नक्सलियों के खिलाफ चल रही निर्णायक मुहिम के मिलने लगे हैं बेहतर नतीजे

Amit Shah
ANI
कमलेश पांडे । Jan 23 2025 11:44AM

बता दें कि भारत सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है कि देश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त किया जाए। ये ऑपरेशन उस दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है जो सुरक्षा बलों और सरकार के प्रयासों से नक्सलवाद के खात्मे की ओर बढ़ रहा है।

आमतौर पर नक्सली, आतंकवादी और अंडरवर्ल्ड के मास्टरमाइंड अपने पूरे जमात के साथ भारतीय गणतंत्र के लिए चुनौती समझे जाते हैं। इसलिए सुरक्षाबलों ने 76वें गणतंत्र दिवस से महज कुछ दिन पहले नक्सलियों के खिलाफ जो निर्णायक कार्रवाई करते हुए अंतरराज्यीय ऑपरेशन चलाए हैं और एक दर्जन से ज्यादा नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया है, वह तिरंगे और संवैधानिक गणतांत्रिक व्यवस्था को सच्ची सलामी है। इसलिए देशवासियों की अपेक्षा है कि सुरक्षा बलों की यह कार्रवाई और अधिक तेज होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करके ही हम उनके नापाक हौसले को तोड़ सकते हैं। 

देखा जाए तो चाहे अंतर्राष्ट्रीय थल या समुद्री सीमा से सटे प्रदेश हों या हमारे आंतरिक प्रदेश, यहां पर नक्सलियों, आतंकवादियों और अंडरवर्ल्ड सरगनाओं की मौजूदगी और उनके मार्फ़त जब-तब होते रहने वाली हिंसात्मक घटनाएं एक ओर जहां शासन व्यवस्था और अमनपसंद लोगों को मुंह चिढ़ाती हैं, वहीं दूसरी ओर धनी लोगों के भयादोहन का कारण भी  बनती हैं। चूंकि अवैध मानव व वस्तु तस्करी, ड्रग्स सिंडिकेट, अवैध हथियारों के कारोबार, फिरौती, विवादास्पद सम्पत्तियों की खरीद-फरोख्त आदि से इनके तार जुड़े होते हैं, इसलिए सफेदपोश नेताओं-समाजसेवियों-कथित अधिकारियों-उद्योगपतियों आदि के माध्यम से इनके सरगना भी परस्पर मिले हुए होते हैं। 

आम धारणा रही है कि इनके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई इसलिए भी नहीं हो पाती है, क्योंकि क्षेत्रीय दलों और स्थानीय नेताओं से इनकी गुप्त सांठगांठ रहती है! और यही इनके तार कथित राष्ट्रीय नेताओं और अर्बन नक्सलियों-अपराधियों-आतंकवादियों के सिंडिकेट तक से जोड़ते हैं। यही वजह है कि प्रशासन भी सियासी कारणों के चलते इनके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं कर पाता है। वहीं, जम्मू-कश्मीर, पंजाब से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों की आतंकी घटनाएं हों, या झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र व बिहार की नक्सली घटनाएं, या फिर बड़े महानगरों से लेकर जिलास्तरीय शहरों की अंडरवर्ल्ड वारदातें, इनके तार परस्पर जुड़े बताए जाते हैं। 

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कहना न होगा कि इनमें से कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूती के पीछे भी इनकी राष्ट्रविरोधी सोच होती हैं, जिन्हें बरास्ता नेपाल, पाकिस्तान व चीन का भी संरक्षण हासिल होता है। वहीं, कांग्रेस समेत कई बड़े क्षेत्रीय दल भी इनके नेक्सस के समक्ष घुटने टेक चुके हैं। जबकि इन सभी बातों से उलट केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रवादी भाजपा नीत एनडीए की सरकार और उड़ीसा-छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की भाजपा प्रदेश सरकारों की संगठित अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति से प्रोत्साहित होकर सुरक्षा बलों ने स्थानीय पुलिस के साथ संयुक्त रणनीति बनाकर नक्सलियों-दुर्दांत अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का जो बीड़ा उठाया है, उसकी एक झलक ताजा कार्रवाई से मिलती है। 

