कानून के साथ ही समाज के भी अपराधी हैं चिन्मयानंद, धर्म-संस्कृति को भी कलंकित किया

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बी.पी. गौतम । Sep 13 2019 12:33PM

चिन्मयानंद की कारगुजारियों से हर वर्ग पहले से परिचित था। सरस्वती संप्रदाय में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है, इसके बावजूद यह व्यक्ति स्त्रियों के संपर्क में सदैव रहा है, यह बात संत समाज से भी छुपी नहीं है पर, राजनैतिक दृष्टि से मजबूत चिन्मयानंद के विरुद्ध संत समाज भी कभी खड़ा नहीं हुआ।

शाहजहाँपुर के कुख्यात कथित संत, भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री चिन्मयानंद कानून से ज्यादा धर्म और समाज के अपराधी हैं। उन्होंने करोड़ों लोगों की आस्था और श्रद्धा से खिलवाड़ किया है, इसलिए उनके प्रति किसी भी दृष्टि से उदारता नहीं बरती जानी चाहिए। चिन्मयानंद किसी भी दृष्टि से उदारता के पात्र नहीं हैं। धर्म, शिक्षा और उम्र की आड़ में जघन्य अपराध करने वाले चिन्मयानंद को शर्मसार करने के लिए संपूर्ण समाज को आगे आना चाहिए।

चिन्मयानंद की कहानी

शाहजहाँपुर में एक संत स्वामी शुकदेवानंद ने मुमुक्षु आश्रम में शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना की थी, उनके देह त्यागने के बाद चिन्मयानंद संस्थाओं के अध्यक्ष बन बैठे। चिन्मयानंद द्वारा ही कथित तौर पर संचालित की जा रही संस्था के लॉ कॉलेज में एक छात्रा थी और वह यहाँ जॉब भी करती थी, इस छात्रा ने एक वीडियो क्लिप के द्वारा चिन्मयानंद पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। वीडियो में छात्रा ने अपने और अपने परिवार पर खतरा होने की बात कही थी, जिसके आधार पर छात्रा के पिता ने 27 अगस्त को शाहजहांपुर स्थित चौक कोतवाली में चिन्मयानंद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने उच्च स्तरीय दबाव के बाद बमुश्किल मनमानी धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया था, जबकि आरोप लगाने से पहले से छात्रा लापता भी हो गई थी।

उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था, जिसके बाद न्यायाधीश आर. भानुमति और ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी। छात्रा राजस्थान में पाई गई, जिसे न्यायालय ने अपने पास बुलवा लिया और दिल्ली पुलिस की अभिरक्षा में दे दिया। छात्रा के आग्रह पर न्यायालय ने छात्रा के माता-पिता को भी दिल्ली बुलवा लिया था। सुनवाई के बाद न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि वह प्रकरण की जांच करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करे। एसआईटी का नेतृत्व आईजी स्तर का अधिकारी करे, जिसकी निगरानी उच्चतम न्यायालय करेगा, साथ ही छात्रा और उसके भाई का नामांकन अन्य संस्थान में करायें।

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न्यायालय के आदेश पर एसआईटी शाहजहाँपुर में डेरा डाले हुए है और जाँच में जुटी हुई है, इस सब पर शर्मसार होने की जगह चिन्मयानंद का बयान आया था कि वह विश्वविद्यालय बनाना चाहता है, जिसकी प्रक्रिया चल रही है, उसे प्रभावित करने के लिए झूठे आरोप लगाये गये हैं, इस बीच एक दर्जन से अधिक वीडियो वायरल हो गये, जिनमें पीड़ित छात्रा कुख्यात कथित संत चिन्मयानंद की तेल से मालिश करती नजर आ रही है, चिन्मयानंद बिल्कुल नंगे हैं, साथ ही छात्रा से अश्लील बातें भी करते दिख रहे हैं। वीडियो सामने आने के बाद चिन्मयानंद के पास कहने को कुछ नहीं बचा है। हालाँकि चिन्मयानंद के बारे में सभी को पहले से ही सब कुछ पता है पर, वह साक्ष्य न होने के कारण बेशर्मी से आरोपों को नकार देते थे और राजनैतिक शक्ति के बल पर कार्रवाई से बच जाते थे।

