संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अत्याचार को लेकर प्रियंका वाड्रा को गुस्सा क्यों नहीं आया?

Priyanka Vadra
ANI

संदेशखाली में पीड़ित हिंदू दलित महिलाएं हैं और आरोपी मुस्लिम तृणमूल कांग्रेस का नेता। ऐसे में संदेशखाली में पीड़िताओं के साथ खड़े होने से कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति प्रभावित होती है। इसलिए संदेशखाली पर मुंह बंद करके बैठना कांग्रेस की राजनीति को मुफीद लगता है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भाजपा शासित राज्यों में महिला उत्पीड़न के मामलों को जोर शोर से उठाती हैं। प्रियंका ने यूपी के हाथरस मामले को जोर-शोर से उठाया था। 1 अक्टूबर 2020 को जब प्रियंका गांधी दिल्ली से हाथरस पीड़िता के परिवार से मिलने जा रही थीं तो पुलिस ने ग्रेटर नोएडा के पास उनका काफिला रोक दिया था। तब उन्होंने मीडिया से कहा कि उनकी भी बेटी है, इसलिए एक मां के नाते उन्हें ऐसी घटनाओं से बहुत गुस्सा आता है। प्रियंका ने उन्नाव दुष्कर्म कांड को लेकर योगी सरकार पर जमकर सवाल उठाए थे। इस मामले में उनकी सक्रियता देखते ही बनती थी। एक तो मामला भाजपा शासित राज्य का था, दूसरा आरोपों के घेरे में बीजेपी विधायक था। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को घेरते हुए पूछा था कि, सरकार को बताना चाहिए कि वो महिलाओं के साथ है या अपराधियों के? 

21 जनवरी 2022 को यूपी के बुलंदशहर जिले में एक किशोरी की हत्या का मामला सामने आया था। परिजनों का आरोप था कि किशोरी की गैंगरेप के बाद हत्या की गई। प्रियंका गांधी 3 फरवरी 2022 को यूपी के बुलंदशहर पहुंचीं, जहां उन्होंने पीड़ित परिजनों से मुलाकात कर पुलिस और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। 4 फरवरी, 2024 को सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर प्रियंका गांधी ने उप्र के बांदा में एक जज की मौत के मामले को उठाने में देरी नहीं की और प्रदेश सरकार पर जमकर अपनी भड़ास भी निकाली। एक जिम्मेदार नेता और नागरिक के नाते प्रियंका का महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों और अत्याचार पर मुखरता काबिले तारीफ है।

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लेकिन तस्वीर का दूसरा पक्ष यह है कि प्रियंका गांधी की सारी सक्रियता भाजपा या एनडीए शासित राज्यों में ही क्यों दिखाई देती है। उन्हें क्यों भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर ही गुस्सा आता है? उन्हें कांग्रेस शासित और गैर भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार उन्हें उद्वेलित और क्रोधित नहीं करते? उन्हें वहां की महिलाओं का दुख महसूस क्यों नहीं होता? गैर भाजपा शासित राज्यों में हो रहे महिला अपराधों पर वो मौन क्यों धारण कर लेती हैं? 

मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस के हर छोटे बड़े नेता ने प्रदेश और केंद्र की सरकार पर तीखी बयानबाजी की। सरकार को आरोपों के कटघरे में खड़ा किया। लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि लगभग इसी समय कांग्रेस शासित राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गैर भाजपा शासित राज्यों- बिहार, तेंलगाना, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल आदि में महिला उत्पीड़न के मामलों में प्रियंका गांधी ने मौन धारण करके रखा। 

राजस्थान में गहलोत सरकार के पांच साल के शासन में बलात्कार और महिला उत्पीड़न की घटनाओं की बाढ़-सी आ गई थी। महिला सुरक्षा में नाकाम गहलोत सरकार के कारण राजस्थान में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार, दुराचार और बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं को राजस्थान कभी भूलेगा नहीं। लेकिन मजाल है कि प्रियंका के मुंह से निंदा के दो शब्द भी निकले हों। पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनाव में महिला सुरक्षा प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा था। 

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की जो खबरें सामने आ रही हैं, उन्हें पढ़कर, सुनकर और देखकर आत्मा सिहर उठती है। संदेशखाली की कई हिंदू महिलाओं ने तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शाहजहां शेख और उनके समर्थकों पर पिछले कुछ वर्षों में रात-रात भर यौन उत्पीड़न और बलात्कार करने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर वायरल विभिन्न समाचार चैनलों को दिए गए साक्षात्कारों के आधार पर महिलाओं की गवाही के अनुसार, महिलाओं को अक्सर और लापरवाही से रात में उनके घरों से उठाया जाता है और टीएमसी कार्यालय ले जाया जाता है जहां गुंडों द्वारा उनके साथ दुव्र्यवहार किया जाता है। उन्हें धमकी दी जाती है कि अगर उन्होंने बात नहीं मानी तो उनके पतियों को मार दिया जाएगा। जैसा कि महिलाओं ने बताया है, यह यौन उत्पीड़न की कोई आकस्मिक या भयावह घटना नहीं है, बल्कि इन महिलाओं के साथ ये अत्याचार और शोषण वर्षों से जारी था। महिलाओं का आरोप है कि स्थानीय पुलिस, प्रशासन भी उनकी बात नहीं सुनता था। 