गौरतलब है कि भारत में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान को एक और बड़ी सफलता तब मिली, जब गत दिनों ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर क्षेत्र में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), छत्तीसगढ़ के एसओजी (स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप) और ओडिशा पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन के दौरान 14 नक्सलियों को मार गिराया गया। इस कार्रवाई में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की ओर से की गई त्वरित और रणनीतिक कार्रवाई को एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। इस ऑपरेशन में बड़ी संख्या में हथियार और बाकी सामग्री भी बरामद की गई जो नक्सली गतिविधियों को और बढ़ावा दे रही थी।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, सुरक्षा बलों के इस संयुक्त ऑपरेशन में नक्सल आंदोलन का एक प्रमुख सरगना, जयराम चलपती को ढेर किया गया। क्योंकि जयराम को नक्सली हिडमा का गुरु माना जाता था और नक्सली गतिविधियों में उसकी अहम भूमिका थी। जयराम पर 1 करोड़ रुपये का इनाम भी घोषित किया गया था। क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों के लिए जयराम की तलाश एक बड़ी चुनौती थी। ऐसा इसलिए कि वह नक्सलवादी समूहों के लिए एक अहम रणनीतिक सोच के रूप में काम करता था। उसकी मृत्यु से न केवल छत्तीसगढ़ और ओडिशा बल्कि पूरे देश में नक्सलवादी आंदोलन को एक बड़ा झटका लगा है।

बताया जाता है कि इस ऑपरेशन को सफल बनाने में छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना की राज्य सरकारों ने अहम भूमिका निभाई है। इन तीनों राज्यों की पुलिस और सुरक्षा बलों ने मिलकर जयराम और उसके साथी नक्सलियों के खिलाफ लंबे समय से सख्त अभियान चलाया था। यही वजह है कि गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्वीट कर इस सफलता पर बधाई दी और सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत की सराहना की। उन्होंने कहा कि ये नक्सल मुक्त भारत के लक्ष्य की दिशा में एक और अहम कदम है।

बता दें कि भारत सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है कि देश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त किया जाए। ये ऑपरेशन उस दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है जो सुरक्षा बलों और सरकार के प्रयासों से नक्सलवाद के खात्मे की ओर बढ़ रहा है। समझा जा रहा है कि जयराम की मौत के बाद अब नक्सलियों के मनोबल को भारी झटका लगेगा और उन्हें पुनः अपनी ताकत को संगठित करना मुश्किल होगा। सुरक्षा बलों की ये सफलता न केवल एक बड़ी सैन्य जीत है बल्कि ये देश के नागरिकों के लिए एक संदेश भी है कि नक्सलवाद का खात्मा अब बिल्कुल नजदीक है।

बता दें कि एक साल पहले गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद को खत्म करने के रोडमैप को जो हरी झंडी दी थी, उसके तहत एनआईए ने नक्सलियों के खिलाफ कुल 96 मामलों की जांच कर रही है। उनकी राजनीतिक इच्छा शक्ति और सटीक रणनीति का ही यह तकाजा है कि हाल ही में 14 नक्सली एक मुठभेड़ में मारे गए हैं। उल्लेखनीय है कि एक साल पहले 21 जनवरी 2024 को गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने रायपुर में छत्तीसगढ़ के शीर्ष नेतृत्व एवं सुरक्षा बलों के प्रमुखों के साथ बैठक की थी, जिसमें नक्सलवाद को खत्म करने के रोडमैप को हरी झंडी दी थी। वहीं, छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के विपरीत नवनियुक्त विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस रोडमैप को अमली जामा पहनाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रदर्शित की, जिसका बेहतर नतीजा सबके सामने है। 

