समाजवादी पार्टी में अब चाचा-भतीजे के बीच खिंचाव

अजय कुमार । Apr 25, 2016 12:12PM
पंचायत चुनाव शिवपाल यादव की अगुवाई में ही लड़े गये थे, इन चुनावों में जिस तरह से समाजवादी पार्टी की जीत का परचम फहरा था उसके बाद शिवपाल का कद काफी ऊंचा हो़ गया था।

समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने चुनावी बेला में अपने छोटे भाई और सपा के बड़े नेताओं में शुमार किये जाने वाले नेता और कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी का प्रदेश प्रभारी क्या नियुक्त किया, पार्टी के भीतर तूफान से पहले जैसा सन्नाटा पसर गया। फैसला मुलायम सिंह ने लिया था इसलिये कोई सवाल तो नहीं खड़ा कर सकता था, परंतु ऐसे संकेत जरूर मिलने लगे हैं कि अखिलेश खेमे को नेताजी का यह फैसला हजम नहीं हो रहा है, वहीं शिवपाल खेमा इस फैसले से काफी खुश है। कहा यह भी जा रहा है कि 2017 के विधानसभा चुनावों की आहट को देखते हुए सपा सुप्रीमो अपने बेटे सीएम अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों के बीच सामजंस्य बैठाने की कोशिश में जुटे हैं ताकि पार्टी को किसी भी संभावित नुकसान से बचाया जा सके। शिवपाल यादव को ऐसे ही यह जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। इसकी वजह है शिवपाल की सपा कार्यकर्ताओं के बीच गहरी पैठ। अखिलेश सरकार चलाने में तो शिवपाल संगठन के काम में महारथ रखते हैं।

कुछ माह पूर्व सम्पन्न पंचायत चुनाव शिवपाल यादव की अगुवाई में ही लड़े गये थे, इन चुनावों में जिस तरह से समाजवादी पार्टी की जीत का परचम फहरा था उसके बाद शिवपाल का कद काफी ऊंचा हो़ गया था। अखिलेश यादव सूबे के मुख्यमंत्री होने के साथ−साथ यूपी सपा के अध्यक्ष भी हैं जबकि उनके चाचा और चुनावी समर सहित किसी भी मुश्किल समय में पार्टी के संकटमोचक की भूमिका निभाने वाले शिवपाल सिंह यादव यूपी सरकार में नंबर दो की हैसियत के अलावा पार्टी के भीतर केवल एक मुख्य प्रवक्ता की हैसियत ही रखते थे। जिस वजह से शिवपाल सिंह के समर्थकों के बीच लंबे समय से नाराजगी चल रही थी। शिवपाल यादव ने अपनी अनदेखी के खिलाफ कभी नाराजगी तो नहीं जताई लेकिन नेताजी को इस बात का अहसास भली प्रकार से था कि शिवपाल के साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव के समय भी शिवपाल समर्थकों को लग रहा था कि अगर मुलायम सिंह सीएम नहीं बने तो शिवपाल को सीएम बनने का मौका मिल सकता है, लेकिन पुत्र मोह में फंसे मुलायम भाई का हक भूल गये। अखिलेश को सीएम बनाये जाने का फैसला पार्टी के करीब−करीब उन सभी नेताओं को हजम नहीं हुआ था। यहां तक देखने को मिलता है कि जब कैबिनेट की बैठक होती या फिर विधानसभा का सत्र चलता है तो अखिलेश के यह चचा सीएम अखिलेश यादव के पहुंचने के बाद आते थे ताकि उन्हें भतीजे के आने पर खड़ा नहीं होना पड़ जाये। अखिलेश सरकार को नाकारा साबित करने का भी खेल इन नेताओं द्वारा खूब खेला गया।

