Barrackpore में TMC के कारण लगा है समस्याओं का अंबार, जनता कह रही है अबकी बार होगा 400 पार

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हम आपको बता दें कि बैरकपुर में आजादी के पहले से ही कई जूट मिलें थीं। सरकारी जूट मिलें तो अब बंद हो चुकी हैं लेकिन कुछ निजी जूट मिलें चल रही हैं जिनमें बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार से आये मजदूर काम करते हैं।

पश्चिम बंगाल का बैरकपुर संसदीय क्षेत्र औद्योगिक इलाका तो है ही साथ ही इतिहास में इस क्षेत्र का नाम इसलिए भी दर्ज है क्योंकि अंग्रेज शासन के खिलाफ पहला सैन्य विद्रोह यहीं पर हुआ था। 1857 में बैरकपुर की छावनी में ही ब्रिटिश सेना के जवान मंगल पांडे ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। यह क्षेत्र उत्तर 24 परगना जिले में आता है और पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग दो घंटे की दूरी पर है। हमें इस इलाके की अधिकतर सड़कें खराब अवस्था में दिखीं और ट्रैफिक जाम की समस्या यहां काफी विकराल दिखी।

हम आपको बता दें कि बैरकपुर में आजादी के पहले से ही कई जूट मिलें थीं। सरकारी जूट मिलें तो अब बंद हो चुकी हैं लेकिन कुछ निजी जूट मिलें चल रही हैं जिनमें बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार से आये मजदूर काम करते हैं। जूट मिलों में काम करने वाले मजदूरों में हमें लगभग सभी लोग ऐसे मिले जिनके पिता और दादा भी इन मिलों में काम करते थे। हमने पाया कि यह मजदूर अपने पूर्वजों वाला काम भी कर रहे हैं और लगभग उनके जैसा ही नारकीय जीवन भी जी रहे हैं। इन मजदूरों की बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव दिखा। जूट मिलों के मजदूरों को दैनिक 500 रुपए से भी कम मजदूरी मिलती है यानि लगभग 15000 रुपए मासिक। इस राशि में पूरे परिवार को पालना और खासतौर पर महंगी हो चुकी शिक्षा अपने बच्चों को दिला पाना बहुत कठिन कार्य है। इन मजदूरों ने कहा कि बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें खाली समय में अन्य काम भी करने पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा बेहाल है, कोई बीमार पड़ जाये तो आसपास अच्छा अस्पताल तक नहीं है। हमने निजी जूट मिलों की स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं पाई। जूट मिलों के संचालन में राजनीतिक दखलदांजी भी हावी दिखी। इस इलाके में बड़ी संख्या में हिंदीभाषी लोग रहते हैं और वह इलाके में राजनीतिक महत्व रखते हैं। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में करीब 35 प्रतिशत आबादी हिंदी भाषी है।

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लोगों से बातचीत में हमने पाया कि इनकी समस्याओं को सुलझाने के प्रति राज्य सरकार उदासीन है इसलिए इन सभी को मोदी सरकार से ही अब आस है। स्थानीय लोगों ने बताया कि इस बार हम भाजपा के पक्ष में बढ़-चढ़कर मतदान करेंगे क्योंकि हमें उम्मीद है कि उनकी गारंटियां हम सभी का जीवन बदल सकती हैं।

हमने जब इस इलाके के सांसद अर्जुन सिंह से जूट मिल मजदूरों की दयनीय स्थिति पर बात की तो उन्होंने कहा कि मेरा प्रयास रहेगा कि मैं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इनको मकान दिलवा सकूं या फिर यह जिस परिसर में रहते हैं वहां ही सरकार की योजना के तहत इनके लिए आवासीय बिल्डिंग का निर्माण करा सकूं ताकि इनकी समस्या का समाधान हो सके। अर्जुन सिंह ने कहा कि मैं करना तो बहुत कुछ चाहता हूँ। केंद्र से पैसा भी ले आता हूँ लेकिन कई कामों में राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है परन्तु वह मिल नहीं पाती और काम अटक जाता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगामी विधानसभा चुनावों में बंगाल में भी भाजपा की सरकार बनेगी और डबल इंजन की सरकार बनते ही यहां विकास के सभी काम तेजी के साथ होंगे।

हम आपको बता दें कि बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के बाद माकपा और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस तथा उसके बाद भाजपा को यहां से जीत मिलती रही है। 2019 में टीएमसी विधायक रहे अर्जुन सिंह ने पाला बदलते हुए भाजपा की सदस्यता ली थी और लोकसभा चुनाव जीत कर यह सीट भाजपा के खाते में डाल दी थी। हालांकि कुछ समय बाद वह फिर टीएमसी में लौट गये थे लेकिन जब उन्हें लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो वह फिर भाजपा में लौट आये और अब पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।

हम आपको बता दें कि बैरकपुर में आबादी 1927596 है। इस संसदीय क्षेत्र के तहत जगतदल, नैहाटी, भाटपाड़ा, आमडांगा, नोआपाड़ा, बैरकपुर और बीजपुर विधानसभा सीटें आती हैं। इन सात विधानसभा सीटों में से छह पर टीएमसी का कब्जा है जबकि भाजपा के पास एक ही सीट भाटपाड़ा है जहां से अर्जुन सिंह के बेटे विधायक हैं।

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