नितिन गडकरी की खरी खरी बातें पटाखों की लड़ी में आग लगाने जैसी

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गडकरी को उस आंधी का अग्रिम आभास हो गया है, जो 2019 में आने वाली है। गडकरी पर गुस्सा होने की बजाय जरूरी है कि उनकी खरी-खरी बातों से सबक सीखा जाए और इस भाजपा की डगमगाती नाव को डूबने से बचाया जाए।

कई वर्षों पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जब पहली बार संघ मुख्यालय में मुझसे नागपुर में मिले थे, तब मैंने उनसे कहा था कि आप ‘गडकरी’ हैं या ‘गदगद्करी’ हैं ? आपकी बातों को अखबारों में पढ़कर मेरी तबियत गदगद् हो जाती है। पिछले दो दिन से देश के अखबारों में उनके भाषणों की रपट पढ़कर मुझसे ज्यादा कौन खुश होगा ? उनके भाषणों का सार मेरे इन तीन शब्दों में आ जाता है। सर्वज्ञजी, प्रचारमंत्री और भाभापा। याने भाजपा नहीं, भाई-भाई पार्टी ! 

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मेरे लेख यों तो संघ और भाजपा के सभी प्रमुख लोग लगभग रोज़ ही पढ़ते हैं और जब भी कहीं मिलते हैं तो उनका जिक्र भी करते हैं लेकिन अकेले नितिन गडकरी की हिम्मत है कि उन्होंने मंत्री रहते हुए भी वही बात कह दी, जो एक सर्वतंत्र स्वतंत्र सार्वभौम नागरिक कहता है। उन्होंने क्या कहा है ? उन्होंने कहा कि ‘चुनावों में जब जीत होती है तो उसके कई दावेदार बन जाते हैं लेकिन जब हार होती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होता है ? उसके लिए जिम्मेदार होता है- पार्टी अध्यक्ष ! यदि मेरी पार्टी के सांसद और विधायक ठीक से काम नहीं करते और मैं ही पार्टी-अध्यक्ष हूं तो उसके लिए मैं ही जिम्मेदार होउंगा।’ तीन हिंदी राज्यों में भाजपा की हार का पत्थर किसके गले में लटकना चाहिए, यह कहने की जरूरत नहीं है।

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गडकरी ने अपने भाषणवीर और नौटंकीबाज नेता को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कह दिया कि अपने आप को सर्वज्ञ समझना भी भूल है। आत्मविश्वास और अहंकार में जमीन-आसमान का अंतर है। आप सिर्फ भाषणों की जलेबियां उतार कर चुनाव नहीं जीत सकते। कुछ ठोस करके भी दिखाइए। गडकरी ने यह भाषण गुप्तचर विभाग की वार्षिक भाषणमाला के अंतर्गत दिया है। पता नहीं, इस भाषण की प्रतिक्रिया संघ और भाजपा में कैसी होगी ? गडकरी के विरुद्ध कार्रवाई भी हो सकती है या गडकरी इसका खंडन भी जारी कर सकते हैं। वे कह सकते हैं कि हां, मैंने यही कहा है लेकिन आप इसका जो मतलब निकाल रहे हैं, वह मेरा आशय था ही नहीं। मैं तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह का भक्त हूं। गडकरी अब जो भी सफाई दें, उन्होंने पटाखों की लड़ी में बत्ती लगा दी है। गडकरी को उस आंधी का अग्रिम आभास हो गया है, जो 2019 में आने वाली है। गडकरी पर गुस्सा होने की बजाय जरूरी है कि उनकी खरी-खरी बातों से सबक सीखा जाए और इस भाजपा की डगमगाती नाव को डूबने से बचाया जाए ताकि अगले साल-छह महीने में देश का कुछ भला हो जाए।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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