चर्चा यह भी सुनने को मिल रही है कि चचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच कई मुद्दों पर मतभेद बना हुआ है। सार्वजनिक मंचों पर इस बात का अहसास कई बार हो भी चुका है। कुछ माह पूर्व मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में शिवपाल यादव ने यहां तक कह दिया था कि सीएम के अधीनस्थ विभागों के मुखिया भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और किसी की भी नहीं सुनते हैं। यह बात सुनकर मीडिया भी सन्न रह गया, परंतु सीएम अखिलेश ने शालीनता पेश करते हुए बस इतना ही कहा आज चचा मूड में हैं। शिवपाल ने जब अखिलेश के अधीन जो विभाग हैं, उसके अधिकारियों पर उंगली उठाई तो उसी समय अखिलेश ने सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव पर भी तमाम आरोप जड़ दिये। यहीं से दोनों के बीच तल्खी उजागर हुई। चचा−भतीजे के बीच बढ़ती दूरी की अटकलों के बीच कहा यह भी जा रहा है कि शिवपाल यादव प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनवाना चाहते थे, लेकिन अखिलेश ने मुख्य सचिव को तीन माह का सेवा विस्तार दे दिया। इतना ही नहीं मुख्य सचिव के बराबर का समझा जाने वाला कृषि उत्पादन आयुक्त का पद जब रिक्त हुआ तो सीएम ने इस पर दिल्ली से बुलाकर अधिकारी को बैठा दिया।

सूत्रों की मानें तो यूपी के पंचायत चुनावों में शिवपाल सिंह के नेतृत्व में पार्टी को मिली जबर्दस्त सफलता के बाद मुलायम सिंह उनसे प्रसन्न थे तो दूसरी तरफ उन्हें इस बात का भी अहसास था कि भाई शिवपाल यादव और अखिलेश के समर्थकों के बीच वैचारिक द्वेष बढ़ता जा रहा है। दोनों ही पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे थे, लेकिन एक−दो मौके ऐसे भी आये जब अखिलेश की जिद के सामने शिवपाल को पीछे हटना पड़ा था। यह बात मुलायम के करीबियों और विश्वासपात्रों ने उनके कानों तक पहुंचाई तो मुलायम इस समस्या का तोड़ निकालने की कोशिश में लग गये। परिणाम स्वरूप यूपी में सपा के लिए प्रभारी का पद सृजित किया गया और शिवपाल सिंह यादव को उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। शिवपाल सिंह को यूपी प्रभारी बनाए जाने के साथ चुनावों की तैयारी कर रही सपा में उनकी हैसियत नंबर एक की हो चुकी है। अखिलेश भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हों लेकिन पार्टी के भीतर उनके फैसलों पर निर्णय लेने का अधिकार शिवपाल सिंह यादव का होगा। वहीं खबर ये भी है कि पिछले कुछ दिनों में मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के संबन्धों में आई मधुरता ने शिवपाल सिंह यादव के हाथ मजबूत करने का काम किया है। जिसका असर आने वाले समय में भी दिखेगा। विधानसभा चुनावों में पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में भी शिवपाल सिंह यादव की अहम भूमिका देखने को मिल सकती है।

बात शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की कार्यशैली की कि जाये तो दोनों के काम करने के तरीके में जमीन−आसमान का अंतर है। शिवपाल यादव हमेशा कार्यकर्ताओं, विधायकों और पार्टी के अन्य तमाम नेताओं से घिरे रहते हैं। उनका काम करने में तत्परता दिखाते हैं जो नेता या विधायक उनके पास आता है, वह उसका काम करके ही देते हैं, इस वजह से उनकी संगठन और नेताओं के बीच अच्छी पकड़ है जबकि अखिलेश पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से कम मिलते हैं। सीएम के पास जो विभाग हैं वहां विधायकों आदि का काम नियमानुसार ही होता है। वैसे सपा में अंतरकलह उजागर होने का यह कोई पहला मामला नहीं है इससे पूर्व भी समाजवादी परिवार के सदस्यों के बीच कई बार मनमुटाव उजागर हो चुका है, लेकिन सपा के लिये अच्छी बात यह है कि उसके पास मुलायम सिंह जैसा नेता है जो हर समस्या का तोड़ निकालना जानता है। वैसे, शिवपाल के प्रभारी बनने के बाद भी इस बात की संभावना काफी कम है कि चचा−भतीजे के बीच रिश्ते सामान्य हो जायेंगे।

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