसका हम भी समर्थन करते हैं। जो विधेयक लाए जा रहे हैं, उनमें बताया जा रहा है कि कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार होंगे। लेकिन मुझे संदेह है। हमें ऐसी योजना पर काम करने की ज्यादा जरूरत है जिसमें देश के अन्नदाताओं को सीधे लाभ पहुंच सके। खेती की उत्पादन क्षमता बढ़े, किसानों का अनाज मंडी वाले उनके घरों से लेकर जाएं। तुरंत भुगतान हो। ऐसी व्यवस्था की हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं।

-बातचीत में जैसा हरसिमरत कौर बादल ने डॉ रमेश ठाकुर से कहा।

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