''जनता का राज्यपाल'' बनकर राम नाईक ने कायम की नई मिसाल

Ram Naik becomes the Governor of the people

अपनी सक्रियता से राम नाईक ने राज्यपाल के संवैधानिक दायित्वों को नया अध्याय लिखा है। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि बेशक निर्वाचित सरकार ही कार्य करती है, इसके बावजूद राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं है।

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने चरैवेति चरैवेति शीर्षक से अपने संस्मरण लिखे हैं। वस्तुतः यह उनका निजी जीवन दर्शन भी है। जिस पर उन्होंने सदैव अमल किया है। यही कारण है कि उन्होंने राजभवन के प्रति प्रचलित मान्यता को बदल दिया। चार वर्ष का उनका कार्यकाल चरैवेति चरैवेति को ही रेखांकित करता है। संविधान से संबंधित पुस्तकों में राज्यपाल का अध्याय रोचक रहता है। इसमें उसकी संवैधानिक स्थिति के साथ अनेक उदाहरण और नजीर का भी विवरण होता है। इसमें प्रायः विवादित मुद्दों को जगह मिलती है। ऐसे कुछ प्रकरणों को छोड़ दें तो राज्यपाल पद संवैधानिक मर्यादा से बंधा रहता है। अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश राज्यपाल इसी श्रेणी के रहे हैं। संबंधित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हो तो बात अलग, अन्यथा राज्यपाल आराम के साथ अपना कार्यकाल व्यतीत कर देते हैं। प्रदेश के आम लोगों से राजभवन की दूरी बनी रहती है। पूर्व नौकरशाह राज्यपाल बनें तो कहना क्या, ये सच्चे अर्थों में लाटसाहब होते हैं। 

     

लेकिन इन सबसे अलग उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने अपने चार वर्षीय कार्यकाल में मिसाल कायम की है। इस दौरान अनेक नजीर बनीं। यह कहा जा सकता है राम नाईक के अनेक कार्यों को संविधान से संबंधित पुस्तकों में जगह मिलेगी। सबसे बड़ी बात यह कि राजभवन के दरवाजे आमजन के लिए भी खुलने लगे। राम नाईक ने अपने को महामहिम कहने पर रोक लगाई। इसी मानसिकता के अनुरूप बदलाव होने लगे। राम नाईक की दूसरी विशेषता उनकी सक्रियता है। चरैवेति चरैवेति उनकी जीवनशैली और कार्यशैली में शामिल है। राज्यपाल पद का दायित्व निर्वाह भी इसी मानसिकता के अनुरूप था। इसका भी प्रभाव दिखाई दिया। 

राम नाईक के सुझाव से ही उत्तर प्रदेश ने पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया। वैसे यह सुझाव उन्होंने पिछली सपा सरकार के दौरान दिया था। लेकिन उसने इस सलाह को महत्व नहीं दिया। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। इसे प्रदेश के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास से जोड़ दिया। इसके पहले नाईक राजभवन में महाराष्ट्र दिवस आयोजित कर चुके थे। लगातार दूसरी बार भव्यता के साथ यह समारोह आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। यह संयोग था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक राज्य से किसी एक राज्य से विशेष सांस्कृतिक संबन्ध बनाने का आग्रह किया था। योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए महाराष्ट्र को चुना था। लखनऊ राजभवन में आयोजित महाराष्ट्र दिवस से इस अभियान को गति मिली। लोकमान्य तिलक ने लखनऊ में ही 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार' का ऐतिहासिक नारा दिया था। इस नारे को सभी लोग जानते हैं, लेकिन राम नाईक का ध्यान इसके शताब्दी वर्ष पर गया। इसे भव्यता के साथ मनाने का सुझाव भी राम नाईक ने दिया था। योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। खासतौर पर युवावर्ग को ऐसे आयजनों से प्रेरणा मिलती है।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का मुख्य समारोह राजभवन में हुआ। इसके लिए राम नाईक ने योगी आदित्यनाथ से आग्रह किया था। लखनऊ में एक पूर्व मुख्यमंत्री के आवास में तोड़ फोड़ का संज्ञान लेकर राम नाईक ने सरकार को जांच कराने हेतु लिखा था। वह चाहते थे कि सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने का सन्देश भी जाये। इसके पहले भी राम नाईक अनेक मुद्दों पर नजीर बना चुके हैं। राज्यपाल ने विधान परिषद के लिए मनोनीत होने वालों सदस्यों के संदर्भ में संविधान में उल्लखित योग्यता को महत्व दिया था। इसी प्रकार लोकायुक्त की नियुक्ति में राम नाईक ने प्रक्रिया का पालन किया था। इसमें यह तय हुआ कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के विचार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

उच्च शिक्षा में सुधार के राम नाईक ने अनेक प्रयास किये। सभी विश्वविद्यालयों में सत्र नियमित किये गए। परीक्षा की गुणवत्ता कायम की गई। प्रत्येक विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह आयोजित होने लगे। पन्द्रह लाख साठ हजार विद्यर्थियो को उपाधि दी गई। इसमें बालिकाओं की संख्या ज्यादा थी। नए खुले विश्वविद्यालय ही इसके अपवाद हैं। कुलपतियों के वार्षिक सम्मेलनों की शुरुआत भी राम नाईक ने की। इसके  भी सकारात्क परिणाम हो रहे हैं।