गौरतलब है कि नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए बनाए गए अमित शाह के रोडमैप में तीन अहम बिंदू हैं। पहला, नक्सलियों के कोर इलाके में सुरक्षा बलों की अग्रिम चौकियां स्थापित कर सुरक्षा गैप को भरना, दूसरा, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून का इस्तेमाल कर ईडी की मदद से नक्सलियों को मिलने वाली फंडिंग के स्त्रोत को पूरी तरह से बंद करना, और तीसरा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून का इस्तेमाल पर नक्सली गतिविधियों में शामिल आरोपियों के खिलाफ एनआईए की जांच कराकर कड़ा सजा सुनिश्चित करना। कहना न होगा कि तीनों ही फ्रंट में राज्य प्रशासन के सहयोग से बेहतरीन काम हुआ।

मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 के बाद सुरक्षा बलों की 290 अग्रिम चौकियां स्थापित की गईं, जिनमें अकेले साल 2024 में 58 अग्रिम चौंकियां स्थापित करना शामिल हैं। वहीं, इस साल 2025 में सुरक्षा बलों की कुल 88 अग्रिम चौकियां स्थापित करने का लक्ष्य है। इसके अलावा, राज्य सरकारें, ईडी और एनआईए ने नक्सल फंडिंग से जुड़ी 72 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की है। वहीं, एनआईए ने नक्सलियों के खिलाफ कुल 96 मामलों की जांच कर रही है, जिनमें 56 मामले पिछले तीन साल में दर्ज किये गए। इनमें से 77 मामलों में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है। 

एक्सपर्ट बताते हैं कि कहने को अग्रिम सुरक्षा चौकियों का गठन छोटी बात लग सकती है, लेकिन नक्सलियों के खिलाफ अभियान में यह कारगर रणनीति साबित हो रही है। क्योंकि अग्रिम सुरक्षा चौकियां बनने से उसके तीन-चार किलोमीटर के दायरे में नक्सलियों के लिए अपनी गतिविधि चलाना संभव नहीं रहता है। वहीं, दूसरी बात यह है कि इन चौकियों के सहारे सरकारी तंत्र और लोक कल्याणकारी व विकास योजनाएं भी ग्रामीणों तक पहुंच रही है। वहीं,  गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक अबूझमाड़ से लेकर दंडकारण्य और उससे आगे तक फैले नक्सल प्रभाव वाले पूरे इलाके में हर तीन-चार किलोमीटर पर एक सुरक्षा अग्रिम चौकी स्थापित कर करने का लक्ष्य रखा है। क्योंकि इन अग्रिम चौकियों का ही कमाल है कि वर्ष 2023 में जहां मात्र 50 नक्सलियों को मार गिराया गया था, वहीं उसकी तुलना में साल 2024 में 290 नक्सली मारे गए हैं। यही नहीं, इस साल 2025 में 21 जनवरी तक 48 नक्सली मारे जा चुके हैं।

इससे स्पष्ट है कि वर्ष 2025 में स्थापित होने वाले नए 88 अग्रिम सुरक्षा चौकियों की स्थापना से सुरक्षा बलों के आपरेशन की ताकत में और इजाफा होगा। वहीं, अगले साल 2026 में प्रस्तावित सभी सुरक्षा चौकियों के बनने के बाद नक्सलियों के पास अपनी गतिविधि चलाने को कोई भी सुरक्षित क्षेत्र ही नहीं बचेगा। यही वजह है कि उसके बाद ही नक्सलवाद के खात्मे का एलान किया जाएगा।

इससे साफ है कि अमित शाह की सटीक रणनीति ने बाजी उनके पक्ष में पलटती जा रही है, जिससे एक सफल गृहमंत्री के रूप में उनके नाम का शुमार किया जाने लगा है।

बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बल के जवानों ने जो अभियान छेड़ रखा है, उसकी अनवरत कार्रवाइयों और सटीक रणनीति के कारण एक साल भीतर ही नक्सलियों के हौसले पस्त होते नजर आ रहे हैं। 

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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