बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न पर आखिर खामोश क्यों हैं दुनिया के लोग?

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कमलेश पांडे । Dec 27 2025 12:51PM

नवंबर 2024 से जनवरी 2025 तक 76 हमले दर्ज हुए, जबकि अगस्त 2024 से अब तक 23 हिंदुओं की हत्या और 152 मंदिरों पर आक्रमण की खबरें हैं। वहीं, 2025 में राजबाड़ी जिले में अमृत मंडल और दीपू चंद्र दास जैसे हिंदू युवकों की पीट-पीटकर हत्या हुई, साथ ही घरों में आगजनी के मामले सामने आए।

भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदुओं पर उत्पीड़न एक लंबे अरसे से चली आ रही समस्या है, जबकि उसके उदय में भारत सरकार की परोक्ष भूमिका रही है। कभी पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले बंगलादेश में अक्सर इस्लामिक कट्टरता ब्रेक के बाद मुखर हो जाती है, जो राजनीतिक अस्थिरता के दौरान अमूमन तेज हो जाती है। यह भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है और दुनियाभर में अल्पसंख्यक समूह के उत्पीड़न पर संयुक्त राष्ट्र संघ की विफलता का द्योतक है। हाल के दिनों में भारत और बंगलादेश के कूटनीतिक सम्बन्धों पर भी इन बातों का साफ असर महसूस किया जा सकता है।

यदि पुरानी बातें छोड़ भी दीं जाएं तो गत वर्ष यानी 2024 में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से बंगलादेश में हिंदू विरोधी हिंसा में पुनः उछाल आया है, जिसमें मंदिरों पर हमले, घरों में लूटपाट और हत्याएं शामिल हैं। इस पर भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की महज खानापूर्ति वाली प्रतिक्रिया से वहां हिंदुओं पर संकट गहराता जा रहा है। इससे भारत में भी बंगलादेश विरोधी उत्तेजना स्वाभाविक है।

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यदि हालिया घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि नवंबर 2024 से जनवरी 2025 तक 76 हमले दर्ज हुए, जबकि अगस्त 2024 से अब तक 23 हिंदुओं की हत्या और 152 मंदिरों पर आक्रमण की खबरें हैं। वहीं, 2025 में राजबाड़ी जिले में अमृत मंडल और दीपू चंद्र दास जैसे हिंदू युवकों की पीट-पीटकर हत्या हुई, साथ ही घरों में आगजनी के मामले सामने आए। इसकी एक बड़ी वजह बंगलादेश में हिंदुओं की जनसंख्या में निरंतर कमी होना भी है। आंकड़े बताते हैं कि 1971 में हिंदू बांग्लादेश की आबादी का 22% थे, जो अब घटकर 8% से कम रह गए हैं, जो मुख्यतः उत्पीड़न और पलायन के कारण हुआ है। 

एक अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च के मुताबिक, 16 लाख हिंदू भारत चले गए, क्योंकि बंगलादेश में हिंदुओं की भूमि हड़पना, बलात्कार और मंदिर तोड़फोड़ आम अपराध हैं। इससे जुड़े आंकड़े और रिपोर्ट की मानें तो 2025 के पहले छह महीनों में 258 हिंसा की घटनाएं हुईं, जिनमें 20 बलात्कार और 59 पूजा स्थलों पर हमले शामिल हैं। कुल 4 अगस्त 2024 से जून 2025 तक 2,244 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। जबकि अंतरिम सरकार पर निष्क्रियता का आरोप है, जिससे अपराधी बेखौफ हैं। 

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बंगलादेश की कार्यवाहक सरकार के मुखिया मोहम्मद युनुस ने बांग्लादेश में हिंदू हत्याओं पर प्रत्यक्ष रूप से कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान या ठोस कार्रवाई नहीं की है, जिससे उनकी सरकार पर निष्क्रियता के आरोप लगे हैं। कई रिपोर्ट्स में हिंसा को उनकी कथित कट्टरपंथी नीतियों से जोड़ा गया है, लेकिन आधिकारिक प्रतिक्रिया में केवल सामान्य शांति अपील तक सीमित रहने का उल्लेख है। इसलिए उनपर आरोप लगते हैं और आलोचना भी होती है कि युनुस सरकार पर जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी समूहों को संरक्षण दे रहे हैं, जिसके बाद हिंदू हत्याओं में वृद्धि हुई। 

वहीं, भारतीय मीडिया और विपक्षी नेता भी उन्हें हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि युनुस ने भारत के दबाव में जांच के वादे किए बिना कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया। जहां तक अंतरराष्ट्रीय दबाव की बात है तो भारत और ब्रिटेन जैसे देशों ने युनुस से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग की, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया में कोई ठोस कदम नहीं दिखा। वहीं, बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने निर्वासन से युनुस पर हिंदू उत्पीड़न को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। जहां तक इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का सवाल है तो भारत सरकार ने लोकसभा में मामले उठाया, जबकि विश्व हिंदू परिषद ने विरोध प्रदर्शन किए। वहीं, ब्रिटिश सांसदों ने युनुस सरकार पर कार्रवाई की मांग की। 