छात्रा द्वारा लगाये आरोप सही पाये जायेंगे या, गलत?, यह एसआईटी की जाँच में साबित होगा और उस जांच आख्या को न्यायालय परखेगा पर, अब सवाल कानून का नहीं है। सवाल है आस्था, श्रद्धा का। सवाल है, उन भगवा वस्त्रों का, जिन्हें देखते ही लोगों की आस्था और श्रद्धा उमड़ आती है। सवाल है, उस उम्र का, जिसके सामने सर्व समाज नतमस्तक हो जाता है। सवाल है, उस शिक्षा के मंदिर का, जिसे देवताओं के मंदिर से कम सम्मान नहीं दिया जाता।

एसआईटी जाँच में क्या होगा, न्यायालय क्या सजा देगा, यह बात अब पीछे छूट गई है। अब बात भारतीय संस्कृति और परंपरा को छिन्न-भिन्न करने की है। भगवाधारी को भारतीय परंपरा के अनुसार विशिष्ट सम्मान दिया जाता रहा है। चिन्मयानंद ने भगवा को कलंकित किया है। धर्म के प्रति लोगों में गहरी आस्था और श्रद्धा है। चिन्मयानंद ने आस्था और श्रद्धा को तार-तार किया है। 75-80 वर्ष के बुजुर्ग को हर कोई अतिरिक्त सम्मान देता है, उन्होंने समाज के वरिष्ठता क्रम को कलंकित किया है। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियाँ संस्था के संरक्षक के लिए बेटी समान ही होती हैं, इसने बेटियों को ही शिकार बना कर शिक्षा के मंदिर को भी कलंकित किया है। 

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चिन्मयानंद की कारगुजारियों से हर वर्ग पहले से परिचित था। सरस्वती संप्रदाय में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है, इसके बावजूद यह व्यक्ति स्त्रियों के संपर्क में सदैव रहा है, यह बात संत समाज से भी छुपी नहीं है पर, राजनैतिक दृष्टि से मजबूत चिन्मयानंद के विरुद्ध संत समाज भी कभी खड़ा नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक को सब कुछ ज्ञात है पर, भाजपा की ओर से भी इसके विरुद्ध कभी कोई बयान नहीं आया। राजनैतिक दलों के हित हो सकते हैं, वे राजनैतिक लाभ और हानि के आधार पर निर्णय लेते हैं लेकिन, समाज का प्रथम दायित्व होता है कि वह नरभक्षी जानवरों से समाज को बचाये। समाज ही त्वरित निर्णय लेता है, ऐसे ही समाज को चिन्मयानंद के प्रकरण में त्वरित निर्णय लेना चाहिए। अब समाज का ही प्रथम दायित्व है कि वह इसके विरुद्ध एकजुट हो और इसके कुकृत्यों की घोर निंदा करे। कानूनी रूप से मिलने वाली अपराध की सजा से बड़ा दंड चिन्मयानंद की निंदा करना ही है। सर्व समाज चिन्मयानंद के विरुद्ध एकजुटता से खड़ा हो और इसके कुकृत्यों की घनघोर निंदा करते हुए इसका पूर्ण रूप से बहिष्कार करे, इसकी यही सही सजा होगी।

- बी.पी. गौतम

(लेख में व्यक्त विचार और तथ्य पूर्ण रूप से लेखक के अपने हैं। प्रभासाक्षी हर लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर है इसलिए उक्त लेखक के लेख को प्रकाशित किया जा रहा है। यहाँ हमारी मंशा किसी की छवि को धूमिल करने की नहीं है। किसी भी व्यक्ति के बारे में न्यायालय जो निर्णय करता है हम उसका सदैव आदर और पालन करते हैं।)

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