आरएलडी ने पलटी मारने के संकेत देकर उत्तर प्रदेश में इंडी गठबंधन की रीढ़ तोड़ दी है

आरएलडी के एक बड़े नेता ने जानकारी दी कि आरएलडी और बीजेपी का गठबंधन लगभग तय हो गया है। चार से पांच सीटें हर हाल में बीजेपी आरएलडी को दे रही है। हालांकि हमारी सात सीटों की मांग है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी की मीटिंग भाजपा नेताओं के साथ जारी है।
उत्तर प्रदेश में सियासत का पलड़ा भारतीय जनता पार्टी की तरफ झुकता नजर आ रहा है। यूपी का हाल यह है कि यहां बीजेपी को छोड़कर कोई भी दल लोकसभा चुनाव को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा है। विपक्षी दलों के नेता बीजेपी की बिछाई बिसात में फंसते जा रहे हैं। हालत यह है कि चुनाव सिर पर हैं, लेकिन कांग्रेस और बसपा चुनावी मैदान से नदारद हैं। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जमीनी हकीकत से दूर तंज कसने की राजनीति तक सिमट कर रह गये हैं। इंडी गठबंधन में दरार ही दरार नजर आ रही है। इसीलिए तो राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के नेता जयंत चौधरी भी इंडी से किनारा करते नजर आ रहे हैं। रालोद के विश्वास का हाल यह है कि उन्हें समझौते के तहत सपा से मिली सात सीटों की जगह बीजेपी से मिलने वाली चार सीटें ज्यादा लुभा रही हैं। हालाकि जयंत चौधरी और बीजेपी की तरफ से इसको लेकर कोई बयान नहीं आया है, परंतु दोनों दलों ने इन खबरों का खंडन भी नहीं किया है। हां, समाजवादी पार्टी जरूर सफाई दे रही है कि उसके और रालोद का गठबंधन अटूट है। भारतीय जनता पार्टी ने 4 लोकसभा सीटें राष्ट्रीय लोकदल को ऑफर की हैं। इनमें कैराना, मथुरा, बागपत और अमरोहा के नाम शामिल हैं। राष्ट्रीय लोक दल इंडी गठबंधन के उन 28 दलों में शामिल था जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए तैयार था, लेकिन चुनाव की घोषणा भी नहीं हो पाई कि उससे पहले ही आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी ने पलटी मार दी। उत्तर प्रदेश में साल 2022 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ने वाला राष्ट्रीय लोक दल उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी से भी नाता तोड़ सकता है।
आरएलडी के एक बड़े नेता ने जानकारी दी कि आरएलडी और बीजेपी का गठबंधन लगभग तय हो गया है। चार से पांच सीटें हर हाल में बीजेपी आरएलडी को दे रही है। हालांकि हमारी सात सीटों की मांग है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी की मीटिंग भाजपा नेताओं के साथ जारी है। इस संबंध में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि जयंत चौधरी बहुत पढ़े-लिखे नेता हैं। वह प्रदेश की खुशहाली और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी के साथ नहीं जायेंगे। वहीं समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने इन खबरों को पूरी तरह से अफवाह बताया और कहा कि सपा-रालोद का संबंध अटूट है। कुल मिलाकर एक ओर प्रदेश में बीजेपी यानी एनडीए गठबंधन लगातार मजबूत हो रहा है, वहीं इंडी गठबंधन करीब-करीब पूरी तरह से बिखर गया है। कहने को तो फिलहाल सपा और कांग्रेस साथ खड़े नजर आ रहे हैं, लेकिन यह साथ तभी तक बरकरार नजर आ रहा है, जब तक कांग्रेस सीटों के लिए मुंह नहीं खोल रही है। सपा ने कांग्रेस को 11 सीटों का आफर दिया है। यदि रालोद इंडी से अलग हो जाता है तो पश्चिमी यूपी में कांग्रेस को एक-दो सीटें और मिल सकती हैं। मगर इतनी सीटों पर भी जीत हासिल करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस ने यूपी में अभी तक चुनाव की तैयारी ही नहीं शुरू की है।
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यूपी में इंडी गठबंधन क्यों बिखर रहा है, इसकी तह में जाया जाये तो सबसे बड़ा कसूरवार चेहरा राहुल गांधी ही नजर आते हैं। वैसे सपा प्रमुख अखिलेश यादव की भूमिका भी सार्थक नजर नहीं आ रही है। अखिलेश जिस तरह से बसपा को इंडी गठबंधन से दूर रखने के लिए अड़ गये, वह भी किसी तरह से सही नहीं था। सबसे पहले बात राहुल गांधी की। यूपी में कभी कांग्रेस की तूती बोला करती थी, यूपी के सहारे ही कांग्रेस केन्द्र की सत्ता पर काबिज होती थी। यूपी गांधी परिवार का चुनावी गढ़ हुआ करता था। अमेठी, रायबरेली, सुल्तानपुर जैसे जिलों में तो कांग्रेस को कोई टक्कर भी नहीं दे पाता था, लेकिन अब सब बदल चुका है। कांग्रेस के रणनीतिकार और गांधी परिवार के सदस्य राहुल गांधी यूपी छोड़कर जा चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से मिली करारी हार के बाद से राहुल ने मुड़कर यूपी की तरफ नहीं देखा।