बता दें कि भारत विदेशों में हिंदुओं पर हो रहे उत्पीड़न को मुख्य रूप से कूटनीतिक दबाव, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाने और संबंधित देशों से न्याय की मांग करके रोकने का प्रयास करता है। बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में हालिया घटनाओं पर विदेश मंत्रालय ने सख्त बयान जारी किए हैं, जहां दोषियों को सजा देने और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई है।

जहां तक कूटनीतिक प्रयास की बात है तो भारतीय विदेश मंत्रालय बांग्लादेश में हिंदू युवकों की हत्या और घरों पर हमलों की कड़ी निंदा करता है तथा अंतरिम सरकार से कार्रवाई की अपेक्षा रखता है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ढाका में बांग्लादेशी समकक्ष से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चर्चा की। वहीं भारत उचित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा उजागर करता है, लेकिन सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी संबंधित देश की सरकार मानता है। जहां तक गृह मंत्रालय की भूमिका की बात है तो गृह मंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश सीमा पर विशेष समिति गठित की है जो हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति की निगरानी करती है और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। नागरिकता संशोधन कानून के जरिए उत्पीड़ित हिंदू, सिख आदि को भारत में शरण प्रदान की जा रही है।

वहीं, विभिन्न राष्ट्रवादी संगठनों ने भी इस मामले में पहल की है। खासकर आरएसएस ने अपनी शताब्दी बैठक में विदेशों में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए संकल्प पारित किया तथा संरक्षण तंत्र की मांग की। जबकि कुछ विश्लेषकों ने 'राइट टू प्रोटेक्ट' सिद्धांत अपनाने का सुझाव दिया है, जिसमें सीमा पर सुरक्षित क्षेत्र बनाने जैसे कदम शामिल हैं।हालांकि इस दिशा में चुनौतियां की काफी हैं, क्योंकि भारत विदेशी सरकारों पर दबाव बनाता है, लेकिन प्रत्यक्ष हस्तक्षेप सीमित रहता है क्योंकि संप्रभुता का सम्मान किया जाता है। वहीं वैश्विक शक्तियां जैसे अमेरिका-ब्रिटेन भी हिंसा की निंदा करती हैं, जो भारत के प्रयासों को मजबूती देती हैं।

पिछले साल आपने देखा होगा कि चिन्मय कृष्ण दास, बांग्लादेश संमिलित सनातन जागरण जोत के प्रवक्ता और पूर्व इस्कॉन नेता, को 25 नवंबर 2024 को ढाका हवाई अड्डे से राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी का मुख्य कारण चटगांव में 25 अक्टूबर को हुई रैली में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर केसरिया झंडा फहराने का आरोप था, जहां वे हिंदू अल्पसंख्यकों के आठ सूत्री मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी गिरफ्तारी शेख हसीना सरकार गिरने के बाद अल्पसंख्यक हिंसा के खिलाफ बड़े प्रदर्शनों (चटगांव और रंगपुर में) से जुड़ी थी, जिसे बांग्लादेशी अधिकारी राजद्रोह मानते हैं। बाद में चटगांव में वकील सैफुल इस्लाम की हत्या के मामले में भी उन्हें आरोपी दिखाया गया, जो उनकी गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसक झड़पों से उपजा। अप्रैल 2025 में हाईकोर्ट ने राजद्रोह मामले में जमानत दी, लेकिन स्टे लग गया और वे जेल में हैं।

इसका तत्काल प्रभाव यह हुआ कि उनकी गिरफ्तारी के बाद पूरे बांग्लादेश में हिंदू समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए, जिससे हिंसक झड़पें हुईं और एक व्यक्ति की मौत हो गई। स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन जैसे समूहों ने इस्कॉन पर प्रतिबंध की मांग की। इस मुद्दे पर भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी आई। भारतीय विदेश मंत्रालय ने गिरफ्तारी और जमानत अस्वीकार पर गहरी चिंता जताई तथा बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। इससे भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव बढ़ा, जहां भारत हिंदू अधिकारों पर जोर दे रहा है। इसका व्यापक प्रभाव पड़ा, क्योंकि यह घटना बांग्लादेश में हिंदू उत्पीड़न का प्रतीक बनी, जिससे वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस तेज हुई। चिन्मय दास हिंदू समुदाय के प्रतिरोध के चिह्न बन गए।

यद्यपि भारत-बंगलादेश एक दूसरे के पूरक हैं, फिर भी उसपर बढ़ता पाकिस्तानी प्रभाव भारत के लिए चिंता का सबब है। लिहाजा भारत सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बंगलादेश के साथ कूटनीतिक स्तर पर कड़ाई बरते। अंतर्राष्ट्रीय कारोबारी स्तर पर प्रतिबंध लगाए। उसको शह देने वाले पाकिस्तान की नकेल कसे। यदि अमेरिका-चीन की भूमिका सामने आए तो उनके खिलाफ भी स्पष्ट और सख्त रुख दिखाया जाए कि आसेतु हिमालय में न तो किसी की दादागिरी चलेगी और न ही किसी तरह के षड्यंत्र को चलने दिया जाएगा। भारत सरकार इस मुद्दे पर खड़ी रणनीति अपनाए और एकबारगी सख्त सैन्य कार्रवाई करके अपने मजबूत इरादे का परिचय दे, क्योंकि बिनु भय होंहिं न प्रीति...यह बात जगजाहिर है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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