राज्यपाल राम नाईक 1443 दिन के कार्यकाल में 1400 सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल हुए। उन्होंने 22 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पद की शपथ ग्रहण की थी। कार्यकाल के पिछले एक वर्ष में वह करीब साढ़े छह हजार लोगों से मुलाकात कर चुके हैं। उनका यह क्रम लगातार जारी रहता है। इसमें उल्लेखनीय यह है कि वह लोगों के साथ आनन्दपूर्वक मुलाकात करते हैं। यह उनके सहज स्वभाव में शामिल है। उनकी यह आदत मुम्बई में सक्रिय राजनीति के दौरान ही पड़ गई थी। तब लोग जानते थे कि राम नाईक यदि मुम्बई में हैं तो सुबह उनसे मुलाकात हो जाएगी। वह न केवल लोगों की समस्याएं सुनते थे, बल्कि अपनी पूरी क्षमता से उसके समाधान का प्रयास भी करते थे। राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने राजभवन में भी अपने इस स्वभाव में बदलाव नहीं किया। चरैवेति चरैवेति में लिखा भी है कि आमजन के बीच रहना उन्हें अच्छा लगता है। लोकल ट्रेन आज भी उनकी मनपसंद सवारी है, क्योंकि उसमें एक साथ बड़ी संख्या में लोगों से मुलाकात हो जाती है। राज्यपाल बनने के बाद से इस जुलाई के प्रारंभ तक उन्होंने राजभवन में करीब पच्चीस हजार लोगों से मुलाकात की। एक वर्ष पूरा होने के बाद से ही वह प्रत्येक वर्ष 22 जुलाई को राजभवन में राम नाईक शीर्षक से अपना कार्यवृत्त जारी करते आ रहे हैं। इसकी शुरुआत भी उन्होंने मुम्बई से की थी। वह तीन बार विधायक और पांच बार लोकसभा सदस्य रहे। इस रूप में वह प्रतिवर्ष अपना कार्यवृत्त जारी करते थे। कुछ अवधि ऐसी भी थी जब वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। फिर भी समाजसेवा में उनकी सक्रियता कम नहीं हुई थी। इस रूप में भी वह आमजन के बीच अपना कार्यवृत्त रखते थे।

राज्यपाल ने विगत एक वर्ष में करीब 240 लखनऊ के कार्यक्रमों और लखनऊ से बाहर आयोजित करीब 135 कार्यक्रमों में शिरकत की। चुनाव की आचार संहिता मिलाकर 107 दिन दिन राज्यपाल किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हुए। राज्यपाल ने अब तक अपने 1450 दिन के कार्यकाल में लखनऊ में करीब 880 कार्यक्रमों तथा लखनऊ के बाहर करीब 526 कार्यक्रमों यानी कुल 1413 सार्वजनिक कार्यक्रमों में सहभाग किया है।

राज्यपाल को एक वर्ष में उत्तर प्रदेश के बाहर आयोजित कार्यक्रमों में जाने के लिये कुल 73 दिन स्वीकृत हैं। इसके सापेक्ष राम नाईक विगत वर्ष मात्र 24 दिन ही उत्तर प्रदेश के बाहर आयोजित कार्यक्रमों में शामिल हुए। यह 73 दिन का केवल 33 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि राम नाईक ने राज्यपाल बनने के साथ ही उत्तर प्रदेश को अपना मान लिया।

इसी प्रकार राज्यपाल को बीस दिन का वार्षिक अवकाश उपभोग करने की अनुमति है। लेकिन श्री नाईक ने मात्र दो बार ही अपने वार्षिक अवकाश का उपभोग किया है। वह 3 से 12 अक्टूबर 2015 तक कुल दस दिन उत्तराखण्ड के नैनीताल और 14 से 22 मई, 2016 तक कुल 9 दिन हिमाचल प्रदेश के शिमला के भ्रमण पर रहे। वर्ष 2017 और 2018 में उन्होंने किसी प्रकार का व्यक्तिगत अवकाश नहीं लिया। चरैवेति चरैवेति में इससे संबंधित रोचक प्रसंग है। सार्वजनिक जीवन की सक्रियता में वह अवकाश नहीं लेते थे। जब उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास लिया, तब पत्नी कुंदा नाईक से कहा कि वह अब परिवार को समय दे सकेंगे। श्रीमती कुंदा नाईक से बेहतर उन्हें कौन समझता होगा। वह बोलीं कि आपके पैर में सनीचर है। लगता नहीं कि आप परिवार को समय दे सकेंगे। चुनावी राजनीति से हटने के बाद भी वह समाजसेवा से दूर नहीं हुए। कुछ समय बाद वह राज्यपाल बन गए। यहां भी उन्होंने निर्धारित अवकाश नहीं लिया।

22 जुलाई, 2017 से 3 जुलाई, 2018 तक राजभवन से 484 प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई हैं। राज्यपाल के अब तक के कार्यकाल में 1800 से अधिक प्रेस विज्ञप्तियाँ राजभवन से जारी की जा चुकी हैं। जाहिर है कि अपनी सक्रियता से राम नाईक ने राज्यपाल के संवैधानिक दायित्वों को नया अध्याय लिखा है। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि बेशक निर्वाचित सरकार ही कार्य करती है, इसके बावजूद राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं है। उसके लिए भी बहुत कुछ करने के लिए होता है। इसके लिए राजभवन के वैभव के प्रति अनासक्त भाव रखने की भावना होनी चाहिए। तभी आमजन दिखाई देंगे। राम नाईक ने यही किया। वह लिखते भी हैं कि राजभवन की भव्यता बस उन्हें कार्य करने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार राम नाईक ने केवल कार्य ही नहीं विचारों और मानसिकता को भी महत्व दिया। इसलिए वह मिसाल और नजीर बना सके। भविष्य में राज्यपाल बनने वालों की इससे प्रेरणा मिलेगी।

-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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