जीनोम खुलासे से हल्दी के औषधि प्रणालियों में शामिल होने का खुला रास्ता

Genome disclosures

दुनिया भर में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति रुचि बढ़ रही है, जिसे देखते हुए जड़ी-बूटियों के क्षेत्र में अध्ययन पर जोर दिया जा रहा है। शोधकर्ता जड़ी-बूटियों के कम समक्ष वाले क्षेत्रों- जैसे कि उनकी आनुवंशिक पृष्ठभूमि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से संबंधित अज्ञात तथ्यों का पता लगाने और उनकी आनुवंशिक संरचना से जुड़ी जानकारी एकत्रित करने के लिए जीनोम अनुक्रम खोजा जाना एक आवश्यक वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। एक अध्ययन में भारतीय वैज्ञानिकों को हल्दी का जीनोम खोजने में सफलता मिली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हल्दी के जीनोम का खुलासा होने के बाद इसे मुख्यधारा की औषधीय प्रणालियों में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

यह अध्ययन भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), भोपाल के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। उनका दावा है कि हल्दी की आनुवंशिक संरचना का खुलासा होने से इस पौधे के बारे में अब तक अज्ञात रहने वाली कई जानकारियों का पता चला है। इस संबंध में, आईआईएसईआर, भोपाल के वक्तव्य में बताया गया है कि हल्दी के अनुक्रमण और विश्लेषण से इस औषधीय पौधे के संबंध में कुछ अन्य जानकारियों की पुष्टि भी हुई है।

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दुनिया भर में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति रुचि बढ़ रही है, जिसे देखते हुए जड़ी-बूटियों के क्षेत्र में अध्ययन पर जोर दिया जा रहा है। शोधकर्ता जड़ी-बूटियों के कम समक्ष वाले क्षेत्रों- जैसे कि उनकी आनुवंशिक पृष्ठभूमि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। डीएनए और आरएनए अनुक्रमण तकनीकों के विकास से "हर्बल जीनोमिक्स" नामक एक नये अध्ययन क्षेत्र को बढ़ावा मिला है। इसका लक्ष्य जड़ी-बूटियों की आनुवंशिक संरचना और औषधीय लक्षणों के साथ उनके संबंध को समझना है। 

हर्बल जीनोमिक्स के क्षेत्र की शुरुआत और हर्बल सिस्टम की जटिलता को देखते हुए अब तक सीमित हर्बल जीनोम का अध्ययन हो सका है। आईआईएसईआर, भोपाल के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन इस महत्वपूर्ण अंतर को पाटने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। संस्थान के जैविक विज्ञान विभाग से जुड़े शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विनीत के शर्मा ने कहा, “उनका शोध कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि अब तक 3,000 से अधिक प्रकाशनों में हल्दी पर फोकस रहा है। इसके बावजूद, अभी तक हल्दी के पूरे जीनोम अनुक्रम का पता नहीं चल पाया था।”

इस औषधीय पौधे की आनुवंशिक बनावट का पता लगाने के लिए दो तकनीकों का उपयोग किया गया है, जिनमें ‘10x जीनोमिक्स (क्रोमियम) का लघु-पठन अनुक्रमण’ [short-read sequencing of 10x Genomics (Chromium)] और ‘दीर्घ-पठन ऑक्सफोर्ड नैनोपोर अनुक्रमण’ (Long-read Oxford Nanopore sequencing) शामिल हैं। ड्राफ्ट जीनोम असेंबली का आकार 1.02 Gbp था, जिसमें ~70% दोहराव वाले अनुक्रम थे, और इसमें 50,401 कोडिंग जीन अनुक्रम शामिल थे।

यह अध्ययन विकासवादी मार्ग में हल्दी की स्थिति को भी स्पष्ट करता है। शोधकर्ताओं ने 17 पौधों की प्रजातियों में एक तुलनात्मक विकासवादी विश्लेषण किया है। इससे द्वितीयक चयापचय, पादप फाइटोहोर्मोन सिग्नलिंग, और विभिन्न जैविक और अजैविक तनाव सहिष्णुता प्रतिक्रियाओं से जुड़े जीनों के विकासक्रम का पता चलता है। यह अध्ययन, हल्दी में मौजूद प्रमुख औषधीय यौगिकों करक्यूमिनॉइड्स के उत्पादन में शामिल प्रमुख एंजाइमों से जुड़ी आनुवंशिक संरचनाओं का भी खुलासा करता है, और इन एंजाइमों के विकास एवं उनकी उत्पत्ति को बताता है।

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डॉ शर्मा ने कहा, "हमारे अध्ययन से पता चला है कि हल्दी में कई जीन पर्यावरणीय तनाव के प्रति प्रतिक्रिया में विकसित हुए हैं।" पर्यावरणीय तनाव की स्थिति में जीवित रहने के लिए हल्दी के पौधे ने अपने अस्तित्व के लिए करक्यूमिनॉइड्स जैसे द्वितीयक चयापचयों के संश्लेषण के लिए अद्वितीय आनुवंशिक मार्ग विकसित किए हैं। ये द्वितीयक मेटाबोलाइट्स जड़ी-बूटी के औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार हैं।”

यह अध्ययन शोध पत्रिका नेचर-कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ शर्मा के अलावा अभिषेक चक्रवर्ती, श्रुति महाजन और शुभम के. जायसवाल शामिल हैं।

(इंडिया साइंस वायर)

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