मुख्यधारा की मीडिया ने भी संदेशखाली पर व्यापक रूप से रिपोर्ट करना शुरू कर दिया है। फिर भी, किसी भी जागरूक बुद्धिजीवी और सेलिब्रिटी ब्रिगेड ने निंदा का एक शब्द प्रदेश सरकार के खिलाफ नहीं बोला है। इस अति संवेदनशील और गंभीर मुद्दे पर देश की सबसे पुरानी पार्टी के कर्णधारों प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके भाई राहुल गांधी की चुप्पी भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा करती है। राहुल गांधी तो इस वक्त भारत जोड़ों न्याय यात्रा पर हैं। वो हर छोटे-बड़े मुद्दे पर केंद्र और भाजपा शासित सरकारों को घेर रहे हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि संदेशखाली की पीड़ितों के लिए उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से न्याय क्यों नहीं मांगा?  

संदेशखाली पर प्रियंका गांधी की चुप्पी यह साबित करती है कि उन्हें महिला सुरक्षा और बेटियों की अस्मिता से कोई खास लेना—देना नहीं है। वो महिला उत्पीड़न और अपराध के मामलों को राजनीतिक चश्मे और नफे-नुकसान के हिसाब से देखती हैं। जिस राज्य में भाजपा की सरकार हो, वहां सरकार को घेरने और बदनाम करने का कोई मौका वो छोड़ती नहीं हैं। इसके अलावा विरोध के लिए पीड़ित और अपराधी की जाति का भी ध्यान रखा जाता है। 

संदेशखाली में पीड़ित हिंदू दलित महिलाएं हैं और आरोपी मुस्लिम तृणमूल कांग्रेस का नेता। ऐसे में संदेशखाली में पीड़िताओं के साथ खड़े होने से कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति प्रभावित होती है। इसलिए संदेशखाली पर मुंह बंद करके बैठना कांग्रेस की राजनीति को मुफीद लगता है। पश्चिम बंगाल में स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने संदेशखाली घटना की निंदा और विरोध किया, लेकिन मामला जितना गंभीर है, उस हिसाब से कांग्रेस नेताओं की निंदा और विरोध रस्म अदायगी से ज्यादा नहीं है। वास्तव में, कांग्रेस की राजनीति मुस्लिम तुष्टिकरण के इर्द-गिर्द घूमती है। ऐसे में संदेशखाली में प्रियंका, राहुल या किसी दूसरे बड़े नेता के विरोध से मुस्लिम समुदाय में ठीक संदेश नहीं जाएगा। वोट बैंक के तुलना में नारी अस्मिता का मुद्दा कांग्रेस के लिए कोई खास अहमियत नहीं रखता। प्रियंका गांधी का गुस्सा और बयानबाजी सेलेक्टिव और राजनीति से प्रेरित होती है। नारी सम्मान और सुरक्षा की बड़ी-बड़ी बातें और पीड़ितों के लिए सहानुभूति सब कुछ विशुद्ध राजनीति से प्रेरित होता है। 

संदेशखाली की हिंदू महिलाओं की गवाही सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद से पश्चिम बंगाल सरकार आरोपों को खारिज करते हुए इसे बीजेपी और आरएसएस की साजिश बता रही है। इन असहाय महिलाओं की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज करने और कार्रवाई करने के बजाय, पश्चिम बंगाल सरकार ने बार-बार संदेशखाली में धारा 144 लागू की है, लोगों को डराने और महिलाओं की आवाज को दबाने की कोशिशें जारी हैं। 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी यूपी की प्रभारी थी। उनके नेतृत्व में ये चुनाव लड़ा गया था। तब उन्होंने नारा दिया था कि, ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’। विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी से ज्यादा टिकट महिला उम्मीदवारों को दिये गये थे। आज संदेशखाली की महिलाओं को एक लड़ने वाली बेटी की जरूरत है। लेकिन चुनाव के समय जोशीले नारे देने वाली प्रियंका गांधी तो राजनीतिक परिदृश्य से ही गायब दिखाई देती हैं। 

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस राजनीतिक सेहत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में वहां राजनीति करके कुछ ज्यादा हासिल नहीं होने वाला। इसलिए प्रियंका न तो वहां की बेटियों के लिए लड़ने जा रही हैं और ना ही राहुल गांधी उनके लिए न्याय मांग रहे हैं। भाजपा ही प्रदेश सरकार को लगातार इस मुद्दे पर प्रभावी तरीके से घेर रही है। अगली बार जब प्रियंका गांधी को भाजपा या एनडीए शासित प्रदेश में किसी महिला के हक में आवाज उठाने या गुस्सा दिखाने से पहले संदेशखाली की न्याय मांगती पीड़ितों के चेहरे याद रखने चाहिएं। क्योंकि महिला सम्मान और सुरक्षा के गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक नफे-नुकसान के पलड़े पर तोलने से ज्यादा शर्मनाक कुछ और नहीं हो सकता।

- डॉ. आशीष वशिष्ठ 

(लेखक स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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