प्रियंका गांधी ने साल 2018 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में क़दम रखा था। इससे पहले उन्होंने सिर्फ़ अमेठी और रायबरेली तक ही ख़ुद को सीमित रखा हुआ था। जनवरी 2019 में उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया। लेकिन पश्चिमी यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद प्रियंका गांधी को सितंबर 2020 में पूरे राज्य का प्रभारी बना दिया गया था। पूरी तौर पर ज़िम्मेदारी संभालने के बाद प्रियंका गांधी पार्टी का आक्रामक चेहरा बनकर उभरीं। वह लखीमुर खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गाड़ी से टकराकर जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों से मिलीं। उन्होंने राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार पर भी निशाने साधे। उस समय कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे अजय कुमार लल्लू को प्रियंका गांधी की पसंद के तौर पर देखा जाने लगा। लेकिन प्रियंका गांधी का साल 2022 में लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ, अभियान विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को पार्टी की ओर खींचने में असफल रहा। कांग्रेस 403 सीटों वाली विधानसभा में केवल दो सीटों तक सिमट कर रह गई, जो पार्टी का राज्य में अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन था। अब प्रियंका यूपी छोड़ चुकी हैं। प्रियंका गांधी की जगह अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। पूर्व राज्यसभा सांसद अविनाश पांडे अभी तक झारखंड के प्रभारी थे। कांग्रेस की दुर्दशा पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यूपी में पार्टी ने अपना जनाधार खो दिया है क्योंकि हम पिछले कुछ सालों में अपने बड़े-बड़े चेहरों को खोते गए। जो यहां रुके उन्होंने भी रोज़मर्रा के मसलों से दूरी बनाए रखी, लेकिन यह सब बदलाव तभी सफल हो पायेंगे जब कांग्रेस यूपी में संगठन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ जनता से जुड़ी समस्याओं के लिये मुखरता से आवाज उठाये। मगर ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है।
समाजवादी पार्टी को भी माफ नहीं किया जा सकता है। जो पार्टी जनांदोलन से खड़ी हुई थी, अब वह सड़क पर लड़ते हुए नहीं दिखाई देती है। अखिलेश यादव अपने बयानों से सुर्खियां तो बटोरते रहते हैं, परंतु मतदाताओं से उनकी दूरी सपा के आगे बढ़ने के मार्ग में एक बड़ा अवरोध है। सपा की मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत भी सपा पर भारी पड़ती नजर आ रही है। खासकर जिस तरह से अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से जिस तरह सपा ने दूरी बनाये रखी, वह सपा के पिछड़े और दलित वोटरों को भी रास नहीं आ रहा है क्योंकि राम सभी हिन्दुओं की आस्था से जुड़े हैं। पहले सपा ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाई। फिर यूपी विधान सभा में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए बधाई संदेश पास किया गया तो यहां भी सपा विरोध में खड़ी नजर आई। अब जबकी योगी सरकार ने 11 फरवरी को सभी दलों के विधायकों को रामलला के दर्शन का कार्यक्रम बनाया तो उससे भी सपा ने किनारा कर लिया। ऐसा लग रहा है कि सपा को बीजेपी के साथ-साथ रामलला से भी परहेज है। आज तक अखिलेश अयोध्या में रामलला के दर्शन करने नहीं गये हैं। सपा के विरोध का स्तर यह है कि उसकी पार्टी के विधायक रामलला के साथ अयोध्या के धनीपुर में जहां मस्जिद बननी है, वहां का भी भ्रमण कराये जाने की बेतुकी मांग करने लगे हैं, जबकि अभी वहां काम तक शुरू नहीं हुआ है। मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत के लिये सपा प्रमुख ने स्वामी प्रसाद मौर्या की तरफ मुंह मोड़ लिया है, जो लगातार हिन्दू देवी-देवताओं के लिए अपमानजनक भाषा बोल रहे हैं।
लब्बोलुआब यह है कि यूपी में बसपा विहीन इंडी गठबंधन इस समय वेंटिलेटर पर नजर आ रहा है। जो हालात नजर आ रहे हैं, उससे तय है कि बीजेपी के लिए यूपी में कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही है। रालोद ने यदि इंडी गठबंधन से दूरी बना ली तो पश्चिमी यूपी में सपा के लिये बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। वैसे भी वेस्ट यूपी में सपा लगभग नेतृत्व विहीन हो गई है। रालोद नेता चौधरी जयंत सिंह यदि इंडी गठबंधन से किनारा कर लेते हैं तो सपा-कांग्रेस ही दो दल गठबंधन में बचे रह जायेंगे। ऐसे में गठबंधन के लिए 2017 के विधान सभा चुनाव से भी बुरे हालात हो सकते हैं क्योंकि तब सपा-कांग्रेस के साथ खड़ा रालोद अब अलग जाता नजर आ रहा है।
-अजय कुमार
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